प्रकरण के अनुसार परिवादी रितेश कुमार पुरोहित ने हिमाचल प्रदेश के राष्ट्रीय विवि में दाखिले के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। प्रवेश की पुष्टि होने के बाद उसने एक सितम्बर, 2018 से विवि में पढऩा शुरू कर दिया। प्रवेश के समय उसे विश्वविद्यालय में लाइब्रेरी, मेडिसिन, हॉस्टल, भोजन, डायनिंग रूम आदि की सुविधा देने की बात कही थी, लेकिन दाखिले के बाद उसे कोई सुविधा नहीं मिली। इस पर परिवादी छात्र ने दो दिन बाद ही अपनी फीस करीब २ लाख ३५ हजार रुपए लौटाने का प्रार्थना पत्र दे दिया, लेकिन विवि प्रशासन फीस लौटाने में टालमटोल करता रहा।
यह दिया निर्णय मंच अध्यक्ष ओपी सींवर ने अपने फैसले में लिखा कि विवि प्रशासन ने फीस नहीं लौटाने के पीछे सीट छोडऩे से आर्थिक नुकसान का तर्क दिया, लेकिन वह बहस के दौरान यह साबित नहीं कर पाया। परिवादी छात्र के जाने के बाद सीट के खाली रहने या भरने के बारे में स्पष्टीकरण भी विवि प्रशासन नहीं दे पाया। मंच के सदस्य पुखराज जोशी और मधुलिका आचार्य ने बताया कि विवि प्रशासन को पूरी फीस और हर्जाने के तौर पर 30 हजार रुपए छात्र को देने के आदेश दिए हैं।