'आगे-आगे बैण्ड बाजा पीछे मोटरकार है, रो मती गवरल हरियाला ईसर साथ है' सरीखे गीतों के बीच मंगलवार को बालिकाओं ने बाला गणगौर का पूजन पूरा होने पर गवर पहुंचाने की रस्म निभाई।
ढोल-नगाड़ो, बैण्ड तथा डीजे पर पारम्परिक गीतों के बीच बालिकाएं नाचती-गाती गवर पहुंचाने पहुंची।
धुलण्डी के दिन से जिस मिट्टी के पालसिए में मां गवरजा का पूजन किया जा रहा था, उसे पुष्पों से शृंगारित कर गवर पहुंचाने की रस्म निभाई। वहीं गेंहू के उगाए गए ज्वारे, घुड़ले का विसर्जन किया गया।
बालिकाएं और महिलाएं गणगौर पूजन व उन्हें पहुंचाने में व्यस्त रही। इस दौरान जस्सूसर गेट, नया कुआं आदि क्षेत्रों में मेले भरे।
इस दौरान जस्सूसर गेट, नया कुआं सहित कई स्थानों पर मेले भरे। गवर पूगाने की रस्म के पहले दिन गवर पहुंचाने का क्रम शाम तक जारी रहा।
चौतीना कुआं पर गणगौर प्रतिमा को पानी पिलाने की रस्म का निर्वहन किया गया। नत्थूसर बास क्षेत्र में गणगौर महोत्सव का आयोजन हुआ।