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गणगौर त्यौहार में लोक रुझान झलका, नृत्य – गीतों की धूम

locationबीकानेरPublished: Apr 04, 2016 07:29:00 pm

Submitted by:

Hem Sharma

लोक संस्कृति के सबसे बड़े त्यौहार गणगौर में इन दिनों घर-घर लोक रुझान की सांस्कृतिक छटा में लोक नृत्य की धूम और गीतों की स्वर लहरियां भौर से देर रात तक सुनाई देती है।

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 लोक संस्कृति के सबसे बड़े त्यौहार गणगौर में इन दिनों घर-घर लोक रुझान की सांस्कृतिक छटा में लोक नृत्य की धूम और गीतों की स्वर लहरियां भौर से देर रात तक सुनाई देती है।

 सुबह कुंवारी लड़कियां सुन्दर वर की कामना से गणगौर की गीतों के साथ सामूहिक पूजा करती है। वहीं दोपहर एवं शाम को गीतों एवं नृत्य का सामूहिक आयोजन हो रहे हैं। यह दौर होली दहन के दूसरे दिन से 16 दिनों तक चलता है।
 गणगौर लोक जीवन का सामूहिक त्यौहार हैं जिसमें सामाजिक ताना-बाना, लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति महिलाएं और कुंवारी बालिकाएं करती है। 

बीकानेर में चौतीने कुए पर गणगौर को पानी पिलाने की रस्म होती है। आखिरी दिन गणगौर का मेला लगता है जहां गणगौर की दौड़ आयोजित की जाती है।
 बीकानेर में भी लोक मान्यता के प्रतीक इस त्यौहार को प्रमुखता से मनाया जाता है। राज परिवार की गणगौर, चांद मल ढढा की गणगौर, भादाणियों की गणगौर के अलावा हर जाति की गणगौर निकाली और पूजी जाती है।
 इस त्यौहार में पुरुष पूरक के रूप में शामिल होते हैं। बड़े बाजार में ईशर एवं गणगौर का बाजार सजा हुआ है। इन दिनों मिट्टी की छोटी गणगौर ईशर एवं भाइयां एवं घुड़ले की बिक्री जोरों पर है। 
 क्या है लोक मान्यता:- पार्वती ने अच्छे पति की कामना से कठोर तप किया। 

इस साधना के चलते उन्हें भगवान शिव के रूप में वर प्राप्त हुआ। शिव अध्र्दनारीश्वर के अवधारणा में पार्वती को बहुत सम्मान देते हैं।
 विश्व मनोविज्ञान में इस अवधारणा को नारी के प्रति सम्मान का भाव है। पार्वती सम पति प्रिय होहू..। यह आशीवार्द इस अवधारणा के चलते दिया जाता है। .

कैसे मनाते है गणगौर का त्यौहार:-
 होली दहन के बाद कुंवारी बालिकाएं दूसरे दिन दहन स्थल से राख लाकर उसकी 16 पिंडलिया बनाती है। 

ये पिंडलिया गणगौर के सम्मुख रखकर गुलाल और दूब से गीतों के साथ पूजा की जाती है। 8 दिन के बाद पाळसिया में गेहूं या बाजरा उगाया जाता है। जिसे ज्वारा बोलते हैं। ज्वारे की दंंतौणियां गणगौर -ईश्वर को चढाई जाती है।
 इस दौरान मान्यताओं के देवी-देवताओं के नाम लेकर गीत गाते हैं और इनके मिठाई का भोग लगाते हैं। 

यह क्रम इन दिनों घर-घर में चल रहा है। 16 दिन के गणगौर पूजन में बालिकाओं को सहजीवन के संस्कार मिलते हैं।
 वहीं गीतों में वे मौहल्ले के लड़कों को भाई मानकर उनका नाम गाती है। इससे सामाजिक ताना-बाना मजबूत होता है।

 श्रीमती कमला, बीकानेर 

गणगौर त्यौहार में गहरी आस्था:-

 राजस्थान में गणगौर का त्यौहार भक्ति भाव और सांस्कृतिक आस्था के साथ मनाया जाता है। बीकानेर में गणगौर की पूजा अभ्रक ( सिलिकॉन) से भी की जाती है। 
अभ्रक शक्ति का प्रतीक है। चिड़ामल जी आवै ला, लड़का लूम लावै ला..ईश्वर दत्त सूआ उतरे तो गोद लू लूं…। जैसे भावनात्मक गीत के माध्यम से प्रेम का इजहार किया जाता है। इस दौरान लड़कियां अपने पति की कामना गीतों के माध्यम से करती है। 
छण-मण छोरो… यानि अल्ट्रा मॉडर्न, इकहरा वदन का पति मिले। गणगौर का सामाजिक स्वरुप प्रेरणास्पद है। 

गणगौर पूजन के आखिरी दिन पूरे शहर में नई परिधान पहने विभिन्न इलाकों में जहां विसर्जन होता है जाती है।
 गणगौर नारी शक्ति को समाज में मान्यता देने तथा नारी की भावनाओँ की अभिव्यक्ति का त्यौहार है। 

गणगौर के त्यौहार में नारी का मनोविज्ञान, संस्कृति, नृत्य, लोक गीत तथा मान्यताएं उभरकर आती है जो नई पीढ़ी को प्रेरणा देती है। – जानकी नारायण श्रीमाली
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