रियासतकाल से ढढ्ढ़ों के चौक में भरने वाले चांदमल ढढ्ढ़ा की प्राचीन गणगौर का पूजन एवं मेला प्रसिद्ध है। ढोल तथा झालर की झंकार के बीच बालिकाओं-महिलाओं के गणगौर प्रतिमा के समक्ष किए जाने वाले नृत्य, पूजन-दर्शन के लिए शहर व गांवों से उमडऩे वाली श्रद्धालुओं की भीड़ तथा श्रद्धालुओं की दृढ़ आस्था के चलते यह मेला प्रसिद्ध है। मनोकामना पूर्ति के लिए इस गणगौर प्रतिमा के समक्ष नृत्य करने की होड़ रहती है। तृतीया व चतुर्थी तिथि को होने वाले मेले में गवरजा के दर्शन-पूजन के लिए देशभर से बड़ी संख्या में लोग बीकानेर पहुंचते हैं। इस बार यह पूजन-उत्सव 20 व 21 मार्च को होगा।
चांदमल ढढ्ढा परिवार के सदस्य नरेन्द्र कुमार बताते हैं कि यह गणगौर साल में महज दो दिन ही दर्शन-पूजन के लिए हवेली से बाहर चौक में विराजित होती है। पानी पिलाने की रस्म के लिए भी यह गणगौर चौक से बाहर नहीं जाती है। पानी पिलाने और भोग की रस्म चौक में ही होती है। सिर से पांव तक आभूषणों और वस्त्रों से शृंगारित इस गणगौर प्रतिमा दर्शनीय है।
चांदमल ढढ्ढा की गणगौर प्रतिमा और इसके राजसी ठाठ-बाठ का वर्णन पारम्परिक गणगौर गीतों में मिलता है। 'ऊंची हवेली में पौढ़े गवरजा, खस खस का पंखा' के माध्यम से गणगौर प्रतिमा की भव्यता को रेखांकित किया गया है। वहीं मेले के दौरान हर साल शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इसकी महत्ता को दर्शाती हैं।
'गवरल म्हारी ऐ, आ लाल चुंदड़ी लागै प्यारी है', 'आज म्हारी गवर बनौळे निकलीÓ तथा 'चम्पे री डाली हिंड्यो मौंड्यो रे' सरीखे गीतों के बीच शहर में मां गवरजा का पूजन परवान पर है। शुक्रवार को हनुमान हत्था क्षेत्र में सामूहिक रूप से गणगौर पूजन उत्सव मनाया गया। महिलाओं-बालिकाओं ने मां गवरजा का पूजन कर गणगौर गीतों का गायन किया और प्रतिमाओं के आगे नृत्यों की प्रस्तुतियां दी। इस दौरान सरोज कंवर, गायत्री कंवर, शोभा कंवर, चंचल कंवर, रेणू कंवर, आशा कंवर, प्रीति कंवर आदि ने झूला, चुंदड़ी, टीकी, बधावा, बासा, बिनौला सहित कई गीतों का गायन के साथ नृत्यों की प्रस्तुति दी।
मुरलीधर व्यास कॉलोनी में अग्निशमन केन्द्र के पास, पूनरासर हनुमान वाटिका के सामने शुक्रवार को सामुहिक गणगौर पूजन का आयोजन हुआ। इस दौरान बालिकाओं एवं महिलाओं ने गणगौर के गीतों का गायन और नृत्य करके पूजा की। इस अवसर पर ममोलदेवी, संतोष देवी, गीता देवी, विजयलक्ष्मी, सावित्री देवी, सुमित्रा देवी, संपत देवी बेबी, वर्षा, सपना आदि ने गीत-नृत्यों के साथ गणगौर को विविध व्यंजनों का भोग अर्पित करके बासा परंपरा का निर्वाह किया।
गोगागेट क्षेत्र में शुक्रवार को गणगौर पूजन के आयोजन में महिलाओं एवं बालिकाओं ने गणगौर प्रतिमाओं का पूजन कर विविध व्यंजनों का भोग अर्पित किया। कार्यक्रम में सजाई गई सजीव झांकी में संजू बाहेती ने ईसर, संगीता राठी ने गवर व वंश पच्चीसिया ने भाईया की भूमिका निभाई। सावन पारीक ने बताया कि इस दौरान शान्ति देवी पचीसिया, मंजू देवी, सीमा देवी, संगीता देवी, विध्या देवी, मधु देवी, सुनीता पारीक, रचना, पुष्पा, लता मूंधड़ा, लक्ष्मी थिरानी, सरोज देवी आदि ने गीत नृत्यों की प्रस्तुतियां दी।
ढढ्ढ़ों का चौक स्थित कोठारी भवन में तीन दिवसीय गणगौर महोत्सव शुरू हुआ। मनीष डागा ने बताया कि महोत्सव में महिलाओं के लिए कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। महोत्सव में विधायक सिद्धि कुमारी ने मां गवरजा का पूजन किया। मधुरिमा सिंह, डॉ. मीना आसोपा अतिथि रूप में उपस्थित थीं। महोत्सव में शनिवार को मिस गणगौर प्रतियोगिता का आयोजन होगा।
गणगौर के पारम्परिक गीतों की पुस्तक 'गवरजा रा गीत' का विमोचन शुक्रवार को नत्थूसर गेट के बाहर स्थित गायत्री भवन में हुआ। समाजसेवी पं.जुगल किशोर ओझा ने पुस्तक का विमोचन किया। पं. पुखराज भादाणी ने बताया कि गणगौर मण्डल सिंगिया चौक की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक में गणगौर के पारम्परिक गीतों, गणगौर माता कथा व पूजन का संग्रह का है। इनका गायन बालिकाओं-महिलाओं की ओर से गणगौर पूजन, बासा देने, दांतणिया देने आदि परम्पराओं के निर्वहन के दौरान गायन किया जाता है। पुस्तक विमोचन अवसर पर सुशील भादाणी, दाऊलाल ओझा, प्रमोद छंगाणी, मदन छंगाणी, तरुण भादाणी, राजेश देरासरी आदि उपस्थित थे।