सात साल पहले से स्थिति एकदम उलट
वर्ष 2011-12 में ग्वार की फसल ठीक होने एवं दाम भी अच्छे मिलने से ग्वार गम मिलों की चांदी हो गई थी। तब गम की कीमत एक लाख रुपए क्विंटल तक पहुंच गई थी। ऐसे में धरती पुत्रों के घरों में लग्जरी गाडिय़ां नजर आने लगी थी और खेत-ढाणियों में भी पक्के मकान नजर आने लगे थे। सात साल पहले ग्वार ने तीस हजार रुपए प्रति क्विंटल तक
उच्च्तम भाव है। अब स्थिति बदल गई है। विदेश में गम का विकल्प ढूंढने की वजह से मांग भी कमजोर हो गई है। एेसे में ग्वार गम की स्थानीय फैक्ट्रियां बंद होती जा रही है। देश में तीन सौ गम मिले हुआ करती थी, जिनकी संख्या अब पचास तक सिमट गई है। सीधे तौर पर ढाई सौ मिले बंद हो गई है। राजस्थान में ग्वार गम की 250 फैक्ट्रियों में से वर्तमान में महज 35 ही चल रही है। बीकानेर में 14 में से 12 मिल बंद हैं।
विकल्प का असर
विदेश में क्रुड ऑयल कुओं में ग्वार गम का उपयोग अधिक होता है। इस वजह से इसके भाव भी तेज हो गए थे। अब विदेश में गम का विकल्प निकलने की वजह से मांग कमजोर हो गई है। इन कुओं के लिए अब विकल्प के तौर पर शील्क वाटर नामक उत्पाद का उपयोग किया जाने लगा है। जो ग्वार गम से सस्ता मिल जाता है।
अधिकांश ग्वार गम का विदेश में निर्यात ही किया जाता है। मांग कम होने से पिछले सालों के मुकाबले अब पचास प्रतिशत से भी कम निर्यात हो रहा है। पहले करीब साढ़े छह टन गम का निर्यात होता था। अब सालाना तीन लाख टन गम का निर्यात हो रहा है। इस समय गम के भाव भी 7500 से 7600 रुपए प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में इस समय ग्वार की एक करोड़ बोरी का स्टॉक पड़ा है। जबकि फसल का उत्पादन 70 लाख बोरी हुआ था। वर्ष 2018 में दो करोड़ बोरी ग्वार का स्टॉक वेयर हाउस और गोदामों में पड़ा था और एक करोड़़ बोरी का उत्पादन हुआ था। एक करोड़ 25 लाख बोरी का निर्यात होता था, जो इस बार अब तक 30 हजार टन हुआ है।