पार्षद का प्लेटफार्म शहर के अपने-अपने वार्डो के क्षेत्र का चौतरफा विकास करने के लिए होता है। पार्षद में सेवा भावना होना नितान्त जरूरी है। अन्यथा राजनीतिक विचारधारा के कारण अपने कर्तव्य से विमुख हो जाएगा। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। यह शहर का निगम है, ना कि विधानसभा या संसद। शहर के विकास में राजनीति का कोई रंग नहीं होना चाहिए।अगर इसमें राजनीतिक रंग चढ़ेगा तो निश्चित ही वह सेवाकार्य से विमुख हो जाएगा। पार्षद अपने क्षेत्र का विकास कर भविष्य के लिए परिस्थितियों को समझ कर डेवलपमेंट ऑफ लीडरशिप हो सकता है।
वार्ड के लोगों की भिन्न-भिन्न विचारधारा के वोटरों से मिलकर एक विकासशील व सामाजिक विचारधारा के साथ पार्षद की परिभाषा होती है।
आज के समय में सब उलट हो रहा है। पार्षद ना तो अपना राजनीतिक विकास करता है, ना क्षेत्र का। अतः पार्षदों को सोचना एवं समझना होगा कि वह अपने धर्म का, चरित्र का और कर्तव्य का निर्वाह कर रहे है या नहीं।
आज के समय में सब उलट हो रहा है। पार्षद ना तो अपना राजनीतिक विकास करता है, ना क्षेत्र का। अतः पार्षदों को सोचना एवं समझना होगा कि वह अपने धर्म का, चरित्र का और कर्तव्य का निर्वाह कर रहे है या नहीं।
आजादी के बाद बीकानेर नगर परिषद में एक बार ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रत्याशी खड़े किये थे। उसके बाद 1967 तक जितने भी चुनाव हुए, उनमें किसी भी पार्टी ने अपने सिम्बल पर किसी भी प्रत्याशी को चुनाव नहीं लड़ाया। उस समय के पार्षदों के विकास कार्यो एवं सामाजिक कार्यो का यदि अवलोकन किया जाए तो काम करने की भावना पार्षदों में ज्यादा मिलेगी। जिससे आज के पार्षद दूर नजर आते है। आजकल के जनप्रतिनिधि को यदि सामाजिक मूल्यों पर तोला जाए, तो वे कहीं ठहरते नजर नहीं आते। राजनीतिक दलों के मोहरे बने ज्यादा दिखेंगे। तो मूल बिन्दु वहीं आ कर के ठहरता है कि राजनीति और राजनीतिज्ञों से दूर रह कर ही पार्षद अपने धर्म और दायित्व का निर्वाह करें। तभी पार्षद कुछ सेवा कर सकते है। वरना पार्षद पद का ही महत्व खत्म हो जाएगा।