धरोहर के वाहक: हमारे संग्रहालय
बीकानेरPublished: May 18, 2021 02:12:57 pm
विश्व संग्रहालय दिवस पर विशेष
धरोहर के वाहक: हमारे संग्रहालय
आज विश्व संग्रहालय दिवस है और उस संस्था का स्मरण करने का अवसर भी जो मानव सभ्यता के उद्भव और विकास की कहानी को अक्षुण बनाये रखने में निरंतर गतिशील हैं। इंटरनेशनल कौंसिल फॉर म्युजियम्स द्वारा 1977 से प्रति वर्ष 18 मई को अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता रहा है। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संग्रहालय समुदाय को एक मंच पर लाने का साझा प्रयास है जिसका मूल उद्देश्य और विश्वास है कि संग्रहालय संस्कृति के आदान प्रदान , संस्कृति के संवर्धन, लोगों के मध्य आपसी समझ, सहयोग और शांति बनाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम है। वर्ष 2021 की इंटरनेशनल म्युजियम्स दिवस की थीम ‘दी फ्यूचर आफ म्युजियम्स: रिकवर एंड रीइमेजिन ‘ है जो इस महामारी के काल में मानव क्षमताओं पर विश्वास को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
संग्रहालय के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी का ‘म्यूजियम‘ शब्द मूलतः लैटिन भाषा का है, जो यूनानी ‘म्यूजिओन‘ शब्द से लिया गया जो यूनानी देवी म्यूजेस को समर्पित एक मंदिर था। संग्रहालय की अवधारणा ने अपने अर्थ, रूप और स्वरुप में कालांतर में अनेक परिवर्तन किये। यह एक ज्ञान का केंद्र है, जहाँ मानव समस्त चिंताओं से मुक्त होकर आनंदपूर्वक ज्ञान में अभिवृद्धि करता है। संग्रहालय एक सुनियोजित विचारगत निर्मित सामाजिक संस्था है जहाँ ना पाठ्यक्रम है ,ना पुस्तकें हैं, ना समय-चक्र है , ना कक्षा है , ना परीक्षा है, ना अध्यापक हैय यहाँ मानव अपनी रूचि से खेल-खेल में सीखता है और आनंदित होता है , यही संग्रहालय के सही मायने हैं। ये संग्रह, शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन के उद्देश्यों को भी पूर्ण करते हैं।
संग्रहालयों का फलक अत्यंत विशाल है, वे अध्ययन का माध्यम हैं। इसलिए उनके उद्देश्य रूचिकर, सकारात्मक व नवाचार लिये हुए होने जरूरी हैं, तभी लोगों को आकर्षित करने में सफलता मिल सकेगी। यह समझना भी आवश्यक है कि संग्रहालय रूपी संस्था का अस्तित्व समाज में है और समाज में परिवर्तन के साथ संग्रहालयों को भी बदलना होगा तभी वे अपने अस्तित्व के सही अर्थ को सार्थक कर पाएंगे। संग्रहालय समाज और संस्कृति के वाहक हैं तथा हमारी संस्कृति में स्वामित्व का भाव बहुत प्रगाढ़ है। अतः जब हम समाज को संग्रहालयों के साथ जोड़ने का कार्य करेंगे तो अपनत्व का भाव पनपेगा तथा इस प्रकार संग्रहालयों तथा इनके भविष्य को सुरक्षित किया जा सकेगा। यह कार्य सरल नहीं है किन्तु असंभव भी नहीं है। मस्तिष्क के विउपनिवेशिकरण से स्वतन्त्र विचारों को विकसित किया जा सकता है और तभी संग्रहालयों को नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप आकार प्रकार देकर स्थापित किया जा सकेगा।
भारत में संग्रहालयों के इतिहास पर प्रकाश डालें तो 1784 में एशियाटिक सोसायटी की स्थापना से लेकर इंडियन म्यूजियम, कोलकत्ता, नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली की स्थापना तथा इसके उपरांत 21वीं सदी में अनेक संग्रहालय स्थापित किये गए। भारत में संग्रहालयों के अनेक प्रकार हैं जैसे कला संग्रहालय, ऐतिहासिक संग्रहालय, पुरातात्विक संग्रहालय, नृशास्त्रीय संग्रहालय, बाल संग्रहालय, स्वास्थ्य सम्बन्धी संग्रहालयय निश्चित उद्देश्य से स्थापित राष्ट्रीय संग्रहालय, प्रांतीय संग्रहालय, स्कूल कॉलेज व विश्विद्यालय के संग्रहालयय व्यवस्था संबंधी राजकीय संग्रहालय, नगरपालिकाओं व सोसाइटी के संग्रहालय आदि। वर्तमान में अनेक नवाचार के साथ संग्रहालय बनाये जा रहे हैं। जिनमें वर्चुअल संग्रहालय व्यक्ति को विशिष्ट अनुभूति देने का प्रयास करते हैं तथा रूचि पैदा करने के साथ-साथ शिक्षित भी करते हैं। वर्तमान भारत में सभी प्रकार के संग्रहालयों की गणना की जाये तो स्थिति निराशाजनक ही है। जहाँ अमेरिका में करीब 35,000 संग्रहालय हैं, वहीं यह आंकड़ा भारत के संग्रहालयों की संख्या का दस गुना ज्यादा है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी धरोहर के संरक्षण में सफल प्रयास कर रहे हैं ?
जनसम्पर्क संग्रहालय का अभिन्न अंग है। इसे सशक्त करने की आवश्यकता है। साथ ही नई पीढ़ी द्वारा पढ़े जा रहे पाठ्यक्रमों में संग्रहालय विज्ञान को उचित स्थान मिले, इसकी भी आवश्यकता है। संग्रहालयी शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग प्रशिक्षण है जिसकी जिम्मेदारी भी उच्च शिक्षण संस्थानों की है। इन उपायों से भावी पीढ़ी को धरोहर के प्रति संवेदनशील बनाया जा सकेगा। संग्रहालयों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब समुदाय की भूमिका को इसके केन्द्र में स्थापित किया जायेगा।