बीकानेर

VIDEO: दिल के दर्द ने गुदगुदाया, ‘हाय मेरा दिल’ में हास्य के साथ व्यंग्य का तड़का,रेल थिएटर फेस्टिवल का आगाज

बीकानेर. कहते हैं कि आदमी को यदि किसी चीज का भ्रम हो जाए, तो उसके लिए कोई दवा नहीं बनी। वह उस भ्रम को जीवन की हकीकत समझ लेता है।

बीकानेरAug 10, 2018 / 09:03 am

dinesh kumar swami

दिल के दर्द ने गुदगुदाया, ‘हाय मेरा दिल’ में हास्य के साथ व्यंग्य का तड़का,रेल थिएटर फेस्टिवल का आगाज

बीकानेर. कहते हैं कि आदमी को यदि किसी चीज का भ्रम हो जाए, तो उसके लिए कोई दवा नहीं बनी। वह उस भ्रम को जीवन की हकीकत समझ लेता है। ऐसे ही भ्रम व गलफमियों को गुरुवार को मुम्बई के कलाकारों ने रेलवे प्रेक्षागृह के मंच पर नाटक ‘हाय मेरा दिलÓ के माध्यम से साकार किया। मौका था रेल थिएटर फेस्टिवल के आगाज का।
 

उत्तर-पश्चिम रेलवे के तत्वावधान में पहले दिन मुम्बई की अंक संस्थान की ओर से दिनेश ठाकुर के निर्देशित नाटक ‘हाय मेरा दिलÓ का मंचन किया गया। राजस्थान के रणवीर सिंह के लिखे नाटक में हास्य के साथ व्यंग्य का ताना-बाना बुना गया। कसावट भरे निर्देशन और प्रीता माथुर व अमन गुप्ता ने उम्दा अभिनय किया। दो घंटे चले नाटक का कथानक दिल के दर्द का भ्रम पाले एक पति के इर्द-गिर्द घूमता है। इस मौके पर मंडल रेल प्रबंधक अनिल दूबे, बीएसएफ के डीआइजी यशवंत सिंह, लक्ष्मीनारायण रंगा आदि अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
 


नाटक का मुख्य पात्र मदन एक डाक्टर के दूसरे डाक्टर से बात करते सुनकर यह मान बैठता है कि उसको दिल की गंभीर बीमारी है और वह चंद दिनों का मेहमान है। उसके बाद मरने वाला है। बस यहीं से शुरू होती है कहानी। इसमें कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं। पत्नी उस पर शक करती है, वो सफाई भी देता है, लेकिन नहीं मानती तो असल बात बताता है।
 

इनकी रही भागीदारी
नाटक में अमन गुप्ता, प्रीता माथुर ठाकुर सहित अतुल माथुर, शंकर अय्यर, गुंजन सिन्हा, मोहित शर्मा सुमित भारद्वाज, दर्शन पंवार आदि कलाकारों ने भूमिका निभाई। आयोजन को लेकर उत्तम सिंह, सुरेश खत्री, किशन रंगा, अमित गोस्वामी, रवि शुक्ला, सुधेश व्यास आदि भागीदारी निभा रहे हैं।

जुनून ही रंगमंच

रंग अभिनेता अमन गुप्ता ने कहा कि रंगमंच करने के लिए जरूरी है कि जुनून हो। वो ही लंबे समय तक इस पर टिकता है। रेलवे प्रेक्षागृह में पत्रिका से बातचीत में गुप्ता ने कहा कि रंगमंच के लिए सरकार से अनुदान मिलता है, लेकिन वो काफी नहीं है। हालांकि यह भी सही है कि सरकार की सीमाएं होती है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी नाटकों से जुड़ तो रही है, लेकिन उनके लिए रंगमंच फिल्म लाइन में जाने की एक सीढ़ी है। यही वजह है कि चंद नाटकों के मंचन के बाद ही वो निकल लेते हैं। गुप्ता ने कहा कि रंगमंच कभी नहीं मरेगा।

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