जिसमें पढऩे वाली हर छात्रा का जन्म दिन ये अपने स्तर पर मनाएंगे। बतौर करणीराम का कहना है कि आने वाले पांच साल तक गांव की स्कूल में पढऩे वाली प्रत्येक बेटी का जन्मदिन केक काटकर मनाया जाएगा।
इस दौरान जन्म दिन वाली बेटी को उपहार के साथ-साथ ड्रेस व शिक्षण सामग्री भी वितरित की जाएगी। हालांकि बेटियों का जन्मदिन मनाने की शुरूआत गणेश चतुर्थी से की जा चुकी है। ये संकल्प इन्होंने अपनी पौती के जन्मदिन पर लिया। जो कि, आने वाली पांच साल तक जारी रहेगा।
बेटी का समझा मोल
बुजुर्ग करणीराम का कहना है कि बेटी का मोल क्या होता है। कोई उनसे पूछे। क्योंकि इनके खुद के कोई बेटी नहीं है। इसलिए बेटी नहीं होने की पीड़ा से ये वाकिफ हैं। हालांकि अब इनके परिवार में दो पौतियां हैं। जिनका जन्मदिन भी ये विशेष तरीके से मनाते हैं।
शहरी संस्कृति भी जरूरी पूनिया का मानना है कि शहरों में मनाए जाने वाले जन्मदिन का अहसास ग्रामीण परिवेश में जीने वाली बेटियां भी कर सके। इसके लिए नई पहल का प्रयास किया गया है। इससे गांवों में रहने वाले परिजनों में भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश मिलेगा।