सेवा नियम बनने से लेकर फिक्स मानदेय तक की कहानी
वर्ष 1993 में वित्त विभाग ने इनके लिए लोक जुंबिश कर्मचारी सेवा नियम बनाए। 2004 में इस परियोजना के सर्व शिक्षा अभियान में समायोजित होने तक उन्हीं नियमों के तहत वेतन भत्ते अवकाश आदि भी मिलते रहे लेकिन बाद में इन्हें फिक्स मानदेय पर पहले सर्व शिक्षा अभियान और जब सर्व शिक्षा अभियान समाप्त हुआ, तो समग्र शिक्षा अभियान में समायोजित कर दिया गया। वेतन का नाम भी बदल कर फिक्स मानदेय, वह भी अनुबंध आधारित हो गया। प्रतिवर्ष अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर होते हैं। प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत मानदेय वृद्धि के अलावा कुछ नही मिलता। वर्तमान में 494 लोक जुंबिश कर्मी पिछले 18 सालों से फिक्स मानदेय पर अपने परिवार का गुजारा करने को विवश हैं। वर्ष 1992 से 1995 की अवधि में लगे ये कार्मिक नियमित होने की आस में अपनी अधिकतम आयु सीमा भी पार कर चुके हैं।
हमसे ही भेदभाव क्यों
जब 2004 मे लोक जुंबिश को समाप्त किया, उस समय 948 कर्मचारी थे, जिनमे से 225 बीएसटीसी, बीएड को प्रबोधक के पदों पर लगाया और अब उन्हें वरिष्ठ प्रबोधक पदों पर पदोन्नति की प्रक्रिया में शामिल कर लिया है, जबकि उनके साथ ही सेवा में आए ये 494 लोक जुंबिश कार्मिक आज अनुबंधित कर्मचारी होने का दंश झेल रहे हैं।
प्रस्ताव ही नहीं भेजे
अखिल राजस्थान सर्व शिक्षा अभियान कर्मचारी संघ के उपाध्यक्ष ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उमा देवी बनाम मध्य प्रदेश सरकार में 10 अप्रेल 2006 में दिए निर्णय में ये प्रतिपादित किया कि जिन अनुबंध कार्मिकों ने 10 साल की सेवा पूरी कर ली हो, उन्हें नियमित किया जाए। लेकिन तत्कालीन राजस्थान प्रारंभिक शिक्षा परिषद ने इन लोक जुंबिश कर्मचारियों के लिए कोई प्रस्ताव सरकार को नहीं भेजे जिससे कि इन्हें नियमित या अन्य विभागों में समायोजित किया जा सकता। लोक जुंबिश कर्मी तो बाकायदा वित्त विभाग द्वारा बनाए गए सेवा नियमों से संचालित हो रहे थे।