माइंस विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुबोध अग्रवाल ने गुरुवार को जयपुर में एक बैठक में पोटाश पर रिपोर्ट पेश की। इसमें पोटाश खनन शीघ्र शुरू करने की जानकारी दी। पोटाश खनन शुरू होने पर बीकानेर क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। अग्रवाल ने बताया है कि राज्य में मात्र 500 से 700 मीटर गहराई पर ही पोटाश के विपुल भण्डार के संकेत मिले हैं। जबकि दुनिया के पोटाश भण्डार वाले देशों में पोटाश की उपलब्धता एक हजार मीटर या इससे भी अधिक गहराई में है। प्रदेश के बीकानेर और हनुमानगढ़ में सिल्वाइट और पॉलिहाइलाइट पोटाश के संकेत मिलने से कन्वेशनल माइनिंग व सोल्यूशन माइनिंग तकनीक से पोटाश खनन का रास्ता खुल गया है।
जी-4 स्तर का कर चुके एक्सप्लोरेशन एसीएस (माइंस) डॉ. अग्रवाल और भारत सरकार के उपक्रम मिनरल एक्सप्लोरेशन कंसलटेंसी के सीएमडी घनश्याम शर्मा के बीच जयपुर सचिवालय में मुलाकात हुई। इस दौरान पोटाश की खोज व खनन की संभावनाओं पर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बीकानेर के लखासर के 99.99 वर्गमीटर क्षेत्र में 26 बोर किए गए हैं। इसमें एमईसीएल की ओर से 22 बोर और जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से 4 बोर किए गए। इसमें दोनों ही तरह के पोटाश यानी सिल्वाइट व पॉलिहाइलाइट के संकेत मिले हैं। हनुमानगढ़ के सतीपुरा में जीएसआइ की ओर से 300 वर्गमीटर क्षेत्र में किए एक्सप्लोरेशन में पोटाश के संकेत मिल चुके हैं। दोनों ही स्थानों पर जी 4 व जी 3 स्तर का एक्सप्लोरेशन हो चुका है।
अब खनन करने के निर्देश जारी रिपोर्ट में कहा गया कि अब सतीपुरा में सीधे माइनिंग कार्य के लिए सीएल कम एमएल ऑक्शन की कार्यवाही की जा सकती है। वहीं लखासर में अभी पहले चरण में 8 और बोर के माध्यम से एक्सप्लोरेशन की आवश्यकता है। इसके साथ ही यहां भी प्लॉट तैयार कर कंपोजिट लाइसेंस की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। इसके लिए माइंस विभाग को आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं।
फर्टिलाइजर में देश होगा आत्मनिर्भर डॉ. अग्रवाल ने बताया कि अभी देश में पोटाश फर्टिलाइजर के लिए विदेशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रदेश में पोटाश के खनन की प्रक्रिया शुरू होने से विदेशों से फर्टिलाइजर आयात की निर्भरता कम होगी। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी और प्रदेश भी विकास में आगे बढ़ेगा। ज्ञात रहे कि पोटाश का सर्वाधिक उपयोग खाद बनाने में होता है, जिसका उपयोग कृषि में किया जाता है।
दोनों तरह की माइनिंग संभव एमईसीएल के सीएमडी घनश्याम शर्मा ने रिपोर्ट सोंपते हुए बताया कि सिल्वाइट पोटाश में सोल्यूशन माइनिंग की आवश्यकता होती है। जबकि पॉलिहाइलाइट पोटाश में पंरपरागत तरीके से माइनिंग की जा सकती है। प्रदेश में दोनों ही तरह की माइनिंग की संभावनाएं उभर कर आई हैं। पोटाश का एक्सप्लोरेशन और संकेत आत्म निर्भर भारत की दिशा में बढ़ता कदम है। राजस्थान में पोटाश खनन से देश में खेती के लिए पोटाश फर्टिलाइजर की आवश्यकता को काफी हद तक पूरा किया जा सकेगा।