पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने स्कूलें खुलने के बाद ही फीस जमा करवाने से जुड़ा आदेश जारी करने के बाद सक्षम अभिभावकों ने भी फीस जमा करवाने से हाथ खींच लिए हैं। उन्होंने बताया कि कुछ संगठन फीस माफी का मुद्दा उठा रहे हैं, जो स्कूल संचालकों के साथ किसी मजाक से कम नहीं है। संघ की प्रदेशाध्यक्ष हेमलता शर्मा ने बताया कि निजी स्कूल संचालक निरंतर ऑनलाइन क्लास के माध्यम से विद्यार्थियों को अध्ययन करवा रहे हैं। वहीं स्कूल में कार्यरत शिक्षकों और अन्य स्टाफ को मासिक भुगतान भी कर रहे हैं।
इसके बावजूद अभिभावकों की ओर से फीस जमा नहीं करवाई जा रही है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सरकार को आगे आकर स्कूल संचालकों की मदद करनी चाहिए। उन्होंने विभिन्न मद में स्कूलों की ओर से जमा करवाई जाने वाली राशि को वापिस लौटाने और विद्यार्थियों की शेष रही फीस को जमा करवाने के आदेश जारी करने की मांग उठाई। शर्मा ने बताया कि आर्थिक तंगी के चलते प्रदेश के सात स्कूल संचालक आत्महत्या कर चुके हैं।
आंदोलन की चेतावनी
प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने बताया कि सरकार ने समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आगामी दिनों में प्रदेश के स्कूल संचालक और करीब ग्यारह लाख कार्मिक सड़कों पर उतरने से भी नहीं कतराएंगे। इस संबंध में सोमवार को संघर्ष समिति ने शिक्षा निदेशक माध्यमिक को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा। संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक एवं प्राइवेट एज्यूकेशनल इंस्टीट्यूट्स प्रोसपैरिटी एलायंस (पैपा) के प्रदेश समन्वयक गिरिराज खैरीवाल ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों की जायज मांगों के निस्तारण का निस्तारण करते हुए शिक्षा मंत्री को फीस संबंधी निकाले आदेश को वापिस लेना चाहिए।
उन्होंने बताया कि पिछले 3 वर्षों से आरटीई एक्ट के तहत बकाया फीस का भुगतान भी राज्य सरकार ने नहीं किया है। संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक एवं गैर सरकारी स्कूल महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष जितेंद्र अरोड़ा, संघर्ष समिति के मुख्य संरक्षक एवं स्वयं सेवी शिक्षण संस्था संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष कोडाराम भादू, संघर्ष समिति के संयोजक विपिन पोपली ने बताया कि सरकार लाखों कर्मचारियों को अनदेखा कर अपनी मनमानी कर रही है। इस अवसर पर संघर्ष समिति की प्रवक्ता सीमा शर्मा, कुलदीप सिंह राठौड़ आदि पदाधिकारी उपस्थित थे।