महिलाएं करती हैं गायन
‘टप्पा’ गीतों का गायन महिलाएं सामूहिक रूप से करती हैं। महिलाएं जब मांगलिक रस्म के दौरान सगे-संबंधियों के घर पहुंचती हैं, तो इन ‘टप्पा’ गीतों का भी गायन करती हैं। महिलाएं सगे-संबंधियों के परिवार के पुरुषों, महिलाओं, कुंवारे लडक़ों आदि के नाम लेकर इन ‘टप्पा’ गीतों से मसखरी करती हैं। मनुहार के दौरान रहने वाली कमियों को भी ‘टप्पा’ गीतों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
ये है प्रसिद्ध
पुष्करणा ब्राह्मण समाज में होने वाली शादियों के दौरान गाए जाने वाले ‘टप्पा’ गीतों में ‘छान हाले छपरो हाले’, ‘कांच री कतरनी जीभ रो लेखो’, ‘छाजले में छाजलो’, ‘थोरे सगा जी रे धन घणो छै’, ‘हाथ में हाथ बाजार में काथो’, ‘रंग छै जी रंग छै’, ‘बोल्यो रे बोल्यो’, ‘इणगी जोऊ उणगी जोऊ’, ‘गलबल गलगल क्या करै’, ‘और बात री रेलपेल पौंणी री सकड़ाई रे’ सहित कई ‘टप्पा’ गीतों का गायन महिलाएं करती हंै, जिनको सगे-संबंधियों की ओर से दाद भी मिलती है।
खुशनुमा बनता है माहौल
विवाह की मांगलिक रस्मों के दौरान सगे-संबंधियों की महिलाओं की ओर से गाए जाने वाले ‘टप्पा’ गीतों के दौरान घर, परिवार और मोहल्लों में खुशनुमा माहौल बनता है। सगे-संबंधियों के परिवारजन इन ‘टप्पा’ गीतों को बड़े उत्साह के साथ सुनते हैं। इन गीतों की राग, लय, ताल और शब्द दशकों से चल रहे हैं। विवाह कार्यक्रमों के दौरान चावल, खोळा, प्रसाद, बान-बनावा, मायरा, खिरोड़ा, लग्न,गणेश परिक्रमा, विवाह, बरी, गुड्डी जान सहित विभिन्न मांगलिक कार्यक्रमों के दौरान गाए और सुने जाते हैं।