वार्ड ५४ के एक मकान में मिली नैना देवी ने बताया कि माता-पिता मजदूरी करने चले जाते है। घरों में पानी के कनेक्शन नहीं है। सार्वजनिक नल से परिवार पानी भरते है। इन दिनों नल में पानी नहीं आ रहा है। एेसे में दूसरे मोहल्लों और कुओं से पानी लाना पड़ रहा है। घर पर बच्चियां ही रहती है वह दिन में सिर पर मटकी रखकर आस-पास के मोहल्लों और कुओं से पानी लेकर आती है।
पार्षद युनुस अली ने बताया कि अशिक्षा व जागरुकता के अभाव में कुछ बालिकाएं स्कूल जाती है, कुछ नहीं जा पाती है। एेसे में अब पानी की किल्लत में पहली मजबूरी पानी भरने की है। आज पत्रिका ने इस मुद्दे को फोटो के माध्यम से उठाया तब वह मोहल्ले में पहुंचे और पता किया। अब वह निजी स्तर पर टैंकर लगाकर वार्ड में पानी उपलब्ध कराएंगे। जिससे पानी की किल्लत के चलते बच्चियां शिक्षा से वंचित नहीं रहे।
पीने के पानी की जुगत में ही निकल जाता है दिन बीकानेर . ‘कांई करां साब्! पाड़ोस्यां सूं एक-आध मटकी, बाल्टी पाणी ल्यावां हां… यह कहना है रानीसर बास की रहने वाली बुजुर्ग महिलाओं व वाशिंदों का। वार्ड ५४ में आचार्य श्मसान भूमि के पीछे गली में स्थिति इतनी विकट है कि यहां रहने वाले लोगों के घरों में पानी का कनेक्शन आज भी नहीं है। एेसे में इन लोगों को आस-पास की गलियों के घरों में से पानी भरकर लाना पड़ता है। गली में सार्वजनिक स्टैण्ड के नाम पर महज एक टौंटी लगी है, वो भी लगभग जमींदोज है, और इसमें पानी भी बहुत ही कम प्रेशर से आता है। क्षेत्र के लोगों ने रोष जताते हुए बताया कि दो-तीन दिनों से एक बार और वो भी चंद मिनटों के लिए पानी आता है। यही वजह है कि आस-पास की गलियों में उन लोगों के घरों से पानी भरकर लाते है, जिनके यहां पानी का कनेक्शन है। इनसे भी एक-एक मटकी, बाल्टी पानी ही ला पाते हैं। पीने के पानी की जुगत में ही पूरा दिन निकल जाता है।
क्या कहते हैं लोग
क्षेत्र में रहने वाले सूरज ने बताया कि यहां पनी की जबर्दस्त किल्लत है। विभागीय स्तर पर पेयजल की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हुई है। मांग कर पानी लाने के अलावा कोई चारा नहीं है। बस्ती की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बुजुर्ग महिला राधा देवी ने बताया कि इन दिनों गर्मी के कारण पानी की खपत अधिक है। एेसे में जैसे-तैसे कर लोगों के घरों से एक छोटी मटकी भरकर सुबह ले आती है, फिर अगले दिन वही प्रक्रिया। इसी तरह नैना देवी का कहना है कि उनके यहां तो कनेक्शन ही नहीं है। मोहल्ले में सार्वजनिक स्टैण्ड के कोई मायने नहीं है, पीने के पानी की जुगत बिठाने में मुश्किल हो रही है।
क्षेत्र में रहने वाले सूरज ने बताया कि यहां पनी की जबर्दस्त किल्लत है। विभागीय स्तर पर पेयजल की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हुई है। मांग कर पानी लाने के अलावा कोई चारा नहीं है। बस्ती की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बुजुर्ग महिला राधा देवी ने बताया कि इन दिनों गर्मी के कारण पानी की खपत अधिक है। एेसे में जैसे-तैसे कर लोगों के घरों से एक छोटी मटकी भरकर सुबह ले आती है, फिर अगले दिन वही प्रक्रिया। इसी तरह नैना देवी का कहना है कि उनके यहां तो कनेक्शन ही नहीं है। मोहल्ले में सार्वजनिक स्टैण्ड के कोई मायने नहीं है, पीने के पानी की जुगत बिठाने में मुश्किल हो रही है।