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चमत्कारों के चलते प्रसिद्ध हैं सरहद के ये आस्था स्थल

locationबीकानेरPublished: Feb 19, 2020 12:52:31 am

Submitted by:

Hari

सरहद सुरक्षित तभी रहती हैं जब सुरक्षा व्यवस्था कड़ी हो। भारत-पाक की राजस्थान के चार जिलो से लगती सरहद की सुरक्षा के साथ आस्था का मामला भी जुड़ा है। वैसे तो राजस्थान में सीमा सुरक्षा बल की लगभग हर सीमा चौकी पर मंदिर बने हैं। इनमें दो मंदिर तो ऐसे भी हैं, जिनके चमत्कार के चर्चे दूर-दूर तलक हैं। इनमें एक जैसलमेर जिले का तनोट माता मंदिर है तो दूसरा श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर इलाके की नग्गी पोस्ट पर स्थित दुर्गा मंदिर है। नवरात्र के दौरान इन दोनेां मंदिरों में काफी श्रद्धालु आते हैं।

चमत्कारों के चलते प्रसिद्ध हैं सरहद के ये आस्था स्थल

चमत्कारों के चलते प्रसिद्ध हैं सरहद के ये आस्था स्थल

जैसलमेर. सरहद से चंद किलोमीटर पहले बने तनोट माता मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र तो है ही इसको सीमा प्रहरियों की हिफाजत करने वाला मंदिर भी माना जाता है। यहां पर 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से करीब 3 हजार बम बरसाए गए थे, लेकिन वे फट नहीं पाए। उनमें से 450 जिंदा बम आज भी मंदिर में माता के साक्षात चमत्कार के तौर पर सजा कर रखे गए हैं। युद्ध के बाद इस मंदिर के दर्शन करने पाक सेना के ब्रिगेडियर शाहनवाज खान भी पहुंचे थे।

बताते हैं कि खान ने माता के दर्शन के बाद चांदी का छत्र भी चढ़ाया। माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में पूजा-पाठ से लेकर व्यवस्थाओं का समूचा जिम्मा सीमा सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी ही उठाए हुए है। विदित रहे कि तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने विक्रम संवत 1 787 को माघ पूणिमा के दिन बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
श्रीकरणपुर . किवदंती है कि नग्गी में शहीद स्मारक व दुर्गा मंदिर बनने के पीछे एक अदृश्य शक्ति की प्रेरणा रही। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जब 4 पैरा बटालियन दुश्मन पर आक्रमण के लिए बढ़ रही थी तो एक निश्चित स्थान पर कंमाडिंग अफसर को अदृश्य शक्ति ने आवाज देकर आगे बढऩे से रोका था लेकिन उच्चाधिकारियों के आदेश के कारण कंमाडिंग अफसर ने इसकी परवाह नहीं की। भारतीय सैनिक कुछ दूरी पर ही गए थे कि पाकिस्तान के बिछाए माइंस की चपेट में आने से शहीद होने लगे।

पाकिस्तानी हमले में 4 पैरा बटालियन के तीन अधिकारी व 18 जवान शहीद हो गए। तब बाकी सैनिकों ने रास्ता बदलकर दुश्मन पर हमला किया और विजय हासिल की। बाद में फिर अदृश्य शक्ति की आवाज आने पर बटालियन के उच्चाधिकारियों ने यहां उसी स्थान पर शहीद स्मारक व मां दुर्गा का मंदिर बनवाया, जहां माइंस की चपेट में आकर जवान शहीद हुए थे। अब हर साल 28 दिसम्बर को यहां मेला भरता है, जिसमें शहीद सैनिकों के परिजन, सेना के अधिकारी व आसपास के लोग शामिल होते हैं।
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