यह पौधा अंग्रेजी बबूल, केर, खेजड़ी, जाल के सहारे चढ़े हुआ मिलता है। हालांकि यह पौधा पहले भी देखा गया था। इस पौधे को ऊँट फोंग के नाम से जाना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लुप्त होने का कारण है कि भीषण अकाल, एग्रीकल्चर लेंडिंग तथा वातावरण बदलाव के कारण लुप्त हुआ। इस पौधे की विशेषता है कि करीब सात व आठ फीट का पौधा 40 सालों तक जीवित रह सकता है।
यह पौधा आईयूसीएल की रेड लिस्ट में भी है। इस पौधे के मीठे सीड़ होने के कारण सभी पक्षी इस पौधे के पास आते है। विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरे देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी वहां इंफ्रेडा फोलइएटा पौधे के बीज खाकर यहां हजारों किलोमीटर दूर सफर तय कर यहां पहुंचते हैं और यहां जोड़बीड़ में बीज छोड़ते हैं। जिससे यह बीज कई दिनों बाद पौधे का रूप ले लेता है।
यहां पाया जाता है पौधा
यह पौधा अफगानिस्तान, अल्जीरिया, इथोपिया, इराक, सोमालिया, पाकिस्तान व भारत में पाया जाता है। यह भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पाया जाता है लेकिन इन इलाकों में कैनाल लगने से यह पौधा लुप्त होने लगा है। इसके बाद अभी वर्तमान में गुजरात में पाया जाता है।
अस्थमा व एलर्जी के लिए उपयोगी
इंफ्रेडा फोलइएटा आमतौर पर अस्थमा व एलर्जी के लिए उपयोग में लिया जाता है। लेकिन ज्यादा दोहन के कारण यह लुप्त हो गया था। इनका कहना है
इस पौधे की मैपिंग करवाकर रिसर्च किया जाएगा। यह पौधा ज्यादातर बाहर ही पाया जाता है। बीकानेर में यह २५ साल बाद पाया गया है।
डॉ. अनिल कुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान विभाग, एमजीएसयू, बीकानेर