केस- दो 8 अक्टूबर-2016 को बरसिंहसर गांव से संजना (काल्पनिक नाम) प्रसव पीड़ा के चलते जनाना अस्पताल में भर्ती हुई। तीन दिन भर्ती रहने के बाद चिकित्सकों ने अपनी बला टालते हुए प्रसव अभी नहीं होने का कहकर घर भेज दिया। हुआ यह है कि मंगलवार 11 अक्टूबर-2016 को परिजन प्रसूता को लेकर घर के लिए रवाना हो गए। इस दरम्यिान बीच रास्ते में प्रसव हो गया। प्रसव की समुचित व्यवस्था और संसाधन नहीं होने से नवजात शिशु की मौत हो गई।
संभाग के सबसे बड़े पीबीएम के जनाना अस्पताल की साख दिन-ब-दिन गिर रही है। मातृ-शिशु मृत्युदर को कम करने के लिए सरकार विभिन्न तरह की योजनाएं व कार्यक्रम चला रही है जबकि संभाग मुख्यालय पर पहुंचने वाली प्रसूताओं की जनाना अस्पताल में केयर तक नहीं होती।
हालात यह है कि कई प्रसूताओं की संपूर्ण जांचें कराए बिना ही वापस घर भेज दिया जाता है और जो यहां भर्ती की जाती है उनकी भी सारसंभाल तक नहीं की जाती। हर दिन होते करीब 60 प्रसव
जनाना अस्पताल में हर दिन लगभग 60 प्रसव कराए जाते हैं, जिनमें 45 सामान्य और करीब 15 सिजेरियन होते हैं। लेबर रूम में 14 लेबर टेबलें लगी हुई है। यहां राउंड द क्लॉक नर्सिंग स्टाफ, रेजीडेंट चिकित्सक, सीनियर रेजीडेंट की ड्यूटी लगती है। हर समय 10 चिकित्सकों व नर्सिंग का स्टाफ मौजूद रहता है।
बहाने भी अजीब जनाना अस्पताल में प्रसूताओं को लेकर रोज-रोज होने वाले बवाल पर अस्पताल प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा है। नतीजन आए दिन कोई न कोई विवाद होता है। विवाद के कारण भी अजीब बताए जाते हैं।
चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ कहते हैं कि मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा, जांच, जननी सुरक्षा योजना से भीड़ बढ़ी है। ऐसे में काम तीन गुना हो गया है। इन हालातों में प्रसूताओं की पूरी तरह से केयर नहीं की जाती।