ठाकुरजी ने ओढ़ी रजाई, भोजन की थाली का बदला मीनू
सर्दी की दस्तक के साथ बदली दिनचर्या, लगाया जा रहा है सौंठ के लड्डू का भोग

मार्गशीर्ष (मिगसर) माह शुरू होने के बाद भी दोपहर के समय भले ही आम लोगों को गर्मी का अहसास हो रहा है। पंखें भी चल रहे हैं, लेकिन पुष्टिमार्गी परम्परा के अनुसार ठाकुरजी को सर्दी से बचाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। खासकर वैष्णव मंदिरों में ठाकुरजी (कृष्ण) का पहनावा, दिनचर्या व भोजन की थाली का मीनू बदल गया है।
अब ठाकुरजी की थाली में हल्के व्यंजन, शीतल पेय पदार्थों की जगह सर्दी से बचाने वाले खाद्य पदार्थों ने ले ली है। मुख्यतौर पर घी, दूध के साथ ही सौंठ, गौंद, मेवा आदि से बने गर्म खाद्य वस्तुओं का भोग लगाया जा रहा है।
वहीं हल्के वस्त्र की बजाय ठाकुरजी ने अब गहरे रंग के वस्त्र, ऊनी वस्त्र धारण कर लिए हैं। इसी तरह दिनचर्या भी बदल गई है। ठाकुरजी शाम को साढ़े छह बजे बाद सो जाते हैं। यह क्रम पुष्टिमार्गी श्रद्धालुओं के घर में होने वाली ठाकुरजी की पूजा में भी चलता है।
ओढ़ी रुई रजाई
पुष्टीमार्गी श्रद्धालुओं की ऐसी मान्यता है कि ठाकुरजी को अब सर्दी लगने लगी है, ऐसे में उनके पहनावे में बदलाव कर दिया गया है। वर्तमान में गहरे रंग काला, नीला, लाल रंग के वस्त्र पहनाए जा रहे हैं, वहीं रुई से बनी रजाई (गदल) ओढ़ाई जा रही है ताकि सर्दी ना लग जाए। बसंत पंचमी तक इसी तरह के वस्त्र धारण करेंगे। वहीं बसंत पंचमी से होली तक सफेद वस्त्र पहनेंगे।
यह सामग्री परोसी
मौसम बदलते ही वैष्णव मंदिरों में ठाकुरजी के लगाए जाने वाले भोग की थाली में उदड़ की दाल, रोटी, बाजरे का खीचड़ा, सौंठ, बादाम, काजू, किसमिस, पिस्ता, गौंद के लड्डू, खीर, केशर दूध, पंजीरी के लड्डू, मनमोहर सरीखी खाद्य सामग्री परोसी जा रही है।
इन वैष्णव मंदिरों में बदली दिनचर्या
रतन बिहारी पार्क स्थित श्रीरतन बिहारी मंदिर, रसिक शिरोमणी मंदिर, दाऊजी मंदिर, छोटा गोपालजी, श्याम सुंदरजी, बि_लनाथजी, मदनमोहनजी, गिरीराजजी, द्वारिकाधीश, मूंधड़ा बागेची स्थित वैष्णव मंदिर में कृष्ण (ठाकुरजी) का पहनावा और खान-पान बदल गया है।
बाल गोपाल हैं ठाकुरजी
जगतगुरु पंचम पीठाधीश्वर वैष्णवाचार्य गोस्वामी वल्लभाचार्य महाराज बताते हैं कि पुष्टिमार्गी सम्प्रदाय में ठाकुरजी के बाल गोपाल स्वरूप की सेवा (पूजा) करते हैं, तो ऐसी मान्यता है कि हमारे जैसे ही ठाकुरजी को भी सर्दी-गर्मी लगती है। इसी कारण परम्परा है कि मौसम के साथ ठाकुरजी की भोग की थाली, पहनावा, रहन-सहन बदलते हैं।
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