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सालभर के बच्चे ने निगली दो इंच लंबी पिन फेंफडें में जा फसीं, बेहाल हो गए परिजन अटक गईं सांसें, फिर डॉक्टरों ने लगाया ये दिमाग

locationबिलासपुरPublished: May 05, 2019 01:12:51 pm

Submitted by:

Murari Soni

कुछ समय बाद फेफड़े में फंसी पिन के आस पास घाव बनना शुरू हुआ और साथ ही बच्चे को खांसी व बुखार आने की शिकायत हुई।

Apollo doctors successful operation of 1 year old child

सालभर के बच्चे ने निगली दो इंच लंबी पिन फेंफडें में जा फसीं, बेहाल हो गए परिजन अटक गईं सांसें, फिर डॉक्टरों ने लगाया ये दिमाग

बिलासपुर. अपोलो के डॉक्टरों ने एक साल के बच्चे को नया जीवन दिया है। इस बच्चे ने एक पिन निगल थी और यह अंदर फेफड़े में फंस गयी। एक जटिल ऑपरेशन करके डॉक्टरों ने बच्चे को नया जीवनदान दिया। अब बच्चे के स्वस्थ होने से परिजन खुश हैं।
लगभग एक माह पूर्व बिल्हा क्षेत्र के ग्राम सोरियाकला, भटगांव निवासी चंद्रिका बाई के एक साल के पुत्र ने महिलाओं के बालों में लगाने वाली लगभग 2 इंच लम्बी पिन निगल ली थी। ये पिन श्वास नली से होते हुए बायें फेफड़े के निचले हिस्से तक पहुंच गयी थी। पिन बायें फेफड़े के निचले हिस्से में होने के कारण व दांये फेफड़े की सहायता से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत नहीं हो रही थी परन्तु कुछ समय बाद फेफड़े में फंसी पिन के आस पास घाव बनना शुरू हुआ और साथ ही बच्चे को खांसी व बुखार आने की शिकायत हुई।
Apollo doctors successful operation of 1 year old child
कई जगह इलाज कराने पर भी कोई फायदा नहीं मिलने पर बच्चे की मां, अपने भाई की सहायता से अपोलो हॉस्पिटल में डॉ. पीपी मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार नाक कान गला विभाग से संपर्क किया। डॉ मिश्रा ने बच्चे को देखते ही छाती का एक्सरे व सीटी स्केन कराने की सलाह दी। रिपोर्ट में पाया गया कि पिन के चारों ओर घाव बन चुका है व मांस जम चुका है। पिन की सही स्थिति का निर्धारण होने के उपरांत डॉ मिश्रा नें वरिष्ठ निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ रसिका कानस्कर व डॉ विनीत श्रीवास्तव के साथ सलाह कर इसे निकालने की प्रक्रिया आरंभ की।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि सामान्यत: ऐसे ऑपरेशन में टेलेस्कोप के साथ ऑक्सीजन ट्यूब भी डाली जाती है, जिससे मरीज की सांस निरंतर चलती रहे, परन्तु इतने छोटे बच्चे की श्वास नली पतली होने के कारण यह काफी कठिन था। इस कठिनाई को देखते हुये डॉ मिश्रा ने सी आर्म चलित एक्सरे की सहायता से पिन को निकालने का निर्णय लिया। संपूर्ण चिकित्सकीय सुरक्षा के साथ इस प्रक्रिया में बच्चे को श्वास देते हुये पिन को निकालने में एक और समस्या थी कि पिन का खुला हुआ हिस्सा ऊपर की ओर था जो कि उसे निकालने में आसपास के टिश्यू व फेफड़े को नुकसान पहुंचा सकता था। इसलिए सी आर्म में देखते हुये बच्चे को श्वास देने के बहुत छोटे-छोटे अंतराल में पिन को सावधानी से निकाला गया। इसमें दो से ढाई घंटे का समय लगा।
डॉ मिश्रा ने आगे बताया कि स्थिति इतनी जटिल थी कि पिन को छूने मात्र से घाव से खून निकलना शुरू हो जाता था जो कि आगे निमानिया आदि का कारण हो सकता था। डॉ इंदिरा मिश्रा वरिष्ठ सलाहकार शिशु रोग ने बताया कि 3 साल से छोटे बच्चों में एक तरह की आदत होती है कि वे अपने आसपास की चीजों को मुंह में डाल लेते हैं। ऐसे में जरूरी है कि हमें ऐंसी चीजों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिये। डॉ. सजल सेन सीओओ अपोलो हॉस्पिटल नें कहा कि वर्तमान में एकल परिवारों में जहां माता पति दोनों ही कामकाजी हैं, घटना होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है,इसलिए माता पति को इस ओर अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
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