2003 में कांग्रेस को मिले थे 3 लाख 94 हजार वोट बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में के भीतर आने वाली विधानसभाओं में छत्तीसगढ़ के पहले चुनाव में कांग्रेस को 3 लाख 94 हजार 634 वोट मिले थे। जबकि इस समय अजीत जोगी कांग्रेस में ही हुआ करते थे। जिन्होंने 2018 में अपनी पार्टी के हारे-जीते उम्मीदवारों के खाते में 2 लाख 80 हजार से अधिक वोट पाए हैं। तकनीकी विश्लेेषण में इन्हें हटा दें तो कांग्रेस 2003 में करीब सवा लाख वोट पर सिमट जाएगी।
2008 में 60 हजार बढ़े, पर 2018 से बहुत पीछे प्रदेश के दूसरे विधानसभा चुनावों में देखें तो कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन को बेहतर करते हुए 4 लाख 9 हजार 961 वोट हासिल किए। लेकिन तब भी जोगी कांग्रेस के साथ पूरी मजबूती से थे। तब कोटा के करीब 50 हजार वोट और सियाराम कौशिक के करीब 60 हजार वोट भी शामिल थे। ऐसे में 2008 में तकनीकी विश्लेषण में यह प्रदर्शन सुधरकर भी कांग्रेस को महज ढाई लाख वोट पर समेटता दिखता है। सीधे-सीधे तौर पर भी यह 2018 में मिले वोट से करीब डेढ़ लाख मत कम है।
2013 में जबरदस्त उछाल, लेकिन 2018 से फिर भी कम 2013 में कांग्रेस झीरम कांड जैसे बड़े मामले के बावजूद यहां पिछड़ गई। बिलासपुर के बाजपेयी समेत अनेक नेता इस हमले के शिकार हुए थे। सहानुभूति की लहर थी। बावजूद बिलासपुर में पार्टी वोट बढ़ाने में काम तो हुई, लेकिन फिर इस वक्त भी जोगी का प्रभाव था। इस साल कांग्रेस ने 4 लाख 79 हजार 324 वोट हासिल किए। लेकिन यह बढ़त 4 महीने बाद लोकसभा-2014 में हवा हो गई, जब बिलासपुर की सीट अपने इतिहास में भाजपा ने सर्वाधिक मार्जिन से जीती।
2018 मेंं सबसे अच्छा प्रदर्शन जोगी और भाजपा के साथ समानांतर लड़ाई में सबकी निगाह में बिलासपुर लोकसभा में आने वाली 8 सीटें थी। चूंकि जोगी यहां पर ही अपना वर्चस्व दिखाना चाहते थे। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं ने बीते एक साल में ताबड़तोड़ दौरे करके जोगी की मांद मेंं उन्हें चुनौती देना शुरू कर दिया। पुनिया, भूपेश, टीएस सिंहदेव, चंदन यादव जैसे बड़ा नेता सप्ताह में एक दिन औसतन बिलासपुर में डेरा डालने लगे। इसी में जिला संगठन ने पार्टी को शक्ति एप, किसान कर्जमाफी, पीडीएस, धान बोनस, धान खरीदी में लेट-लतीफी और घपलों को बारीकी से उठाना शुरू किया। जिला अध्यक्ष विजय केशरवानी समेत पूरी टीम ने बिलासपुर लोकसभा एवं जिले की हर सीट के दूरस्थ गांवों तक अपनी सीधी पहुंच बनानी शुरू की। बड़े नेताओं की आमद और स्थानीय संगठन की अथक सक्रियता ने रिकॉर्ड बना दिया। 2018 में कांग्रेस को बिलासपुर लोकसभा में आने वाली 8 सीटों पर 4 लाख 44 हजा 835 वोट मिले। जबकि जोगी की नई पार्टी ने भी जोर मारते हुए ढाई लाख वोट हथिया लिए। कांग्रेस को 2 सीटें वे मिली जो क्रमश: 10 और 20 साल से भाजपा की थी। वहीं जोगी ने भी 2 सीटें तोड़ ली, जोकि कांग्रेस की थी। इस तरह से देखें तो कांग्रेस ने बीते एक साल में जो मेहनत की उसका नतीजा यह सामने था।
बिलासपुर में कांग्रेस की सीटें हमेशा रही हैं कम 1998 से लेकर 2018 तक 2003 छोड़कर ऐसा कभी नहीं हुआ कि बिलासपुर लोकसभा में कांग्रेस के विधायक ज्यादा रहे हों। 2003 में भी अधिक विधायकों के बावजूद 2004 के चुनाव में भाजपा के पुन्नूलाल मोहले 83 हजार वोटों से जीते थे। यहां हमेशा से ही कांग्रेस सीटों के मामले में पीछे रही है, जबकि जोगी के प्रभाव के बाद भी पार्टी हासिल नहीं कर पाई, जो 2018 में किया।
2018 फरवरी तक थी कांग्रेस रेस से बाहर फरवरी 2018 तक कांग्रेस की हालत पतली थी। 2016 में जोगी के अलग होने के बाद अमित जोगी के नेतृत्व में जोगी कांग्रेस सबसे ज्यादा सक्रिय थी। त्रिकोण का सियासी फायदा उठाने के लिए भाजपा पूरी तरह से आश्वस्त थी। ऐसे में मृतप्राय पड़ा बिलासपुर कांग्रेस का संगठन विपक्ष में होने के बावजूद प्रदर्शनों की रस्म तक अदा नहीं करता था। पूरे बिलासपुर में या तो गुलाबी रंग के साथ जोगी कांग्रेस के प्रदर्शन होते थे या भाजपा के। ऐसे में दौड़ से बाहर कांग्रेस ने सिर्फ एक साल में कमबैक किया। राष्ट्रीय नेताओं की सक्रियता और भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत की बिलासपुर में हर सप्ताह आमद और जिला कांग्रेस संगठन की हाड़तोड़ मेहनत सूरत बदल दी।
वर्ष- विधानसभा में वोट- लोकसभा में वोट- सीटों की स्थित
2003- 394634- 243176- 7 कांग्रेस, 1 भाजपा
2008- 409961- 214931- 2 कांग्रेस, 6 भाजपा
2013- 479324- 384951- 3 कांग्रेस, 5 भाजपा
2018- 444835- चुनाव होंगे- 2 कांग्रेस, 2 जकांछ, 4 भाजपा
2003- 394634- 243176- 7 कांग्रेस, 1 भाजपा
2008- 409961- 214931- 2 कांग्रेस, 6 भाजपा
2013- 479324- 384951- 3 कांग्रेस, 5 भाजपा
2018- 444835- चुनाव होंगे- 2 कांग्रेस, 2 जकांछ, 4 भाजपा