जोगी की मदद या बसपा का साथ भाजपा अगर अपने कोटे से राज्यसभा किसी को भेजना चाहेगी तो उसे बसपा के 2 विधायकों की या जकांछ के 5 विधायकों में से दो का साथ चाहिए होगा। जकांछ की सक्रियता जोगी परिवार पर चल रहे मुकदमों के चलते कम हुई है। ऐसे में सत्तारूढ़ कांग्रेस का जकांछ पर दबाव है। वह भाजपा के साथ जाए यह संभव नहीं। वहीं बसपा भी गैर सत्तादल के साथ जाने का जोखिम नहीं लेगी। इसके अलावा एक साथ चुनाव की स्थिति में ही वरीयता क्रम से कोई चांसेज होते, जो कि संभव नहीं।
नई सरकार के बाद पहला राज्यसभा चुनाव अप्रैल में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने के बाद पहला राज्यसभा चुनाव अप्रैल 2020 में होगा। भाजपा कोटे से राज्यसभा सांसद रणविजय सिंह जूदेव का कार्यकाल 9 अप्रैल 2020 को खत्म हो रहा है। साथ ही इसी तारीख में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मोतीलाल वोरा का भी कार्यकाल खत्म होगा। इस लिहाज से देखें तो पहले चुनाव की दोनों सीटें बहुत आसानी से कांग्रेस जीतेगी। इसके बाद 2021 में कोई राज्यसभा चुनाव नहीं हैं। 2022 में दो सीटों के लिए चुनाव होंगे। 2022 जून में कांग्रेस की छाया वर्मा और भाजपा के रामविचार नेताम का कार्यकाल समाप्त होगा। इसके बाद आखिरी चुनाव भाजपा की राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का अप्रैल 2024 में होगा। हालांकि 2024 के चुनाव से पहले साल 2023 में राज्य के विधानसभा चुनाव पड़ जाएंगे। इन चुनावों के नतीजों के मुताबिक इस सीट का फैसला होगा।
ऐसे होता है राज्यसभा निर्वाचन छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की 5 सीटें आती हैं। एक सदस्य के चुनाव लिए निर्वाचन के फॉर्मूले के तहत कम से कम 16 विधायकों का होना जरूरी है। 90 सीटों वाली विधानसभा में प्रत्येक विधायक की वोट वैल्यू न्यूनतम 100 के हिसाब से कुल 9 हजार वोट होते हैं। 9 हजार वोट में 5 सीट में एक जोड़कर भाग दिया जाता है। यानी 90 में 6 का भाग देकर 15 संख्या आती है। प्राप्त संख्या में 1 जोड़कर एक राज्यसभा निर्वाचन के लिए 16 विधायकों की जरूरत बनती है।
किसकी कब खत्म होगा कार्यकाल 1. रणविजय सिंह जूदेव, भाजपा- 9 अप्रैल-2020
2. मोतीलाल वोरा, कांग्रेस- 9 अप्रैल 2020
3. रामविचार नेताम, भाजपा- 29 जून 2020
4. छाया वर्मा, कांग्रेस- 29 जून 2020
5. सरोज पांडेय, भाजपा- 2 अप्रैल 2024
वर्जन
राज्यसभा निर्वाचन फॉर्मूले के तहत छत्तीसगढ़ में एक राज्यसभा सीट के लिए कम से कम 16 विधायक होने चाहिए। वरीयता क्रम में दूसरे नंबर की च्वाइस चूंकि भरना जरूरी नहीं, इसलिए थोड़ी बहुत संभावना वह भी नहीं रह जाती। वरीयता क्रम का फायदा आमतौर पर अधिक विधायकों वाले दल को मिलता है। लेकिन जब एक साथ कई सीटों के लिए चुनाव हों तब। जैसा कि हमने उत्तर प्रदेश में देखा। वहां की सत्तारूढ़ पार्टी को नौवी सीट जीतने में वरीयता क्रम के जरिए कामयाबी मिली थी।
– सुशील त्रिवेदी, पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त, छत्तीसगढ़