लोकेश अहिरवार, ऋतु चौहान व अन्य ने सिंगल बेंच में याचिका खारिज होने के बाद डिवीजन बेंच में रिट अपील प्रस्तुत की थी। प्रकरण के अनुसार उक्त अपीलार्थियों की नियुक्ति 17 अगस्त 2021 को कृषि शिक्षक के पद पर हुई थी। सर्विस के लगभग 3 महीने बाद ही 25 नवम्बर 2021 को उन्होंने पीएचडी करने की अनुमति के लिए विभाग को संयुक्त आवेदन दिया। इसके लिए अवैतनिक अवकाश देने की मांग की गई। परिवीक्षा अवधि पूरी न होने के आधार पर विभाग ने उनका आवेदन निरस्त कर दिया। सिंगल बेंच में याचिका खारिज होने के बाद डिवीजन बेंच में अपील की गई कि इसके पूर्व में कुछ लोगों को परिवीक्षा अवधि पूरी न करने के बाद भी अध्ययन अवकाश दिया गया है। जबकि याचिकाकर्ताओं से भेदभाव किया जा रहा है, जो भेदभाव और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
पूर्व में गलत हुआ तो समानता के नाम पर इसे जारी नहीं रखा जा सकता सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 2010 के मद्देनजर अध्ययन अवकाश नहीं दिया जा सकता है। और अगर पूर्व में गलत अवकाश दिया भी गया तो याचिकाकर्ता नियमों के तहत गलत तरीके से छुट्टी देने वालों के साथ "नकारात्मक समानता" की मांग नहीं कर सकता । मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी और न्यायमूर्ति राजेंद्र चंद्र सिंह सामंत की खंडपीठ ने कहा: "संविधान का अनुच्छेद 14 अन्य मामलों में किए गए गलत फैसलों का विस्तार करके भी अवैधता या धोखाधड़ी को कायम रखने के लिए नहीं है। यदि पहले के मामले में कोई गलत किया गया है, तो उसे कायम नहीं रखा जा सकता। अवैधता में समानता का दावा नहीं किया जा सकता है और इसलिए, किसी नागरिक या न्यायालय द्वारा नकारात्मक तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है।"
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख कोर्ट ने बसवराज और अन्य के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का भी उल्लेख किया। इसमें यह माना गया था कि संविधान का अनुच्छेद 14 नकारात्मक समानता की परिकल्पना नहीं करता। इसका केवल सकारात्मक पहलू है। इसलिए अनजाने में या गलती से कुछ राहत या लाभ दिया गया था, तो ऐसा आदेश दूसरों को भी वही राहत पाने का कोई कानूनी अधिकार प्रदान नहीं करता है। इस अनुसार सिंगल बेंच के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार न पाते हुए डीबी ने अपील को खारिज कर दिया।