सन् 1998 से लगातार बिलासपुर विद्यानसभा क्षेत्र का प्रतिनिद्यित्व कर प्रदेश के कद्दावर मंत्री रहे अमर अग्रवाल को पहली बार 2009-10 के बिलासपुर नगर निगम के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की मेयर पद के प्रत्याशी वाणीराव के सामने दिवंगत पूर्व मेयर अशोक पिंगले की बहन मंदाकिनी पिल्ले को चुनाव मैंदान में उतारा और मंदाकिनी चुनाव हार गई।
दूसरी बार सन् 2018 के विद्यानसभा चुनाव में वे खुद नए नवेले कांग्रेस में आए कांग्रेस नेता शैलेष पाण्डेय से चुनाव हार गए। इसके बाद उनके दरबार में करीबियों का दुराव शुरू हो गया वे तब फिर ताकत बनकर उभरे जब प्रदेश संगठन ने निकाय चुनाव के लिए उन्हें प्रदेश प्रभारी नियुक्त कर जिम्मेदारी दी गई। 2019-20 में पूरे प्रदेश के निकायों में उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया परंतु वे अपने ही विद्यानसभा के बिलासपुर नगर निगम का चुनाव तक नहीं जीता सके। भाजपा को 70 में से महज 30 पार्षदों से संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस के 35 पार्षद जीतकर आए और 5 निर्दलीय पार्षद भी जीते। 5 निर्दलीय पार्षदों में से 3 कांग्रेस में और 2 भाजपा में चले गए जिससे कांग्रेस का आंकड़ा 38 तक पहुंच गया परंतु चुनाव परिणाम आने के पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विजयी पार्षद शेख गफ्फार के निद्यन के बाद कांग्रेस 37 और भाजपा के 32 पार्षद हो गए। बहुमत न मिलने का हवाला देकर भाजपा को मैदान छोडऩे का निर्णय लेना पउ़ा और इस बार भी उनकी हार हुई।
द्यरा रह गया डायलॉग-
शहर के एक हाँटल में भाजपा के स्थानीय निकाय का द्योषणा पत्र जारी करने के दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने बयान दिया था कि कांग्रेस चाहे जितना भी जोड़तोड़ कर ले परंतु बिलासपुर नगर निगम में किसी भी कीमत पर अपना मेयर नहीं बना पाएगी। उनका यह डॉयलाग द्यरा रह गया और कांग्रेस ने दोनों पद पर कब्जा जमाकर नगर सरकार बना ली।