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किले से चलती थी कल्चुरी राजवंश की सत्ता, मां ने दिए राजा को दर्शन फिर रतनपुर बनी राजधानी

locationबिलासपुरPublished: May 11, 2019 11:57:23 am

Submitted by:

Murari Soni

विरासत: दुर्गम पहाडिय़ों पर तुमान गांव के निकट बना है किला, वर्ष 2008-10 में खुदाई में मिले थे 20 मंदिर

Chhattisgarh unique story Of the Calcutary Dynasty

किले से चलती थी कल्चुरी राजवंश की सत्ता, मां ने दिए राजा को दर्शन फिर रतनपुर बनी राजधानी

शिव सिंह
बिलासपुर. मैकाल की पहाडिय़ों के अंचल में बसे तुमान गांव के किनारे खड़ा ऐतिहासिक किला कभी कल्चुरी वंश के शासकों की सत्ता का प्रतीक हुआ करता था। इसी किले से दूर-दूर तक फैली कल्चुरी सत्ता को नियंत्रित किया जाता था। बेहतरीन स्थापत्य कला के बेजोड़े नमूने को वक्त के थपेड़ों ने जर्जर हालात में पहुंचा दिया है। इसी किले से तुमान को छत्तीसगढ़ की पहली राजधानी का खिताब हासिल हैं। कल्चुरी वंश का यह किला दुर्गम पहाडिय़ों पर होने के कारण दुश्मन का काल बना रहा। लेकिन जब तुमान से हटाकर रतनपुर में राजधानी बसायी गयी तो पुरानी राजधानी तुमान वैभवहीन हो गयी। बसाने के पीछे एक ऐसी जनश्रुति है, जो महामाया में आस्था और विश्वास बढ़ाती है। त्रिपुरी के कल्चुरी राजा पोकल प्रथम के पुत्र शंकर गढ़ा द्वितीय ने इस क्षेत्र को जीत कर दक्षिण कोशल की राजधानी तुमान में बनायी और अपने सामाजिक व जनहितैषी कार्यों के चलते यहां के राजवंश बड़ा नाम कमाया। यहां के राजा देवी के उपासक थे और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। इसलिए अपने किले में भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। रत्नराज प्रथम ने 1045 में यहां की गद्दी संभाली और बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए। लगभग एक हजार साल बीत जाने के बावजूद इस मंदिर की स्थापत्य कला अपनी उत्कृष्टता के लिए विख्यात है। इसकी प्राचीनता और महत्ता को देखते हुए मंदिर और किले के संरक्षण का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेेक्षण को मिला हुआ है लेकिन अपेक्षित संरक्षण और सुधार की जरूरत है। वर्तमान में तुमान कोरबा जिले की कटघोरा तहसील के अंतर्गत स्थित है।
Chhattisgarh <a  href=
unique story Of the Calcutary Dynasty” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/05/11/160_4552597-m.jpg”>ऐसे पहुंचें तुमान
बिलासपुर -कटघोरा मार्ग से पेंड्रा जाने वाल मार्ग पर स्थित है। इसकी आबादी लगभग दो हजार है। यहां आदिवासी समाज के लोग अधिक निवास करते हैं। खेती-बाड़ी और पशुपालन इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय है।
खुदाई में निकले 20 मंदिरों के अवशेष
कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने बड़ी संख्या में मंदिरों का निर्माण कराया। तुमान की ऐतिहासिकता को देखते हुए कि ले और आसपास क्षेत्र का उत्खनन किया गया तो लगभग 20 मंदिरों के अवशेष मिले। इन मंदिरों में अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियां और उनके विशेष चिह्न पत्थरों पर उकेरे गए हैं।
ऐसी ट्रांसफर हुई राजधानी
ऐसी जनश्रुति है कि 1050 ई.तुमान के राजा शिकार एवं सैर करने के लिए रतनपुर की ओर आए। रात्रि हो जाने के कारण इसी क्षेत्र में विश्राम करना पड़ा। रात्रि में ही उन्हें देवीस्वरूपा महामाया ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और अपनी राजधानी को रतनपुर लाने के लिए कहा। धर्मपरायण राजा रत्नदेव ने मां के आदेश को मानकर तुमान का किला छोडकऱ रतनपुर में राजधानी बसासी और फिर रतनपुर में प्रजा के हित में कई कार्य किए।
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केवल तुमान में ही होता है बार नृत्य
प्रत्येक तीन साल के अंतराल पर तुमान में कंवर व गोंड जनजाति समाज के लोग विशेष प्रकार का पारंपरिक नृत्य करते हैं। यह नृत्य छत्तीसगढ़ में केवल तुमान (कोरबा जिले में) ही होता है।
दूरदर्शी और संस्कृति प्रेमी थे राजा
कल्चुरी वंश के राजा दूरदर्शी और संस्कृति प्रेमी थे। दुर्गम पहाडिय़ों पर किला बनाना उनकी दूरदर्शिता थी और किले की स्थापत्य कला में उनका संस्कृति प्रेम झलकता है। कल्चुरी वंश की पहली राजधानी तुमान थी और फिर रतनपुर बनी।
प्रोफेसर पीएल चंद्राकर, विभागाध्यक्ष भूगोल विभाग, सीएमडी कॉलेज

वास्तव में किला एक बड़ी विरासत है

इतिहास में कल्चुरी राजवंश का इतिहास गौरवशाली रहा है। पुराने अवशेषों को और संरक्षित करने की जरूरत है। तुमान से रतनपुर राजधानी लाने के पीछे भी एक जनश्रुति है। वास्तव में किला एक बड़ी विरासत है।
डॉ.केके शुक्ला, इतिहास विभाग
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