बिलासपुर -कटघोरा मार्ग से पेंड्रा जाने वाल मार्ग पर स्थित है। इसकी आबादी लगभग दो हजार है। यहां आदिवासी समाज के लोग अधिक निवास करते हैं। खेती-बाड़ी और पशुपालन इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय है।
खुदाई में निकले 20 मंदिरों के अवशेष
कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव प्रथम ने बड़ी संख्या में मंदिरों का निर्माण कराया। तुमान की ऐतिहासिकता को देखते हुए कि ले और आसपास क्षेत्र का उत्खनन किया गया तो लगभग 20 मंदिरों के अवशेष मिले। इन मंदिरों में अलग-अलग देवी-देवताओं की मूर्तियां और उनके विशेष चिह्न पत्थरों पर उकेरे गए हैं।
ऐसी ट्रांसफर हुई राजधानी
ऐसी जनश्रुति है कि 1050 ई.तुमान के राजा शिकार एवं सैर करने के लिए रतनपुर की ओर आए। रात्रि हो जाने के कारण इसी क्षेत्र में विश्राम करना पड़ा। रात्रि में ही उन्हें देवीस्वरूपा महामाया ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और अपनी राजधानी को रतनपुर लाने के लिए कहा। धर्मपरायण राजा रत्नदेव ने मां के आदेश को मानकर तुमान का किला छोडकऱ रतनपुर में राजधानी बसासी और फिर रतनपुर में प्रजा के हित में कई कार्य किए।
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केवल तुमान में ही होता है बार नृत्य
प्रत्येक तीन साल के अंतराल पर तुमान में कंवर व गोंड जनजाति समाज के लोग विशेष प्रकार का पारंपरिक नृत्य करते हैं। यह नृत्य छत्तीसगढ़ में केवल तुमान (कोरबा जिले में) ही होता है।
कल्चुरी वंश के राजा दूरदर्शी और संस्कृति प्रेमी थे। दुर्गम पहाडिय़ों पर किला बनाना उनकी दूरदर्शिता थी और किले की स्थापत्य कला में उनका संस्कृति प्रेम झलकता है। कल्चुरी वंश की पहली राजधानी तुमान थी और फिर रतनपुर बनी।
प्रोफेसर पीएल चंद्राकर, विभागाध्यक्ष भूगोल विभाग, सीएमडी कॉलेज
वास्तव में किला एक बड़ी विरासत है इतिहास में कल्चुरी राजवंश का इतिहास गौरवशाली रहा है। पुराने अवशेषों को और संरक्षित करने की जरूरत है। तुमान से रतनपुर राजधानी लाने के पीछे भी एक जनश्रुति है। वास्तव में किला एक बड़ी विरासत है।
डॉ.केके शुक्ला, इतिहास विभाग