कई जगह इलाज कराने पर भी कोई फायदा नहीं मिलने पर बच्चे की मां, अपने भाई की सहायता से अपोलो हॉस्पिटल में डॉ. पीपी मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार नाक कान गला विभाग से संपर्क किया। डॉ मिश्रा ने बच्चे को देखते ही छाती का एक्सरे व सीटी स्केन कराने की सलाह दी। रिपोर्ट में पाया गया कि पिन के चारों ओर घाव बन चुका है व मांस जम चुका है। पिन की सही स्थिति का निर्धारण होने के उपरांत डॉ मिश्रा नें वरिष्ठ निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ रसिका कानस्कर व डॉ विनीत श्रीवास्तव के साथ सलाह कर इसे निकालने की प्रक्रिया आरंभ की।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि सामान्यत: ऐसे ऑपरेशन में टेलेस्कोप के साथ ऑक्सीजन ट्यूब भी डाली जाती है, जिससे मरीज की सांस निरंतर चलती रहे, परन्तु इतने छोटे बच्चे की श्वास नली पतली होने के कारण यह काफी कठिन था। इस कठिनाई को देखते हुये डॉ मिश्रा ने सी आर्म चलित एक्सरे की सहायता से पिन को निकालने का निर्णय लिया। संपूर्ण चिकित्सकीय सुरक्षा के साथ इस प्रक्रिया में बच्चे को श्वास देते हुये पिन को निकालने में एक और समस्या थी कि पिन का खुला हुआ हिस्सा ऊपर की ओर था जो कि उसे निकालने में आसपास के टिश्यू व फेफड़े को नुकसान पहुंचा सकता था। इसलिए सी आर्म में देखते हुये बच्चे को श्वास देने के बहुत छोटे-छोटे अंतराल में पिन को सावधानी से निकाला गया। इसमें दो से ढाई घंटे का समय लगा।
डॉ मिश्रा ने आगे बताया कि स्थिति इतनी जटिल थी कि पिन को छूने मात्र से घाव से खून निकलना शुरू हो जाता था जो कि आगे निमानिया आदि का कारण हो सकता था। डॉ इंदिरा मिश्रा वरिष्ठ सलाहकार शिशु रोग ने बताया कि 3 साल से छोटे बच्चों में एक तरह की आदत होती है कि वे अपने आसपास की चीजों को मुंह में डाल लेते हैं। ऐसे में जरूरी है कि हमें ऐंसी चीजों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिये। डॉ. सजल सेन सीओओ अपोलो हॉस्पिटल नें कहा कि वर्तमान में एकल परिवारों में जहां माता पति दोनों ही कामकाजी हैं, घटना होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है,इसलिए माता पति को इस ओर अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।