बिलासपुर . विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव मंगलवार को पत्रिका कार्यालय में ‘कॉफी टॉक विद पत्रिकाÓ में शिरकत करने पहुंचे। इस मौके पर उन्होंने कहा, पार्टी मुझे सीएम का फेस बनाएगी तो जरूर बनूूंगा। मैं कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूं, लेकिन इसके लिए मेरी गुजारिश यही रहेगी कि पार्टी वरिष्ठों और अनुभवियों को भी साथ लेकर चले। राज्य के समेकित विकास पर बात करते हुए नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जब तक आपकी प्लानिंग में राज्य का सबसे बड़ा तबका किसान, महिला और युवा केंद्र में नहीं होंगे, तब तक योजनाएं न तो मैदान में उतर सकती हैं और न ही इनके नतीजे ही आ सकते हैं। चुनावों में रमन-जोगी मुकाबले को लेकर बयान पर उन्होंने साफ कहा कि मेरा रिकॉर्डेड बयान देखें, मैंने जोगी को हारा बताया है न कि डॉ. रमन को जीता। मैं ऐसी बातें न कभी कहता हूं न किसी रूप में आने देता, जिनके लिए मुझे अपने बयान से पलटना पड़े। कोशिश करता हूं कि जीवन में कम से कम समझौते करूं।
0.राजपरिवार से हैं, लोकतंत्र में रमते जा रहे हैं, कभी राजा होना आड़े तो नहीं आता ?
00.अपने पहले चुनाव में इसका शिकार हुआ था। लोगों ने ऐसा दुष्प्रचार कर दिया कि राजा हैं सिंहदेव किसी की सुनेंगे नहीं। उनसे मिल नहीं पाओगे, जैसी कई बातें। तब मैंने संकल्प लिया कि अब से अपने भाषणों और आम मेल-मुलाकातों में अपना मोबाइल नंबर दूंगा। मैं बोलता हूं आप मुझे कॉल कीजिए, अगर तुरंत नहीं अटैंड कर पाया तो कॉल बैक जरूर करूंंगा। राजा होने का तो मुझे पता भी नहीं था। वास्तव में मेरे दोस्तों ने कहा कि तुम एक राज परिवार से हो, तब मैंने डैडी से पूछा तो उन्होंने मुझे बताया।
0.बीते एक दशक से राजनीति में नारों की अपनी भूमिका है, कांग्रेस को इसके साथ चलना होगा, आपकी क्या तैयारी है?
00.अव्वल तो मैं सपनों, सब्जबागों और नारों पर भरोसा नहीं करता। हां, इतना है कि नारों के जरिए हम लोगों से अपनी बात कहने में कामयाब जरूर होते हैं। ऐसे में पार्टी स्तर पर भी कई बार बात हुई है। अच्छे नारे सोचिए, ऐसे नारे तैयार किजिए जो लोगों तक अपनी बात को पूरी ताकत से पहुंचा पाएं। मगर, यह सब बहुत ही सटीकता से करेंगे। हम सिर्फ सपने नहीं बेचते न सिर्फ सब्जबाग दिखाते हैं।
काम बोलता है।
0.बजट की घोषणाओं को कैसे देखते हैं, ये कितने पूरा होने योग्य हैं?
00.कोई भी सरकार बजट से बाहर कुछ नहीं कर सकती। जैसे कि मौजूदा सरकार के दो साल के बजटों पर सीएजी टिप्पणी कर चुका, यानी पहली बार कहा था 12 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च नहीं कर पाएंगे दूसरे में कहा 20 हजार से अधिक। ऐसे बजटों का क्या औचित्य? उदाहरण के लिए 90 हजार करोड़ का बजट आया। 30 परसेंट स्थापना व्यय है। 20 हजार करोड़ यानी 32 परसेंट आप इस्तेमाल कर पाए। तब अगर देखा जाए तो 40 परसेंट आपने या फाल्स कमिटमेंट किए या फिर आपने जनता को गुमराह किया था कि यह पैसा आएगा और फिर आया ही नहीं। दो में से एक कोई बात सच है।
0.क्या पार्टी इस बार सीएम का फेस देगी, अगर देगी तो आपको फेस बना सकती है?
00.कांग्रेस में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यहां पर पहले विधायक चुनकर आते हैं, फिर वे ही सदन का नेता चुनते हैं। नेता प्रतिपक्ष भी ऐसे ही चुना गया हूं तो सीएम के लिए मेरी कोई अपनी ओर से दावेदारी ठीक नहीं। हां, मगर पार्टी यह जिम्मेदारी देगी तो जरूर लूंगा। साथ ही पार्टी से इस बात की अपेक्षा करूंगा कि वह अनुभवी और वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को भी साथ लेकर चले। हमारी पार्टी में एक से बढ़कर एक अनुभवी लोग हैं, सबके अंदर नेतृत्व की विपुल क्षमता है। इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें तो पार्टी सीएम के लिए फेस नहीं देती।
0.खाली वक्त में क्या करते हैं, अपने आपको इतना अपडेट रख पाते हैं?
00.राजनीतिक जीवन में यूं तो खाली समय बहुत होता नहीं, फिर भी ट्रैवलिंग में या कभी कहीं घर पर ही देर रात समय निकाल पाता हूं। तो इस दौरान कुछ किताबें पढ़ता हूं। फिल्में देखता हूं। चूंकि फिल्मों का मुझे बहुत शौक है, पर समयाभाव के कारण सिनेमा तक तो जा नहीं पाता, इसलिए घर पर या ट्रैवलिंग के दौरान देख लेता हूं। देश-दुनिया में क्या चल रहा है यह जानने के लिए थोड़ा बहुत टीवी देख लेता हूं।
0.ट्राइब स्टेट है, क्या कोई आदिवासी समाज से भी मुख्यमंत्री के लिए चेहरा बन सकता है? आप किसका नाम लेंगे।
00.मैं व्यक्तिगत तौर पर जात-पांत नहीं मानता। कांग्रेस का भी नारा रहा है, जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। ऐसे में जातिय आधार पर कोई चेहरा नहीं होता, हां हमारे पास है ंलंबी फेहरिश्त हर जाति, धर्म के नेताओं की। हालाकि वर्ग विशेष के प्रतिनिधित्व को मैं नहीं नकार रहा। वह होना ही चाहिए, लेकिन उसके रूप अलग होते हैं। सीएम के फेस के लिए तो पूरी तरह वह व्यक्ति आगे आना चाहिए जिसकी अपनी पॉपुलैरिटी हो और जो लोगों से सीधा जुड़ा हो।
0.विकास के मसले को कैसे देखते हैं, चूंकि अबकी राजनीति में विकास को तवज्जो मिल रही है, मतदाता समझता है?
00.विकास को लेकर कोई स्टैंडर्ड पॉलिसी नहीं हो सकती। हमें क्षेत्र के अनुरूप नीतियों का पालन करना चाहिए। बस्तर की जरूरत, सरगुजा की आवश्यकता और मध्य छत्तीसगढ़ की अपेक्षाओं में फर्क होता है। हम ऐसी नीतियों के पक्षधर हैं जो दीर्घगामी और मजबूत नतीजे दें। हम न तो खोखली नारेबाजी में यकीन रखते हैं और न ही किसी इस तरह की जुमलेबाजी को ही अपनाते हैं। लंबे समय तक चलने वाले विकास को ही विकास कहा जा सकता है।
0.विवेकानंद, बोस और अब गांधी भी एक दल ने हथियाए हैं, ऐसे में आपके आदर्श विवेकानंद होते हुए भी इनसे बचे हैं, कैसे?
00.जिसने भी विवेकानंद को पढ़ा है वह कभी भाजपाई हो ही नहीं सकता। जो विवेकानंद यह कहते हों कि दुनिया में सबसे ज्यादा खून धर्म के नाम पर बहा है, जो यह कहते हों कि अधिक पढऩे से किताबें बोझ हो जाती हैं, जो यह कहते हों
मंदिर से परे भगवान निराकार होता है, जो यह कहते हों मानवता वैश्विक धर्म होनी चाहिए, जो यह कहते हों सभी धर्मों में मुझे ब्रह्म के दर्शन हुए हैं, वह क्या इन जात-पात की राजनीति करने वालों ने पढ़े होंगे। विवेकानंद भारत हैं और वे इसकी आत्मा को समझते हैं। ये तो उनके किसी एकाध टुकड़े को अपनी सियासत में इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। तोडऩे वाली राजनीति करने वाले लोगों ने स्वामी विवेकानंद का एक कतरा भी नहीं पढ़ा। उनसे व्यापक, विशाल और इतना विराट कोई व्यक्तित्व दुनिया में नजर नहीं आता। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि क्या वे तोडऩे वालों का राजनीतिक आदर्श हो सकते हैं?
0.ओशो को कितना पढ़ा है क्या जीवन में उनके आदर्शों को स्थान देते हैं?
00. ओशो को मैंने कुछ पढ़ा है। कुछ बातें उनकी भी अच्छी हैं। मैं उनके पूना वाले आश्रम गया भी हूं। लेकिन जैसा कि मैंने कहा मैं स्वामी विवेकानंद का ऐसा पक्का शिष्य हूं जो उनके लिखे, कहे पर चलता है। उन्हें पढऩे के बाद किसी को पढऩे की जरूरत नहीं रहती। ओशो तक आते-आते बहुत कुछ विवेकानंद कह चुके हैं। विवेकानंद के
गुरु रामकृष्ण परमहंस ने कहा था, सभी धर्म सहने योग्य हैं, जबकि विवेकानंद ने कहा सभी धर्मों को स्वीकारो। यानी विवेकानंद के मौलिक विचारों में भारत का समूचा आध्यात्मिक बिंब नजर आता है। ऐसे में उनके बाद किसी को पढऩे की जरूरत नहीं।