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पहले चरण की 18 सीटों पर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

locationबिलासपुरPublished: Oct 11, 2018 04:34:50 pm

Submitted by:

Amil Shrivas

भाजपा के प्रत्याशियों ने फासला अच्छा रखा।

election 2018

पहले चरण की 18 सीटों पर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

बरुण सखाजी@बिलासपुर. इस सियासी कैल्कुलेशन से पहले चरण में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा है, चूंकि वह सीटों के मामले में आगे है साथ ही साथ उसके विधायकों के जीतने का मार्जिन भी कम था। छत्तीसगढ़ चुनाव के पहले चरण की 18 सीटों में फिलहाल 11 कांग्रेस और 7 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन मजे की बात यह है कि इन सीटों पर वोट भाजपा को ही ज्यादा मिले थे। इसकी वजह यह थी कि कांग्रेस ने सीटें तो ज्यादा हासिल कर लीं, लेकिन उसके प्रत्याशी कम फासले से जीते थे। जबकि भाजपा के प्रत्याशियों ने फासला अच्छा रखा।

गठबंधन से सेंधमारी : पहले चरण की 18 सीटों में से तीसरी ताकत के रूप में उभर रहे बसपा-जकांछ गठबंधन में बसपा 8 सीटों पर लड़ेगी जबकि जकांछ 10 सीटों पर लड़ेगी। बसपा के खाते में राजनांदगांव की 6 मे से 2 सीटें डोंगरगांव और डोंगरगढ़ आई हैं। वहीं बस्तर की अंता$गढ़, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, दंतेवाड़ा और कोंटा सीटें आई हैं। वहीं जनता कांग्रेस़ राजनांदगांव, खुज्जी, खैरागढ़, मोहला मानपुर के अलावा बस्तर से भानुप्रातपपुर, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट और बीजापुर पर चुनाव लड़ेगी।
52 हजार वोट तीसरी ताकत बसपा ने झटके थे : पहले चरण की जिन 18 सीटों पर 12 नवंबर को मतदान होगा, उनमें पिछले चुनाव में बसपा ने 52543 मत हासिल किए थे। बसपा की यहां पर होरीजेंटल पकड़ नजर आई। हालांकि बसपा यहां की 18 सीटों में से किसी एक पर भी 5 हजार से अधिक वोट तक नहीं पहुंच पाई। जबकि चित्रकोट से सबसे कम मत 1667 मिले थे। इस बार बसपा चूंकि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गठबंधन करके मैदान में है तो बसपा को इससे और फायदा मिल सकता है।

यहीं से टूटेगा जांजगीर-कसडोल का तिलिस्म : तकनीकी तौर पर इन सीटों में कांटे की टक्कर नजर आती है। जबकि वोटों के मामले में भाजपा-कांग्रेस के बीच महज 14149 वोटों का ही फर्क है। सीटों में यह फर्क 11 और 7 का है। इन सीटों पर 2013 में बसपा के अकेले लडऩे के कारण अधिक नुकसान भाजपा को नहीं हुआ था। चूंकि बसपा ने 2013 के चुनावों में 5 हजार के अंदर मतों वाली सीटों की संख्या 24 से बढ़ाकर 42 की थी। यानी मौजूदगी में इजाफा। आमतौर पर जांजगीर की 6 सीटों समेत बिलाईगढ़, कसडोल, लौदाबाजार, भाटापारा, तखतपुर, मस्तूरी तक सिमटने वाली बसपा ने इस बार वोट 2008 के मुकाबले 2.25 फीसदी कम हासिल किए, लेकिन होरीजेंटल एप्रोच में इजाफा किया था।
विक्रम, केदार और कवासी ही हैं अजेय : पिछले तीन चुनावों में 2003 से लगातार जीतते आ रहे विधायकों में कांग्रेस के कोंटा से कवासी लखमा, भाजपा के विक्रम उसेंडी और पहले भनपुरी और बाद में नारायणपुर से केदार कश्यप शुमार हैं। जबकि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह 2008 से राजनांदगांव से जीत रहे हैं। लगातार दो बार जीतने वालों में लता उसेंडी, संतोष बाफना और भोलाराम साहू हैं।

2003 में बसपा नहीं लड़ी थी इन 18 में : 2003 में बसपा ने इन 18 ही सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं दिए थे। जबकि 2008 में समझौते में आईं सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इन 8 सीटों पर बसपा ने इस वर्ष करीब 34 हजार वोट हासिल किए थे। वहीं साल 2013 में इन 18 में 52 हजार 543 और इस बार समझौते में आईं 8 सीटों में 23 हजार मत हासिल किए थे।
2003 से 13 तक 18 सीटों में दिग्गज : 2003 में भाजपा ने इन 18 में 13 सीटें जीती कांग्रेस 5 पर सिमट गई। 2008 में 15 भाजपा ने और कांग्रेस महज 3 जीतकर रह गई। लेकिन 2013 में भाजपा को तगड़ा झटका इन सीटों से लगा था और पार्टी महज 7 सीटों पर सिमट गई। वहीं 2003 में इन 18 सीटों में 3 मंत्री, 2008 और 2013 में 2-2 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी रही।

इन सीटों पर जकांछ का अच्छा दखल : खैरागढ़ से देवव्रत सिंह जकांछ के उम्मीदवार हैं। देवव्रत सिंह कांग्रेस से सांसद और इसी सीट से 2003 में विधायक भी रह चुके हैं और एक राजपरिवार से आते हैं। ऐसे में वे यहां कांग्रेस विधायक गिरवर जंघेल के लिए मुसीबत पैदा कर सकते हैं। राजनांदगांव से खुद अजीत जोगी चुनाव लड़ेंगे। अगर ऐसा होता है तो यह मुकाबला भी रोचक हो जाएगा। यह सीट मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की है। मोहला मानपुर जैसी माओवाद प्रभावित सीट पर मौजूदा विधायक तेजकुंवर गोवर्धन नेताम को खासी टक्कर संजीत ठाकुर दे सकते हैं। जबकि इसका फायदा भाजपा को जा सकता है।

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