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यह कोई नई बात नही है हमने बहुत सी जंग देखी है बहुत से मुश्किल हालात झेले है- सुशांत गौतम

locationबिलासपुरPublished: Mar 28, 2020 09:02:56 pm

Submitted by:

Murari Soni

कही न कही इसके जिम्मेदार हम स्वयं है हमे समझना होगा इस प्रकृति के बनाये नियमो को हमे बचाना होगा

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पेंड्रा। कोरोना वायरस की आपदा यह कोई नई बात नही है हमने बहुत सी जंग देखी है बहुत से मुश्किल हालात झेले है। बहुत से दर्द तकलीफों के बाद तो हम निखर पाए है। आजादी से लेकर आज तक क्या क्या नही देखा है हमने क्या आपातकाल का दौर नही देखा है हमने ? इतिहास के पन्ने पलटाईये और देखिए कितनी यातनाए कितनी मुसीबतें देखी है इस मातृभूमि ने हम हर बार निखर कर खड़े हुए है जहाँ पूरे विश्व मे आज हिन्दुतान की चमक अलग ही निखरती हुई नजर आती है। थोड़ा बदलाव जरूर हुए है समय के साथ और कही न कही इसके जिम्मेदार हम स्वयं है हमे समझना होगा इस प्रकृति के बनाये नियमो को हमे बचाना होगा हमारी विलुप्त होती परंपराओं को हमारी खो चुकी संस्कृति को पुनः दोहराना होगा। हम इंसानों ने पूरी पृथ्वी पर अपना आधिपत्य स्थापित किया है और अहंकार लिप्त होकर आज प्रकृति के बनाये नियमो से खेलने लगे है इसकी परिणीति यही होनी थी जहां इंसान इस धरती में रहने का अधिकार खत्म करता जा रहा है। जिसका उदाहरण आज सामने है एक न दिखने वाले वायरस ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। जिसने विश्व के बड़े बड़े मुल्क में अफरातफरी मचा दी है आज ये मुल्क इस अनजान दुश्मन के आगे लाचार पड़े है। फिलहाल दूर दूर तक आशा की कोई किरण नजर नही आती आगे क्या होगा यह जंग कहा तक जाएगी कितनो को यह जंग लील लेगी इसका अंदाजा भी लगाया जाना मुश्किल है। आज मंदिर मस्जिद गिरजाघरों में ताले लटके हुए है जहाँ लोगो को सुकून और उम्मीद की किरण थी वहाँ भी यह अनजान दुश्मन ने ताले जड़वा दिए है। पूरा का पूरा देश लॉकडाउन हो चुका है घर मे सुकून से बैठकर चिंतन कीजिये हमने प्रकृति से किस तरह से छेड़खानी की है प्रकृति के बनाये नियमो को अनदेखा किया है और यह दस्तूर चलता रहा तो आगे स्थिति कितनी भयावह होगी। शायद आपकी कल्पना से परे जहाँ तक आप सोच नही सकते। पूरे विश्व में जिस तरह से यह बीमारी फैल रही है इसके विपरीत हमारे मुल्क में यह कोरोना नामक बीमारी के आंकड़े काफी कम है जहाँ विश्व भर की खबरे देखने के बाद रौंगटे खड़े हो जा रहे है। इसी सब को देखते हुए हमें उम्मीद की एक किरण नजर आती है हम इस महामारी से जीत जाएंगे हमे यकीन है इस मिट्टी पर यह किसी महामारी को उगने नही देगी। यह वसुधेव कुटुम्बकम की धरती है यह गांधी की धरती है यह बुद्ध नानक की धरा है और निश्चित ही इस महापुरुषों की पावन धरा में जहाँ कोई भी विदेशी ताकत अपना अधिकार नही जमा पाएगी। मगर यह इंसान है इस इंसान की यादाश्त बहुत कमजोर किश्म की है इसकी फितरत में गफलत शामिल है यह हालात संभलने में ज्यादा तेजी से फसाद फैलाना शुरू करता है। अब भी वक़्त है हमको समझना होगा प्रकृति के अनुरूप हमे खुद को ढालना होगा बचाना होगा इस सर्वनाश होती प्रकृति को वरना प्रकृति अगर खिलवाड़ करने में आई तो तबाही से भी कोई नही बचा सकता। बचाना होगा वन्य प्रजातियों को जंगली जानवरों को चूंकि किसी भी प्रजाति का विनाश समूची प्रजाति का विनाश होता है। अपनी संस्कृति अपनी धरोहर को संवारना होगा राष्ट्रीय पक्षी से लेकर राजकीय पक्षी आज विलुप्त होने की कगार पर है छतीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना आज राजकीय पन्नो में दफ्न है जिसका संरक्षण को लेकर न तो कोई योजना है और न ही पहल। हम इस जंग में बाद एक नए युग मे जाएंगे एक नई शुरुआत होगी हम बताएंगे अपनी आने वाली पीढ़ियों को कि प्रकृति से खिलवाड़ करने का नतीजा क्या होता है। हम बताएंगे कैसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र वाला यह देश लॉकडाउन होकर पिंजरे में कैद था। इस संकट की घड़ी से उबरने में समय लगेगा यह बहुत बड़ी खाई हमने बनाई है प्रकृति और हमारे बीच जिसकी भरपाई में शायद कुछ वक्त लगे। तब तक हम सबको एक होना पड़ेगा सावधानिया बरतनी होगी यह हम सबकी जिम्मेवारी भी है की इस अदृश्य दुश्मन की पूरी तरह से सफाया करना है ताकि कभी ऐसी शक्तियां हम पर हावी न हो सके। पूरा देश लॉकडाउन है जहाँ इस अनजान दुश्मन से लड़ने के लिए शासन और प्रशासन सतत प्रयासरत है कुछ घटनाएं जरूर देखने को मिली प्रशासन की सक्तियाँ , जिसमे कुछ घटनाएं असंवेदनशील है लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्रशासन की सख्ती से ही आज चीन इस जंग से अब जीत कर आगे बढ़ रहा है। लेकिन जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहे है इसलिए प्रशासन का शक्त रवैया जायज भी है मगर यह भी सही है कि यह आम लोग इसकी गंभीरता को नही ले रहे है जैसे कोई इवेंट हो रहा हो सबको बाहर निकलकर देखना है यह हमारे लिए समाज के लिए देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है। इस बीमारी से जीतने के लिए कोई अन्य रास्ता भी तो नही है हमे कैद होना पड़ेगा चार दिवारियो में और यह सही समय भी है अपनी जिम्मेदारी दिखाने का चूंकि अगर हमारे इस लोकतांत्रिक देश ने इतने अधिकार दिए है तो आपका भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि आप देश के संकट के समय अपना सर्वश्व न्योछावर कर दे मगर यहाँ आपसे कोई जंग लड़ने जाने को नही कह रहा है ना ही किसी बॉर्डर में जाने को कह रहा है घर बैठ कर अपनी और अपनो की हिफाजत करने को कहा जा रहा है वरना अगर चूक हुई तो इतिहास फिर दोहराएगा और बताएगा कि कैसे सिंधु घाटी की सभ्यता का अंत हुआ था। कुछ गलतियां भी जिसका जबाब जरूरी यह समय उचित नही होगा आरोप प्रत्यारोप का लेकिन जेहन में कुछ सवाल है जिसका जवाब मिलना जरूरी है जब 25 जनवरी को पहला केश भारत मे आया तब अंतराष्ट्रीय सीमाएं क्यो नही बंद की गई क्यो इसकी गंभीरता को सरकार में बैठे लोग नही समझ पाए कही न कही तो चूक हुई है जब चीन इस महामारी से झूझ रहा था और भारत मे भी इसके लक्षण देखने को मिल रहे थे तब शायद अंतरास्ट्रीय सीमाओं को लॉकडाउन किया गया होता तो आज शायद स्थिति इतनी विकराल नही होती. और धीरे से स्थिति को संभाला जा सकता था या हर विदेश से आये हुए व्यक्तियों पर निगरानी रखी जानी चाहिए थी अंडमान द्वीप को खाली करवाकर सारे संदिग्ध लोगों की जांच करवाई का सकती थी। आज वही स्थिति है कि घर घर खोजकर लोगो को आइसुलेट करना पड़ रहा है . इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हुई ? यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है जिसे सरकार से पूछा जाना चाहिए पहले भी उरी और पुलवामा हमला हुआ आज तक यह सवाल सिर्फ सवालों में छिप कर रह गया है कि इतनी मात्रा में बारूद आया कहा से ? जांच क्यो नही की गई इसकी यह समय शायद उचित नही है सवालों का मगर जिम्मेदारों को अपनी जवाबदारी तय करनी होगी। वरना लोकतंत्र में आमजनता के सवालों को ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। जब बड़े बड़े उद्योगपतियों को विदेशों से भारत लाया गया तो उन गरीब दिहाड़ी मजदूरों की घर पहुचने की सुविधा क्यो नही की गई ? एकाएक लॉकडाउन का आदेश जारी होना बड़ी गंभीर समस्या में लाकर खड़ा कर दिया है हमे रोजमर्रा के जीवन बिताने वाले लोग क्या करेंगे कैसे उनका जीवकोपार्जन होगा और कैसे यह मजदूर वर्ग अपने घरों तक पहुँचेगा जब देश के साथ साथ राज्य जिले यहाँ तक कि पंचायतों की सीमा तक को लॉकडाउन कर दिया गया है। एक तो हमारी अर्थव्यवस्था औंधे मुँह गिरी हुई है तो सवाल यह भी है कि अगर हम इस वैश्विक आपदा के उबर भी गए तो क्या यह आर्थिक मार जो झेलनी पड़ेगी उसको झेलने के लिए हम समर्थ है ? शायद नही इसके बाद हमे आर्थिक मंदी से गुजरना होगा यह कोई छोटी जंग नही है यह जंग बड़ी है जहाँ इस 125 करोड़ की अवाम को एक साथ आना होगा फिलहाल जो स्तिथि है उससे मिलकर ही निपटना होगा इसके लिए शासन प्रशासन द्वारा लगातार निर्देश भी जारी हो रहे है उनका पालन करना होगा अपने घरों में ही कैद रहना होगा धैर्य और संयम से काम लेना होगा। समझना होगा यह लड़ाई किसी एक कि नही है सम्पूर्ण देशवासियों की है। हमे सोशल डिस्टेंसिग को समझना होगा इस चैनल को तोड़ना होगा ताकि यह महामारी व्यापक न होने पाए और हम यह कर सकते है यह हम ही जो कर पाएंगे। विश्व का कल्याण की भावना रखने वाला यह देश जल्द ही इससे उभरेगा और हम यही प्रार्थना भी करते है कि जल्दी ही एक नए युग का आरंभ एक नई शुरुआत करेंगे

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