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इस तरह किया जा रहा डायलिसिस के चक्कर खाकर गिर जाते हैं मरीज़, किसी को होती है उल्टी तो किसी को सिरदर्द

locationबिलासपुरPublished: Jun 07, 2019 12:24:13 pm

Submitted by:

Amil Shrivas

एक बारगी जब लोग ट्रेन में टिकट कंफर्मेशन की वेटिंग नहीं झेल पाते हैं हैं पर गंभीर बीमारी से जूझने वाला मरीज अपने इलाज के लिए वेटिंग झेलने को विवश है।

dialysis machine

इस तरह किया जा रहा डायलिसिस के चक्कर खाकर गिर जाते हैं मरीज़, किसी को होती है उल्टी तो किसी को सिरदर्द

बिलासपुर. अमूमन वेटिंग शब्द का जब भी जिक्र होता है तो रेलवे का रिर्वेशन ही जहन में आता है। पर हैरानी तब होती है जब इस वेटिंग का इस्तेमाल कीडनी की बीमारी से पीडि़त मरीजों के डायलिसिस के लिए किया जाता है। ये मामला शहर के जिला अस्पताल का है जहां इन दिनों डायलिसिस करवाने के लिए आने वाले मरीजों पर दोहरी मार पड़ रही है। पहली ये कि जिला अस्पताल में पर्याप्त डायलिसिस मशीनें नहीं हैं। यहां हमेशा वेटिंग बनी रहती है। दूसरा गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज का जिस कक्ष में डायलिसिस किया जाता है वहां का एसी काफी दिनों से खराब है। पंखे की गर्म हवा और संक्रमण के खतरों के बीच मरीज अपना डायलिसिस करवा रहे हैं। हम ये भी नहीं कह सकते कि इसकी जानकारी प्रशासन को नहीं है क्योंकि कुछ माह पहले तात्कालीन कलेक्टर पी दयानंद ने घोषणा की थी कि जिला अस्पताल में नई डायलिसिस मशीनें लगाई जाएंगी, पर वो मशीनें आज तक नहीं आई हैं।
एसी खराब तो पंखे की गर्म हवा में डायलिसिस
जिला अस्पताल के डायलिसिस कक्ष में विगत एक माह से एसी खराब पड़ा है। भीषण गर्मी में खतरों को नजर अंदाज कर डायलिसिस किया जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तों डायलिसिस मशीन से रक्त शुद्ध करने की प्रक्रिया के दौरान यदि टेम्प्रेचर मेंटेन नहीं किया जाता तो मरीज को सिर दर्ज, उल्टी होना, बीपी हाई होने की समस्या हो सकती है और मरीज की जान पर भी जोखिम आ सकती है।
मशीन केवल दो, मरीज औसतन हर दिन आठ
जिला अस्पताल में डायलिसिस मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। प्रतिदिन 7 से 8 मरीज नि:शुल्क डायलिसिस के लिए पहुंचते हैं। यहां मौजूद 2 डायलिसिस मशीनों से सिर्फ आधे मरीजों का ही डायलिसिस हो पाता है। 4 से 5 मरीजों की वेटिंग बनी रहती है। ऐसे में मरीजों को निजी अस्पतालों की तरफ रुख करना पड़ता है। निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस के लिए 2 हजार रुपए ले लिए जाते हैं।
चुनाव के बाद ठंडे बस्ते में चला गया मामला
तात्कालीन कलेक्टर पी दयानंद ने कुछ माह पहले ही डायलिसिस मशीन की कमी और मरीजों के परेशानी को भांप लिया था। इसके बाद अस्पताल में नई डायलिसिस मशीन लगाने के लिखित निर्देश दिए थे। अस्पताल के अधिकारियों की माने तो घोषणा के बाद पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव शुरू हो गए। इससे यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
प्रति सप्ताह 4 हजार रुपए कहां से जुटाएगा गरीब:
गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सप्ताह में 2 दिन डायलिसिस कराने की आवश्यकता होती है। निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है लिहाजा गरीब सरकारी अस्पताल की ओर रुख करते हैं। जिला अस्पताल की दो और सिम्स की 3-4 डायलिसिस मशीनों में वेटिंग रहती है। ऐसे में गरीब मरीज प्रति सप्ताह 4 हजार रुपाए कहां से जुटा पाएगा इसके कारण वो वेटिंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं।
कई बच्चे रेग्युलर कराते हैं डायलिसिस
डॉक्टरों की माने तो क्षेत्र में दर्जनों ऐसे बच्चे हैं जो ब्लड की गंभीर बीमारी सिकलिंग से ग्रसित हैं। नि:शुल्क उपचार के लिए वे जिला अस्पताल जाते हैं। जिला अस्पताल व सिम्स में हमेशा वेटिंग के कारण समय पर डायलिसिस नहीं हो पाता तो मरीजों की जान भी चली जाती है। विगत माह तुलसी नाम के एक मरीज की मौत भी समय पर डायलिसिस नहीं कराने के कारण हो चुकी हे।
मैने अभी ज्वाइन किया है, इसलिए मुझे इस मामले में ज्यादा जानकारी नहीं हैं।
मधुलिका सिंह, नवागत सिविल सर्जन, जिला अस्पताल।

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