जिला अस्पताल के डायलिसिस कक्ष में विगत एक माह से एसी खराब पड़ा है। भीषण गर्मी में खतरों को नजर अंदाज कर डायलिसिस किया जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तों डायलिसिस मशीन से रक्त शुद्ध करने की प्रक्रिया के दौरान यदि टेम्प्रेचर मेंटेन नहीं किया जाता तो मरीज को सिर दर्ज, उल्टी होना, बीपी हाई होने की समस्या हो सकती है और मरीज की जान पर भी जोखिम आ सकती है।
जिला अस्पताल में डायलिसिस मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। प्रतिदिन 7 से 8 मरीज नि:शुल्क डायलिसिस के लिए पहुंचते हैं। यहां मौजूद 2 डायलिसिस मशीनों से सिर्फ आधे मरीजों का ही डायलिसिस हो पाता है। 4 से 5 मरीजों की वेटिंग बनी रहती है। ऐसे में मरीजों को निजी अस्पतालों की तरफ रुख करना पड़ता है। निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस के लिए 2 हजार रुपए ले लिए जाते हैं।
तात्कालीन कलेक्टर पी दयानंद ने कुछ माह पहले ही डायलिसिस मशीन की कमी और मरीजों के परेशानी को भांप लिया था। इसके बाद अस्पताल में नई डायलिसिस मशीन लगाने के लिखित निर्देश दिए थे। अस्पताल के अधिकारियों की माने तो घोषणा के बाद पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव शुरू हो गए। इससे यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सप्ताह में 2 दिन डायलिसिस कराने की आवश्यकता होती है। निजी अस्पतालों में एक बार डायलिसिस के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है लिहाजा गरीब सरकारी अस्पताल की ओर रुख करते हैं। जिला अस्पताल की दो और सिम्स की 3-4 डायलिसिस मशीनों में वेटिंग रहती है। ऐसे में गरीब मरीज प्रति सप्ताह 4 हजार रुपाए कहां से जुटा पाएगा इसके कारण वो वेटिंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं।
डॉक्टरों की माने तो क्षेत्र में दर्जनों ऐसे बच्चे हैं जो ब्लड की गंभीर बीमारी सिकलिंग से ग्रसित हैं। नि:शुल्क उपचार के लिए वे जिला अस्पताल जाते हैं। जिला अस्पताल व सिम्स में हमेशा वेटिंग के कारण समय पर डायलिसिस नहीं हो पाता तो मरीजों की जान भी चली जाती है। विगत माह तुलसी नाम के एक मरीज की मौत भी समय पर डायलिसिस नहीं कराने के कारण हो चुकी हे।
मधुलिका सिंह, नवागत सिविल सर्जन, जिला अस्पताल।