आरक्षण नियमों में राज्य शासन ने वर्ष 2012 में संशोधन कर दिया था। अनूसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत 16 से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया। इसी प्रकार अनूसूचित जनजाति का 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 32 किया गया। अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा 14 प्रतिशत ही बरकरार रहा।.ऐसा किए जाने से कुल आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 50 से 58 हो गया। यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और कानूनी प्रावधानों के विपरीत था। इसे अलग अलग याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। गुरुघासीदास साहित्य समिति ने अनूसूचित जाति का प्रतिशत घटाए जाने का विरोध कर याचिका दायर की थी। इसी तरह कई संगठनों ने अपनी ओर से याचिकाएं प्रस्तुत कीं। इन सब पर लंबे समय से हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में अबसे पहले हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने इस नए संशोधन को गैर संवैधानिक बताया। गुरु घासीदास साहित्य समिति की ओर से कहा गया कि अनूसूचित जाति के सदस्यों का इस प्रकार से सरकार ने नुकसान कर दिया है। इस वर्ग के लोगों को इसका विपरीत असर झेलना पड़ेगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से पिछली सुनवाई में ही बहस पूरी हो गई थी।.इसके बाद शासन की ओर से महाधिवक्ता सतीश वर्मा ने बहस शुरू की।चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में दो दिनों से बहस के बाद आज बुधवार को यह बहस पूरी हो गई। सभी पक्षों के तर्क और सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है।