बताते चलें कि ग्राम बगबुड़वा में 13 जून को एक चीतल पानी की तलाश में गांव के अंदर जलाशय में वह अपनी तृष्णा शांत कर ही रहा था कि अचानक ग्रामवासियों को देख घबरा गया और भागते समय उसकी मौत हो गई। इसी प्रकार ग्राम टोनहीचुवा में 16 जून एक घायल चीतल ग्रामवासियो में देखा। ग्रामीणों की सूचना पर वनकर्मियों ने उसे देर रात कानन पेंडारी पहुचाया गया।
पुन: बगबुड़वा में 18 जून को अपनी प्यास बुझाने आ रहे चीतल को कुत्तों ने मार डाला। यह सिलसिला 23 जून को भी जारी रहा। ग्राम बगुड़वा में पानी पीने आये मादा चीतल की मौत कुत्तों के काटने से हुई तो ग्राम कंचनपुर में एक नर और मादा चीतल के ऊपर कुत्तों के झुंड ने मौत के घाट उतार दिया। इस तरह एक दिन में तीन चीतलों की मौत ने विभाग की तैयारियों पर सवाल उठा दिया। पशु चिकित्सक डॉ. शीलमणि पांडेय का कहना है कि चीतल बहुत संवेदनशील पशु है, जो जल्दी घबरा जाते हैं और डर के कारण हृदयघात से मर तक जाते हैं। पिछले दिनों मृत चीतलों के मौत की वजह भी डॉग बाइट और हृदयघात ही रहा है।
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क्राइम की ताज़ातरीन ख़बरों के लिए यहाँ क्लिक करें चीतलों की मौत पर भी नहीं जागा वन विभाग: दो सप्ताह के भीतर ही हिरणों के घायल होकर मरने की लगातार कई घटनाएं सामने आ चुकी है, पर वन विभाग उनके शवों का पोस्मार्टम कराकर उसे जलाने के अलावा भविष्य में इन घटनाओं को रोकने का उपाय नहीं कर सका। ऐसे में हजारों वन्य जीव अव्यस्थाओं के साथ साथ खतरे के साये में रहने को मजबूर हैं।
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बैंकों को करोड़ों का चूना लगाने वाले को ऐसे खोजेंगे नए एसपी डियर पार्क बना सपना, ग्रामीणोंं में आक्रोश दो तीन वर्ष पूर्व जब इन घटनाओं की शुरुवात हुई तब वन्य जीवो को संरक्षण देने ले लिए संबंधित अधिकारियों व प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों द्वारा इस क्षेत्र में डियर पार्क (deer park) बनाने की घोषणा की गई थी। जिसका मूल उद्देश्य परिक्षेत्र में विचरण कर रहे पशु प्राणियो को चारा पानी की समुचित व्यवस्था प्रदान कर उनकी सुरक्षा करना था। लेकिन अब यह घोषणा और उद्देश्य ठंडे बस्ते में चली गई। इससे ग्रामीणों में आक्रोश है।
बरसात के मौसम की शुरुवाती दिनों में ही ऐसी घटनाएं अधिक होने लगती है। क्योंकि खेत जुते हुए होते हैं और उसमें चीतल के खुर धंसने लगते है, जिनसे कुत्ते उन्हें पकडऩे में सफल हो जाते है।
एफ टोप्पो, डीएफओ, मुंगेली
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