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सूख रही हैं मैकल की पहाडिय़ां, वनों की कटान खतरनाक

locationबिलासपुरPublished: May 22, 2019 11:06:34 am

Submitted by:

Murari Soni

जैव विविधता दिवस आज : प्रकृति को उजडऩे से बचाइए तभी रंगीन तितलियां के पंखों को मिलेगी ऊंची उड़ान

Drying of McCal's mountains, forests are drying

सूख रही हैं मैकल की पहाडिय़ां, वनों की कटान खतरनाक

बिलासपुर. कोटा विकासखंड के गांव रिगरिगा के बाहरी हिस्से में खड़े होकर देखिए तो मैकल की पर्वत श्रृ़ंखला उदास से नजर आती हैं। कभी सैकड़ों किमी तक हरे-भरे वनों व पहाड़ों से घिरा रहने वाला क्षेत्र सूख गया है। हरियाली पूरी तरह से गायब हो गई और वनों का काट-काट कर वन्य जीवों का बसेरा छीन लिया गया है लेकिन इन हालातों से से बेखबर होती सरकारी मशीनरी अभी नहीं चेत रही है। इससे सबसे बड़ा खतरा जैव विविधता पर मंडरा रहा है। ऐसे हालत रहे तो तितलियां की उड़ान देखने को नहीं मिलेगी।
पत्रिका टीम ने अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के पूर्व बिलासपुर अंचल कुछ खास इलाकों का जायजा लिया। कोटा और गौरेला विकासखंड में वनों का घनत्व सबसे अधिक था लेकिन अब इन जंगलों की कटाई और वन भूमि में आबादी बढऩे से जैव विविधता पर सीधे खतरा मंडरा है। वैद्य निर्मल अवस्थी मैकल पर्वत श्रृंखलाओं की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि श्रृंखलों में हजारों पेड़-पौधों,जीव-जंतुओं की प्रजातियों को शरण मिलती थी लेकिन अब धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। ऐसा क्यों ? सवाल पर अवस्थी कहते हैं कि जंगलों की कटाई हो रही है और पौधरोपण नहीं किया जा रहा है। प्रकृति संरक्षण के लिए जरूरी उपाय पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। सामाजिक सहभागिता से ही थोड़े-बहुत प्रयास हो रहे हैं।
जैव विविधता के मामले में सबसे समृद्ध क्षेत्र बिलासपुर व मुंगेली जिलों में फैले अचानकमार टाइगर रिज़र्व है। साल वनों से घिरा हुआ यह क्षेत्र साल,बांस,मिश्रित वन एवं सागौन वृक्षारोपण से आच्छादित है। इस अभ्यारण की स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी और सतपुड़ा रेंज के मैकल हिल के पूर्वी भाग में स्थित अभ्यारण का कुल क्षेत्रफल 551.552 वर्ग किमी है। वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बाघों के रहवास के लिए अनुकूल परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने 5 अगस्त 2006 द्वारा अचानकमार अभ्यारण के 551.552 वर्ग कि.मी. को कोर जोन मानते हुए कुल 961.065 वर्ग किमी वन क्षेत्र को प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत लेने पर सैद्धांतिक अनुमोदन दिया और इसके बाद छ.ग. शासन की अधिसूचना क्रमांक – एफ 8-43/2007/10-02, रायपुर, 20 फरवरी 2009 द्वारा च्च्अचानकमार टाइगर रिज़र्वज्ज् का गठन हुआ और इसका कुल क्षेत्रफल 914. 017 वर्ग कि.मी है।
इस जंगल में शेर, तेंदुआ, लकडबग्घा, भालू, सांभर, चीतल, चौसिंघा, साही, उडऩ गिलहरी, जॉइंट स्क्वैरल, लंगूर, बंदर, कोटरी, नीलगाय, गौर, सोनकुत्ता, जंगली सूअर, आदि 50 से अधिक स्तनधारी प्रजातियां, मोर , गिद्ध, गोल्डन ओरियल, हॉर्न बिल, दुधराज,वुडपेकर, जंगली मुर्गी, किंगफिशर, नीलकंठ, बाज आदि 200 से अधिक पक्षी प्रजातियां, मगर, अजगर, कोबरा, करैत, केमेलियन, गोह आदि 30 से अधिक सरीसृप, 50 से अधिक तितलियों की प्रजातियां हैं।
जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र घोषित
पत्रिका टीम ने कोटा विकासखंड की ग्राम पंचायत टाटीधार का भी जायजा लिया, जिसे वर्ष 2014 में यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी)जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है। यहां के लोग फसलों में केमिकल व रसायन खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इन लोगों को परंपरागत वैद्य संघ की ओर से मदद करने वाले वैद्य अवधेश कुमार कश्यप ने बताया कि इन क्षेत्र में जरूरत भर का ही वनोपज संग्रहीत किया जाता है। ग्राम रिगरिगा के संतोष कुमार यादव व प्रेम लाल यादव ग्रामवासियों को पौधरोपण के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें पौधे भी उपलब्ध कराते हैं।
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