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पहले कोर्ट ने किया दोषमुक्त, फिर एसपी ने  दी छोटी सजा, बड़ी सजा के लिए आईजी ने खोली फाइल, हाईकोर्ट बोला रुक जाओ

locationबिलासपुरPublished: Feb 13, 2020 11:02:00 am

Submitted by:

JYANT KUMAR SINGH

chhattisgarh high court: हाईकोर्ट बोला विभागीय सजा के बाद आईजी को रिओपन का अधिकार नहीं

पहले कोर्ट ने किया दोषमुक्त, फिर एसपी ने  दी छोटी सजा, बड़ी सजा के लिए आईजी ने खोली फाइल, हाईकोर्ट बोला रुक जाओ

पहले कोर्ट ने किया दोषमुक्त, फिर एसपी ने  दी छोटी सजा, बड़ी सजा के लिए आईजी ने खोली फाइल, हाईकोर्ट बोला रुक जाओ

बिलासपुर। एक अजीबो-गरीब मामला हाईकोर्ट के समक्ष आया। इस मामले में फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि विभागीय सजा के छह माह बाद आईजी को उसी मामले के रिओपन का अधिकार नहीं है। दरअसल इस मामले में एक पुलिस कर्मी के खिलाफ शिकायत हुई, मामला चला और कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया। इसके बाद एसपी ने फिर से उसी मामले को खोला और उसे छोटी सजा दी। इसके बाद आईजी ने बड़ी सजा देने के लिहाज से तीन साल बाद फाइल को फिर से खोल दी। इसके विरुद्ध पुलिसकर्मी हाईकोर्ट पहुंचा था।
मामले की जानकारी देते हुए याचिकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने बताया कि कोंडागांव निवासी उमेश बाघमरे वर्ष २०१५ में पुलिस थाना बयानार में पदस्थ था। इस दौरान उमेश बाघमरे के खिलाफ एक शिकायत आई थी। ऐसे में उसके खिलाफ पुलिस थाने बयानार में अपराध पंजीबद्ध किया गया। संपूर्ण ट्रायल के बाद ११ मई २०१६ को अपर सत्र न्यायाधीश कोंडागांव द्वारा उसे पूर्ण रूप से दोषमुक्त कर दिया गया। दोषमुक्ति के पश्चात एसपी कोंडागांव द्वारा उमेश के विरुद्ध उन्हीं आरोपों पर प्राथमिक जांच कर उसे छोटी सजा से १६ अगस्त २०१६ को दंडित किया गया। एसपी द्वारा दिए गए दंडादेश से असंतुष्ट होकर आईजी ने तीन वर्ष के बाद उक्त मामले में उमेश बाघमरे को बड़ी सजा देने के लिए विभागीय जांच आरंभ करवा दिया गया। ऐसे में इस कार्रवाई से असंतुष्ट होकर पुलिस कर्मी उमेश बाघमरे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
ये तो नियमविरुद्ध है
इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने ये कोर्ट के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया कि पहले ही आपराधिक मामले में दोषमुक्त किया जा चुका है। इसके बाद एसपी ने भी छोटी सजा दे दी है। अब इस सजा के तीन साल बाद फिर से मामले को रिओपन करवाना पुलिस रेगुलेशन १८६१ व छग सिविल सेवा नियम १९६६ के नियम के विरुद्ध है। क्योंकि इसमें स्पष्ट है कि यदि कोई अधिकारी बड़ी सजा के लिए मामले को रिओपन करना चाहता है तो उसे छोटी सजा दिए जाने के छह माह के पश्चात ही कर सकता है। लेकिन याचिकाकर्ता के मामले में तीन साल बाद मामले को रिओपन किया जा रहा है। इसके बाद जस्टीस गौतम भादुड़ी की अदालत ने एसपी और आई को यह निर्देशित किया है कि वे याचिकर्ता के विरुद्ध किसी प्रकार की विभागीय कार्यवाही नहीं करें।
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