बिलासपुर में रहने वाली स्व. हरिशंकर परसाई की भतीजी अमिता शर्मा पति सुशील कुमार शर्मा ने वर्ष 2003 में यहां जिला न्यायालय में याचिका दायर की थी। फिर हाईकोर्ट के आदेश पर 28 मार्च 2011 को यह मामला जिला न्यायालय जबलपुर में प्रस्तुत किया गया। इस मामले में अमिता शर्मा की तरफ से अधिवक्ताओं डी. दत्ता, जीपी कौशिक, संदीप द्विवेदी, देवेश वर्मा, कृष्णा राव, जमीन अख्तर लोहानी एवं जबलपुर के अधिवक्ता रजनीश पांडेय, संजय शर्मा एवं आशिष सिंघई ने पैरवी की ।
साहित्यकार हरिशंकर परसाई अविवाहित थे। उनकी बहन सीता दुबे का पुत्र यानी भांजा प्रकाश चंद्र दुबे एक वसीयत के आधार पर परसाई के निधन के बाद से ही दशकों से अकेले ही रायल्टी प्राप्त कर रहे थे। परिजनों का कहना था कि स्व. परसाई ने एेसी कोई वसीयत नहीं की थी और जो वसीयत बताई जा रहीं थी वह फर्जी है, लेकिन प्रकाश दुबे ने किसी की बात नहीं मानी और न ही किसी की समझाइश का कोई असर ही हुआ। वह निर्बाध रूप से रायल्टी की राशि प्राप्त करते रहे। तब स्व. परसाई के भाई गौरीशंकर परसाई की बेटी अमिता शर्मा सामने आई। उसने वैध वारिसों को रायल्टी की राशि बराबर-बराबर मिलें, इसके लिए न्यायालय में याचिका लगाई।
अदालत ने दिया ये निर्णय
स्व. हरिशंकर परसाई की जो रचनाएं प्रकाशित हो रहीं है और उनके संबंध में रॉयल्टी की जो राशि प्रकाशचंद्र दुबे को प्राप्त हो रहीं है वह ३ सितंबर 2003 से ठीक तीन वर्ष पूर्व तक प्राप्त किया है, उस प्राप्त रॉयल्टी की राशि का हिसाब 25 जून 19 को अदालत में पेश करेगा। वर्ष 2000 सितंबर से लेकर अदालत के फैसले होने तक की अवधि की रॉयल्टी राशि का हिसाब प्रकाशचंद्र दुबे पेश करेंगे । साथ ही इस रॉयल्टी राशि में से गौरीशंकर परसाई को 1/4 अंश में से 1/3 अंश की राशि अमिता शर्मा प्रतिवादी प्रकाशचंद्र दुबे से प्राप्त करने की हकदार होना घोषित किया गया।
प्रतिवादी प्रकाशचंद्र दुबे को अब तक की रॉयल्टी राशि का पूरा हिसाब स्व. हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की किन रचनाओं से किन प्रकाशकों से कितनी रॉयल्टी (Royalty) की राशि प्राप्त किया है, उन रचनाओं के नाम व प्रकाशकों के नाम सहित विस्तार से न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया है। जबलपुर के सोलहवें अपर जिला न्यायाधीश वारीन्द्र कुमार तिवारी ने फैसले में कहा कि प्रतिवादी के हिसाब प्रस्तुत होने के बाद न्यायालय शुल्क की अदायगी प्रतिवादी प्रकाशचंद्र दुबे के रॉयल्टी की राशि के अंश से अदा करना पडेग़ा।
वसीयत के प्रिंंटिंग पर कोर्ट ने उठाया सवाल
सोलहवें अपर जिला न्यायाधीश तिवारी ने अपने फैसले में कहा कि भारत में वर्ष 1995 में लेजर प्रिंटर आ गया था या नहीं इस पर प्रकाश दुबे ने कहा कि उसे इसकी जानकारी नहीं है। उसने यह स्वीकार किया कि वह भारतीय खाद्य निगम में प्रबंधक थे। उसके कार्यालय में सन् 2000 के बाद कम्प्यूटर आया तो उसमें डॉटमेट्रिक्स प्रिंटर था ।
जबकि वसीयतनामा लेजर प्रिंटर से प्रिंट हुआ था। आदेश में न्यायाधीश ने लिखा है कि प्रतिवादी एक बडे़ पद पर पदस्थ और उसके कार्यालय में कम्प्यूटर वर्ष 2000 के बाद आया है तो एेसी दशा में भारत में 10 जुलाई 1995 की स्थिति में लेजर प्रिंटर से वसीयत प्रिंट करने की बात से आशंका पैदा होती है और प्रतिवादी दुबे की बात बिल्कुल विश्वास करने योग्य नहीं लगती है । एेसी दशा में वसीयतनामा शून्य और निष्प्रभावी है।