22 फरवरी की सुनवाई के बाद कोर्ट इस बात पर निर्णय लेगी कि याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से कराए जाने की जो मांग की गई है, वो कराना ठीक रहेगा या नहीं। बता दें कि नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा धान के परिवहन को लेकर 2015 में तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की अफरातफरी की गई थी।
इसमें 27 लोगों को आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन बाद में 16 नामों को शासन द्वारा वापस ले लिया गया। इसको लेकर हमर संगवारी, अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव, वशिष्ठ नारायण, वीरेंद्र पांडेय एवं अन्य द्वारा याचिका दायर की गई थी। याचिका में बताया गया की ये प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला है, जिसने प्रदेश की छवि को पूरे देश में कलंकित किया है।
जबकि तत्कालीन राज्य शासन मामले की निष्पक्ष जांच कराने की बजाय आरोपियों को बचाने पर आमदा थी, लिहाजा पूरे मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से कराई जाए।