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हिंदी दिवसः आईना तोड़ने वाले तुझको यह ख्याल रहे अक्स बँट जाएगा तेरा भी कई हिस्सों में

locationबिलासपुरPublished: Sep 13, 2019 08:15:54 pm

Submitted by:

Barun Shrivastava

हिंदी का दुर्भाग्य यही है कि इसने जिनको मान सम्मान और लेखकीय सामर्थ्य के साथ स्थापित किया उन्होंने ही उसे जी भरकर लूटा ।

हिंदी दिवसः आईना तोड़ने वाले तुझको यह ख्याल रहे अक्स बँट जाएगा तेरा भी कई हिस्सों में

हिंदी दिवसः आईना तोड़ने वाले तुझको यह ख्याल रहे अक्स बँट जाएगा तेरा भी कई हिस्सों में

सतीश कुमार सिंह
पुराना काॅलेज के पीछे बाजारपारा , जांजगीर
जिला – जांजगीर चांपा ( छत्तीसगढ़ )

आईना तोड़ने वाले
तुझको यह ख्याल रहे •••
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मेरे मन में गैर हिंदी भाषा भाषी लोगों के लिए बहुत सम्मान जगता है जब वे टूटे फूटे रूप में ही सही हिंदी बोलने का उपक्रम करते हैं और अपनी भावनाओं से हमें अवगत कराते हैं । उन्हें हँसी उड़ाए जाने का खौफ नहीं रहता । अंग्रेजी न जानने वाले हिंदी भाषी लोग ऐसा करने से डरते हैं । उनके अचेतन में यह बात घर कर गई है कि कहीं कुछ शब्द या वाक्य इधर उधर हो गए तो बड़ी भद्द होगी । मैं समझता हूँ यही डर ही अंग्रेजी को ताकतवर बनाए हुए है और इसे थोड़ा ठीक ढंग से बोल पाने वालों का दबदबा भी इसी से कायम है ।
इधर हिंदी को रोजगार की भाषा बनाने के लिए ढेर सारे तर्क दिए जाते हैं कि इसके विकास के लिए इसे पेट से जोड़ दिया जाए । यह बात आंशिक तौर पर ही सत्य है । किसी भी भाषा का उत्थान बहुसंख्यक समाज के द्वारा उसके प्रयोग से तय होता है न कि किसी तरकीब अपनाने से । इस तरह के तर्क वितर्क से एक तरह की हीनता और भाषायी स्तर पर दरिद्रता की बू आती है जबकि हिंदी अभिव्यक्ति के तल पर इतनी समृद्ध है कि इसका जोड़ खोज पाना लगभग नामुमकिन है । यह अलग बात है कि भाषायी राजनीति और दोहरे मापदण्ड के चलते हमेशा इसके साथ छल ही होते आया है । बावजूद इसके अपनी गतिशीलता और त्वरा के साथ हिंदी लगातार मजबूत होते जा रही है । इसकी जनपदीय स्वीकार्यता और लोकमंगलकारी साहित्यिक पक्ष ने इसकी जड़ों को हमेशा सम्हालकर रखा है जिसके लिए संत साहित्य से लेकर अब तक का प्रयास सराहनीय रहा है । हिंदी का दुर्भाग्य यही है कि इसने जिनको मान सम्मान और लेखकीय सामर्थ्य के साथ स्थापित किया उन्होंने ही उसे जी भरकर लूटा । अभी हाल ही में हिंदी के एक तथाकथित बड़े कवि मंगलेश डबराल ने हिंदी को हत्यारों की भाषा तक कह डाला जबकि इसी हिंदी ने उन्हें वह हैसियत प्रदान की जिससे वे कुछ कहने लायक बने । इन महाशय के पास यह दृष्टि नहीं है कि हिंदी को उसकी पूरी जातीय अस्मिता और उदारता के साथ जिन्होंने सहेजा वे समावेशी सोच और खुले हृदय के उदार लोग रहे हैं जिन्होंने इस भाषा के लिए सभ्यता और संस्कृति की सारी खिड़कियों को सदैव खुला रखा । इनसे बेहतर तो वे गैर हिंदी भाषी लोग हैं जो अपनी भावनाओं को हिंदी में बिना झिझके अपने अंदाज में रखकर बोलते हुए गर्व का अनुभव करते हैं । हिंदी उनके लिए कोई मजबूरी नहीं है वरन जन तक अपनी बात रखने का एक सशक्त जरिया है । हिंदी में जन्म लेकर खुद को शर्मिंदा बताने वाले मंगलेश डबराल जैसे लोगों के कुछ मीडियाकर चमचे उनके बचाव में उतरने लगे और उनके कथन का अभिप्राय अलग ढंग से स्पष्ट करने पर तुल गये । जैसे किसी बड़े राजनेता के बयान पर उनकी पार्टी के लोग बचाव करने लगते हैं । इसी दोगलेपन के साथ सियासी दांव चलते आ रहे तथाकथित लेखक कवियों ने हिंदी का बेड़ा गर्क किया है । भाषा की शालीनता को नष्ट करने वाले कुछ युवा पीढ़ी के विकृत छद्मवेशी कविता को गुदा तक ले आए और मानसिक गंदगी को इस भाषा में उड़ेलकर इसे कविता की संज्ञा देने लगे । हिंदी जगत को और हिंदी को सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही लोगों से है जिन्हें पहचानना जरूरी है । हिंदी दिवस की सार्थकता भी इसी में है कि अपनी अविच्छिन्न परंपरा और विरासत को समझकर ऐसे लोगों का पर्दाफाश करें जो इस स्वच्छ आइने पर अपनी कुटिलता के पत्थर से प्रहार करते हैं । ऐसे लोगों को यह भी समझ लेना चाहिए कि जिस आइने ने उनकी छवि को उजागर किया उसके टूटने पर वे भी कहीं के नहीं रह जाएंगे । एक शायर ने इन जैसे लोगों के लिए ठीक ही कहा है कि –
आईना तोड़ने वाले तुझको यह ख्याल रहे
अक्स बँट जाएगा तेरा भी कई हिस्सों में

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