बिलासपुर-सरगुजा संभाग में सवा साल का औसत कार्यकाल
बिलासपुर के 6 और सरगुजा के 5 जिलों में एसपी, कलेक्टर के औसत कार्यकाल को देखें तो यह जिलों के हिसाब से ऊपर-नीचे हो रहा है। इसमें कॉमन बात ये है कि इन जिलों में कलेक्टर का सबसे लंबा कार्यकाल 2 साल 4 महीने का है, जबकि एसपी के रूप में अधिकतम 1 साल 8 महीने का ही है। दोनो संभागों के 11 जिलों के कलेक्टर व एसपी कार्यकाल देखें तो यह 1 साल 3 महीने 12 दिन के औसत पर आ टिकता है।
2000 से 2018 तक 14 कलेक्टर व 15-16 एसपी रहे
प्रदेश में साल 2000 से लेकर 2018 तक इन जिलों में 16 कलेक्टर रहे हैं। इनमें सबसे छोटा कार्यकाल 3 महीने का शामिल है। जबकि एसपी के मामले में यह आंकड़ा 17 से 18 है। जिनमें सबसे छोटा कार्यकाल 42 दिन का है।
2018 के बाद भारी ट्रांसफर हुए
कलेक्टर व एसपी की पोस्टिंग वाले ट्रांसफरों की 2018 से लगातार वृद्धि हुई है। प्रदेश के 2018 की स्थिति में 27 जिलों में इन पदों पर बदलाव के लिए लगभग आधा दर्जन बार तबादला सूची निकाली गई है। जबकि पेंड्रा जैसे नए जिले में महज एक साल में 2 कलेक्टर, 2 एसपी बदल दिए गए। 2000 से 2003 तक जहां 13 से 15 सूचियों के माध्यम से प्रदेश में 46 से 50 बार बदलाव किया गया था। वहीं 2003 से 2018 के बीच लगभग 23 से 30 तबादला सूचियों के माध्यम से 60 से 64 बार बदलाव किए गए थे। इसके अलावा 2018 से 2021 सितंबर तक की स्थिति के मुताबिक करीब 6 सूचियों के माध्यम से 23 से अधिक बदलाव किए जा चुके हैं।
चाणक्य का सुझाया फॉर्मूला है ट्रांसफर
चाणक्य ने साप्तांग सिद्धांत में इसकी व्यवस्था की थी। साप्तांग सिद्धांत में अमात्यों यानी मंत्रियों, अफसरों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का सुझाव है, ताकि वे मनमानी न कर पाएं। इस श्रेणी में व्यवस्था के मंत्रियों को भी रखा गया है।
नई सरकारें ज्यादा करती हैं बदलाव
वरिष्ठ पत्रकार व चुनाव विश्लेषक गिरिजा शंकर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन में ट्रांसफर बोर्ड बनाकर ही इन पदों का स्थानांतरण होना चाहिए। लेकिन अभी सरकारें किसी की भी हों वे अपने राजनीतिक लाभ-हानि को देखकर ही इनकी जमावट करती हैं। इससे अफसरों का प्रदर्शन भी प्रभावित होता है, साथ ही योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रभावशीलता भी घटती है।