बिलासपुर। पांचवे दिन की कथा में पंडित उत्तम शुक्ला जी ने भगवान की बाल चरित्र लीला के प्रसंग में बताया कि भगवान लीला क्यो करते है। उन्होंने कहा कि भक्त कथा एंव लीला को श्रवण कर अपने मानव जीवन में उतारे। जिससे कथा सुनकर भक्त खुशी आनंद रहे। इसके बाद महराज जी ने पूतना वध के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पूतना का मतलब होता है अज्ञान। जिसका तन- मन पवित्र न हो, वहीं जीवात्मा पूतना है। पूतना ने भगवान को मारने के लिए तन को सजाकर गोकुल गए। जब जीवात्मा भगवान के निकट जाते है। तो तन को सजाती है। लेकिन मन में ईष्र्या रहता है। क्योकिं भगवान तन नहीं देखते मन को देखते हैं। भगवान जान गए कि पूतना अपवित्र है। जिसके मन में भगवान के प्रति ईष्या रहता है ऐसे जीव भगवान से नहीं मिल सकते जान। उसी कारण भगवान अपने नेत्र को बंद कर लिया था। भगवान के पास जाते हो पवित्र भावना बनाकर जाएंगे तो भगवान का साक्षात्कार होंगे। भगवान ने अज्ञानी पुतना का उद्धार कर दिया। हम भी भगवान के निकट जुड़ेंगे तो हमारा भी कल्याण कर देंगे। उसके बाद महराज जी ने आगे सत्संग कथा कराया। उन्होंने पूतना वध की कथा श्रवण कराया। इसके बाद बकासुर की कथा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। साथ ही गोचरण की कथा सुनाई। इसके अगले चरण में भांडी सत्संग की कथा सुनाई। उसके बाद माखन चोरी के बारे में बताया। फिर रासलीला की जानकारी देते हुए कहा कि गोपियों के वस्त्र हरण किया। कौन सा वस्त्र हरण किया, कपड़ा का नहीं बल्कि माया रूपी वस्त्र का हरण किया। क्योंकि भगवान से मिलने में माया रूपी बाधा आती है। इस कारण से भगवान ने गोपी की अज्ञान रुपी वस्त्र हरन किया। क्योंकि अज्ञान रहेंगे तो जीवात्मा को भगवान से मिलने नहीं देंगे। बाक्सआज की कथाकल की प्रथम कथा में सेवंतक मणि व्यख्यान और जामवंती विवाह कलिंदरी मित्र बिंदा पुनः नग्नजीत, भौमासुर की कथा
बिलासपुर। पांचवे दिन की कथा में पंडित उत्तम शुक्ला जी ने भगवान की बाल चरित्र लीला के प्रसंग में बताया कि भगवान लीला क्यो करते है। उन्होंने कहा कि भक्त कथा एंव लीला को श्रवण कर अपने मानव जीवन में उतारे। जिससे कथा सुनकर भक्त खुशी आनंद रहे। इसके बाद महराज जी ने पूतना वध के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पूतना का मतलब होता है अज्ञान। जिसका तन- मन पवित्र न हो, वहीं जीवात्मा पूतना है। पूतना ने भगवान को मारने के लिए तन को सजाकर गोकुल गए। जब जीवात्मा भगवान के निकट जाते है। तो तन को सजाती है। लेकिन मन में ईष्र्या रहता है। क्योकिं भगवान तन नहीं देखते मन को देखते हैं। भगवान जान गए कि पूतना अपवित्र है। जिसके मन में भगवान के प्रति ईष्या रहता है ऐसे जीव भगवान से नहीं मिल सकते जान। उसी कारण भगवान अपने नेत्र को बंद कर लिया था। भगवान के पास जाते हो पवित्र भावना बनाकर जाएंगे तो भगवान का साक्षात्कार होंगे। भगवान ने अज्ञानी पुतना का उद्धार कर दिया। हम भी भगवान के निकट जुड़ेंगे तो हमारा भी कल्याण कर देंगे। उसके बाद महराज जी ने आगे सत्संग कथा कराया। उन्होंने पूतना वध की कथा श्रवण कराया। इसके बाद बकासुर की कथा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। साथ ही गोचरण की कथा सुनाई। इसके अगले चरण में भांडी सत्संग की कथा सुनाई। उसके बाद माखन चोरी के बारे में बताया। फिर रासलीला की जानकारी देते हुए कहा कि गोपियों के वस्त्र हरण किया। कौन सा वस्त्र हरण किया, कपड़ा का नहीं बल्कि माया रूपी वस्त्र का हरण किया। क्योंकि भगवान से मिलने में माया रूपी बाधा आती है। इस कारण से भगवान ने गोपी की अज्ञान रुपी वस्त्र हरन किया। क्योंकि अज्ञान रहेंगे तो जीवात्मा को भगवान से मिलने नहीं देंगे। बाक्सआज की कथाकल की प्रथम कथा में सेवंतक मणि व्यख्यान और जामवंती विवाह कलिंदरी मित्र बिंदा पुनः नग्नजीत, भौमासुर की कथा