कर्मों की गति बड़ी न्यारी होती है: ब्रह्माकुमारी शशि प्रभा दीदी
बिलासपुरPublished: Apr 05, 2022 07:18:23 pm
श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का तीसरा दिन रमतला के बजरंग चौक गुड़ी मंदिर प्रांगण में । कथा स्थल ग्राम रमतला में श्रीमद भागवत गीता ज्ञान यज्ञ दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक रखा गया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयोजन स्थल पर एकत्रित हो रहे हैं।
ramtala bilaspur me shrimadbhagvat katha
बिलासपुर. कथा स्थल ग्राम रमतला में श्रीमद भागवत गीता ज्ञान यज्ञ दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक रखा गया है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयोजन स्थल पर एकत्रित हो रहे हैं। ठाकुर परिवार के तत्वावधान में श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कर्मयोग के बारे में बताया गया। राजयोगिनी तपश्विनी ब्रह्माकुमारी शशि प्रभा दीदी ने कहा कि भागवत गीता का ज्ञान हमें जीवन में श्रेष्ठ कर्मों के बीज को बोने की कला सिखलाती है। जीवन रूपी इस कर्मक्षेत्र में अगर हमसे श्रेष्ठ कर्म, पुण्य कर्म हो जिससे सभी की दिल की दुआएं प्राप्त हों तो हमारा प्रालब्ध भी सुखमय होता है। जबकि इसके विपरीत हमसे पापकर्म और दूसरों को दुख दर्द देने वाले कर्म होते है ंतो हमारे अर्जित पुण्य कर्मों का प्रारब्ध समाप्त होता जाता है, हम अपने एक जन्म में अनेक जन्म को सवार सकते हैं ये स्वयं पर निर्भर करता है कि हमारे कर्मो की गति सकारात्मक है या नकारात्मक। भगवान श्री कृष्ण कहते हंैं “न हि कश्चितक्षणमपि जातु निष्ठत्यकर्मकृत कार्यते द्रियवस: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै:” अर्थात नि:संदेश कोई भी मनुष्य किसी भी काल में छणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश है कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है। “गहना कर्मणो गति: ***** कर्मोंकर्मों की गति बड़ी ही गहन होती है क्योंकि कर्मों की कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं होती। कर्म को जड़ कहा गया है क्योंकि उन्हें पता नहीं होता है कि वे कर्म हैं। कर्म मनुष्य की वृत्तियों से प्रतीत होता है। यदि विहित अर्थात शास्त्रोक्त संस्कार होते हंै तो पुण्य प्रतीत होता है और निषिद्ध तो पाप प्रतीत होता है इसलिए भगवन कहते हैं कि विहितं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो दृयक्रमण: अर्थात हे अर्जुन तू विहित कर्मों को कर। इसमें भी कर्म नियंत्रित होने चाहिए क्योंकि नियंत्रित विहित कर्म को ही धर्म कहा जाता है। जैसे सुबह जल्दी उठकर थोड़ी देर के लिए परमात्मा के ध्यान में शांत रहना और सूर्योदय से पहले स्नान करना। उपरांत संध्या वंदन इत्यादि करना, ऐसे कर्म स्वस्थ्य की दृष्टि भी उत्तम माने गये है और सात्विक होने के कारण पुण्यदायी भी है परन्तु किसी के मन में विपरीत संस्कार पड़े हैंं तो वह सोचेगा कि इतनी जल्दी सुबह उठकर स्नान करके क्या करूंगा ऐसे लोग सूर्योदय के पश्चात उठते हंै, उठते ही सबसे पहले बिस्तर पर चाय पीतेे हंै और बिना स्नान किये नास्ता कर लेते हैं। शास्त्रानुसार ऐसे कर्म निषिद्ध कर्मों की श्रेणी कहे गए हंंै। ऐसे लोग वर्तमान में भले ही अपने को सुखी मान लें परन्तु आगे चलकर शरीर अधिक रोग ग्रस्त होगा । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा भी गया है कि मुझे इन तीनों लोकों में न तो कोई कर्तव्य है और न ही प्राप्त करने योग्य कोई वस्तु अप्राप्त है फिर भी मैं कर्म करता हूं। कार्यक्रम के अंत में ग्राम के कई श्रदालु एवं सम्मानीय नागरिक उपस्थित थे, जिन्हें दीदी द्वारा राधे कृष्ण का स्मृति चिन्ह एवं प्रसाद प्रदान करके सम्मानित किया गया। बड़ी संख्या में सभी श्रद्धालु उमंग उत्साह के साथ अपने जीवन को परिवर्तन करने के उद्देश्य से ज्ञान श्रवण कर रहे हैं।