याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की याचिका में कहा गया है कि वन विभाग के अधिकारी ही मानव-तेंदुआ द्वन्द बढ़ा रहे हैं। बिना पता लगे कि कोई तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है कि नहीं, देखते ही पिंजरा लगा देते हैं, उसे पकड़ते हैं, और दूसरे स्थान पर छोड़ देते हैं। यह समस्या को बढ़ाने वाला है। कई किलोमीटर दूर नए जंगल में तेंदुआ अपने को अनजान जगह पर पाकर परेशान हो जाता है, अत्यधिक तनाव, भूख, सदमा और अवसाद में उसे समझ में नहीं आता कि वह क्या करे। ऐसे में नए स्थान पर वह पालतू पशुओं पर हमला करके खा सकता है, मानव तेंदुआ द्वन्द बढ़ सकता है। तेंदुआ को अगर 100 किलोमीटर दूर भी छोड़ा जाएगा तो वह अपने मूल वन में लौटने का प्रयत्न करता है और अगर कोई बाधा न हो तो वापस अपने मूल वन में पहुच जाता है। कई बार वापस लौटते में आने वाले उन गावों में जहाँ कभी तेंदुआ नहीं देखा गया वहां भी मानव तेंदुआ द्वन्द पैदा हो जाता है। मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जुन्नारदेव में चिप लगाकर छोड़ा गया तेंदुआ वापस संजय गांधी नेशनल पार्क पहुंच गया था। याचिका में भारत सरकार, छत्तीसगढ़ शासन, प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी, मुख्य वन संरक्षक कांकेर, वनमंडल अधिकारी कांकेर, गरियाबंद, राजनांदगांव को पक्षकार बनाया गया है।
अपने घर से बहुत लगाव रहता है तेंदुए को, खुला उल्लंघन हो रहा गाइडलाइंस का याचिका में बताया गया कि केंद्र सरकार ने गाइडलाइंस में कहा है कि तेंदुए को अपने घर से बहुत ही ज्यादा लगाव रहता है। इसलिए जिस जगह से वह पकड़ा गया है उससे 10 किलोमीटर के दायरे में उसे छोड़ा जाना प्रावधानित किया गया है। उसे दूसरी नई जगह छोड़ा जाए तो वह वापस घर लौटने का प्रयत्न करता है। लौटते वक्त आने वाले मानव बसाहट इलाके में द्वंद बढ़ सकता है। भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार तेंदुए को रेडियो कॉलर लगा कर, लगातार मॉनिटरिंग करना अनिवार्य है। परंतु छत्तीसगढ़ में बिना रेडियो कॉलर लगाए और दूसरे वन क्षेत्र का अध्ययन किए बिना कई किलो मीटर दूर तेंदुए को छोड़ दिया जाता है। छत्तीसगढ़ वन विभाग की मानक प्रचालन प्रक्रिया में भी रेडियो कालर लगा कर 24 घंटे में छोड़े जाने का प्रावधान है।
वन्य जीव संरक्षण नियमों का उल्लंघन कर रहे वन अफसर
तेंदुआ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित वन्यजीव है। बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक अर्थात प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के आदेश के इस को पकड़ना अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके तहत 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान होता है। कानूनी जानकारी होने के बावजूद वनमंडल अधिकारी मुख्य वन्यजीव संरक्षक की बिना अनुमति के पिंजरा लगाते हैं और तेंदुए को पकड़ लेते हैं और मनमाने स्थान पर छोड़ देते हैं। मुख्य वन्यजीव संरक्षक से वनमंडल अधिकारी तेंदुए को पकड़ने के लिए तो कोई अनुमति नहीं लेते परंतु तेंदुए को पकड़ने उपरांत छोड़ने की अनुमति मांगते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सब कुछ मुख्य वन्यजीव की जानकारी में हो रहा है। तेंदुए पकड़ कर के दूसरे स्थान पर छोड़े जाने के 15 दिन बाद तक मुख्य वन्यजीव संरक्षक तेंदुए को छोड़ने की अनुमति जारी करते रहते है। तेन्दुओं को कानून के विरुद्ध वनमंडल आधिकारियों द्वारा पकडे जाने की पूर्ण जानकारी होने के बावजूद दोषियों के विरुद्ध मुख्य वन्यजीव संरक्षक कोई कार्यवाही नहीं करते।
पकड़े गए तेन्दुओं का विवरण *12.09.2021 एक नर तेंदुआ और एक मादा तेंदुआ कांकेर से, बिना यह पता लगाएं कि तेंदुआ प्रॉब्लम एनिमल है कि नहीं और बिना मुख्य वनजीव संरक्षक के आदेश के, वनमंडल अधिकारी कांकेर ने एक नर तेंदुए को और एक मादा तेंदुए को पकड़ा। दोनों प्रॉब्लम एनिमल नहीं पाए गए। पग मार्ग भी नहीं मैच हुए। कांकेर में दोनों का मेडिकल चेकअप कराया गया, दोनों पूर्णता स्वस्थ पाए गए और कांकेर के डॉक्टरों ने लिखा कि यह जंगल में छोड़े जा सकते हैं परंतु उसके बावजूद दोनों को जंगल सफारी रायपुर लाया गया । जंगल सफारी मैं भी मेडिकल जांच में दोनों को स्वस्थ बताया गया तथा जंगल सफारी के डॉक्टर ने दोनों को जंगल में छोड़ने लायक बताया। मादा को वापस कांकेर भिजवा दिया गया जहां उसे बिना रेडियो कालर लगाए सरोना रेंज के कंपार्टमेंट नंबर 124 में छोड़ा गया।नर को बिना किसी आदेश के रायपुर में रख लिया