बच्चों से कहा जो पसंद है वह फील्ड चुनो
स्वतंत्र देवांगन और करुणा देवांगन की बेटी आरुषि देवांगन कन्या शाला में 10वीं की छात्रा है। बेटा अमन छत्तीसगढ़ स्कूल में 12वीं का छात्र है। देवांगन दंपत्ति ने दोनों बेटों से कहा कि आपको जिस फील्ड, सबजेक्ट को लेकर आगे की पढ़ाई करना है करो। हम आप लोगों पर अपनी इच्छाएं नहीं थोपेंगे। जिस विषय में अच्छा कर सकते हैं, आपको पसंद है वह फील्ड चुनो।
स्वतंत्र देवांगन और करुणा देवांगन की बेटी आरुषि देवांगन कन्या शाला में 10वीं की छात्रा है। बेटा अमन छत्तीसगढ़ स्कूल में 12वीं का छात्र है। देवांगन दंपत्ति ने दोनों बेटों से कहा कि आपको जिस फील्ड, सबजेक्ट को लेकर आगे की पढ़ाई करना है करो। हम आप लोगों पर अपनी इच्छाएं नहीं थोपेंगे। जिस विषय में अच्छा कर सकते हैं, आपको पसंद है वह फील्ड चुनो।
मां बोली, परसेंटेज अपनी जगह इंसान अच्छे बनो
अपने कम से अंक से परेशान अमन ने बताया, मुझे तो लगा जैसे जान दे दूं। मगर मां ने वक़्त पर मुझे समझा। वह बोली, एक अच्छा इंसान लाख परसेंटेज से बड़ा होता है। तुम पर मुझे भरोसा है। तुम भविष्य में एक सफल आदमी बनोगे। परसेंट भी लाओगे। मुझे इस बात का फख़्र है कि तुमने मेहनत पूरी की। अमन बताते हैं, यह शब्द मेरे कानों में जैसे एक प्रेरणा बनकर घुले। तभी मैंने प्रण किया अपनी मां को एक दिन ज़रूर ऐसा कुछ करके दिखाऊंगा जो उसने मुझसे एक्सपेक्ट किया है।
अपने कम से अंक से परेशान अमन ने बताया, मुझे तो लगा जैसे जान दे दूं। मगर मां ने वक़्त पर मुझे समझा। वह बोली, एक अच्छा इंसान लाख परसेंटेज से बड़ा होता है। तुम पर मुझे भरोसा है। तुम भविष्य में एक सफल आदमी बनोगे। परसेंट भी लाओगे। मुझे इस बात का फख़्र है कि तुमने मेहनत पूरी की। अमन बताते हैं, यह शब्द मेरे कानों में जैसे एक प्रेरणा बनकर घुले। तभी मैंने प्रण किया अपनी मां को एक दिन ज़रूर ऐसा कुछ करके दिखाऊंगा जो उसने मुझसे एक्सपेक्ट किया है।
……………………………. रिजल्ट की मुझे भी रहती है चिंता
जब मेरे बच्चों की परीक्षा प्रारंभ होती है तो मेरी भी चिंता बढ़ जाती है। जब तक बच्चे पढ़ाई करते हैं मैं भी जगती हंू और उसे जरुरत की सामान उपलब्ध कराती हंू। उनकी परीक्षा के खत्म होने से लेकर उसके रिजल्ट के आने तक मेरी चिंता बनी रहती हैं। मैं तो कम पढ़ी-लिखी हंू, लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं भी एक छात्र के रूप में परीक्षा दिला रही हंू।
लछन सक्सेना, ग्रहिणी
जब मेरे बच्चों की परीक्षा प्रारंभ होती है तो मेरी भी चिंता बढ़ जाती है। जब तक बच्चे पढ़ाई करते हैं मैं भी जगती हंू और उसे जरुरत की सामान उपलब्ध कराती हंू। उनकी परीक्षा के खत्म होने से लेकर उसके रिजल्ट के आने तक मेरी चिंता बनी रहती हैं। मैं तो कम पढ़ी-लिखी हंू, लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं भी एक छात्र के रूप में परीक्षा दिला रही हंू।
लछन सक्सेना, ग्रहिणी