नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के मुख्य अभियंता ने प्रदेश के सभी नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों को एनजीटी (NGT) के आदेश के बाद पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा जारी दिशा निर्देशों का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि मूर्ति विसर्जन से जल स्त्रोत्तों की गुणवत्त्ता प्रभावित होती है। ग
गणेश उत्सव एवं दुर्गोत्सव पर्व पर जल स्त्रोत्तों को प्रदूषण से बचाने के लिए मूर्ति विसर्जन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी संशोधित गाइडलाइन अनुसार किया जाना है। मूर्ति विसर्जन (Mutri Visarjan of Ganesh Idol) के लिए संशोधित दिशा-निर्देशों से संबंधित नियामक प्राधिकरणों को इसके प्रभावी कार्यान्वयन को तय करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियंत्रण समिति या किसी विशेषज्ञ संस्थान के माध्यम से प्रशिक्षण आयोजित किया जाएगा।
एनजीटी ने 5 जुलाई का आदेश, निर्देश दिए 8 सितंबर को
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 5 जुलाई को जल स्रोतों की गुणवत्ता खराब होने से रोकने के आदेश जारी किए थे। आदेश के 44 दिनों के बाद पर्यावरण संरक्षण मंडल ने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग को आदेश का पालन कराने कहा था। इसके करीब 21 दिनों के बाद गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) शुरू होने के 2 दिन पहले नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने प्रदेश के नगरीय निकायों को आदेश जारी किया है।
जलाशयों, नदियों और तालाबों में करें गाइडलाइन के तहत व्यवस्था
1. नगरीय निकायों को जलाशयों, नदियों और तालाबों में विसर्जन के लिए विसर्जन पांड,बन्ड ,अस्थाई पॉड का निर्माण करने और मूर्ति एवं पूजा सामग्री जैसे फूल, वस्त्र, कागज एवं प्लास्टिक से बनी सजावट की वस्तुओं को मूर्ति विसर्जन के पूर्व अलग करने के बद उनका अलग से डिस्पोल किया जाएगा, जिससे नदी व तलाब में प्रदूषण की स्थिति नियंत्रित हो सकें।
2. सभी प्रमुख शहरों में अलग से आवश्यक सुविधा के साथ विसर्जन पाँड, पहुँच मार्ग सहित बनाने के लिए पहले से ही निर्देश दिये गये हैं, जिन्हे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशानुसार पूरा किया जाना है।
3. विसर्जन के बाद वेस्ट मटेरियल, पूजा सामग्री, फूल कपड़े, प्लास्टिक पेपर व अन्य सामानों को सुरक्षित इकट्ठा कर फिर से उपयोग और कंपोस्टिंग में किया जाएगा। साथ ही वेस्ट मैटेरियल को विसर्जन स्थल पर नहीं जलाया जाएगा।
4. मूर्ति विसर्जन स्थल पर पर्याप्त घेराबंदी व सुरक्षा की व्यवस्था की जाएगी। पहले से ही चिन्हांकित विसर्जन स्थल पर नीचे सिंथेटिक लाईनर की व्यवस्था की जाएगी और विसर्जन के बाद उक्त लाईनर, विसर्जन स्थल से हटाया जाएंगे, जिससे मूर्ति विसर्जन के बाद उसका अवशेष बाहर निकाला जा सके। बांस, लकड़ियां फिर से उपयोग की जाएगी और मिटटी को भू-भराव व अन्य कार्यों में उपयोग किया जाएगा।
5. मूर्ति निर्माताओं को मूर्ति निर्माण के लिए लाईसेंस जारी करते समय मान्य एवं अमान्य तत्वों की सूची उपलब्ध की जाएगी। 6. नगरीय निकाय यह तय कर लें कि मूर्तिया केवल प्राकृतिक, जैव अपद्यटनीय, ईको फेंडली, कच्चे माल से ही बनाई जाएं। मूर्ति निर्माण में प्लास्टर ऑफ पेरिस, प्लास्कि, थर्मोकोल और बेक्ड क्ले का उपयोग नहीं किया जाएगा। मूर्ति के सजावट के लिए सुखे फूल संघटकों और प्राकृतिक रेजिन का इस्तेमाल किया जाये एवं मूर्ति की ऊँचाई कम से कम रखी जाएंगी।
7. कारीगरों में पीओपी के स्थान पर प्राकृतिक मिट॒टी के उपयोग के लिये जागरूकता प्रसार किया जाएगा।
यह भी पढ़ें: इस बार कोरोना काल में यूं मनाया जाएगा गणेश उत्सव, गाइडलाइंस जारी, जानें जरूरी बातें