गौरतलब है कि पूर्व में पीईकेबी खदान की वन अनुमति को एनजीटी प्रधानपीठ के द्वारा सुदीप श्रीवास्तव की अपील पर रद्द कर दिया गया था, और हसदेव क्षेत्र में डब्ल्यूआईआई से अध्ययन कराने के निर्देश दिये थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उक्त अध्ययन कराया गया। परन्तु निर्देश के विपरीत इसके लिये पैसे ब्लॉक अलाटी राजस्थान विद्युत मण्डल से लिए गए। डब्ल्यू आई आई के अलावा एक और संस्था आईसीएफआरई (इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट रिसर्च एण्ड एजुकेशन) को यह जिम्मेदारी संयुक्त रूप से दी गई। दोनों ही संस्थाओं के विस्तृत अध्ययन में हसदेव वन क्षेत्र और परसा ब्लॉक को विभिन्न जंगली जानवरों समेत अत्यधिक महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र बताया गया।
सर्वे में स्पष्ट कि हसदेव इलाके में खनन से पर्यावरण को भारी नुकसान दोनों ही संस्थाओं ने स्वीकार किया कि इस इलाके में खनन होने से वन पर्यावरण को अपूर्णीय क्षति होगी। केवल परसा ब्लॉक में 2009 की गणना के हिसाब से एक फुट से अधिक मोटे 96000 पेड़ो की कटाई होगी-वर्तमान में लगभग 2 लाख पेड़ प्रभावित होंगे। डब्ल्यूआईआई ने स्पष्ट रूप से कोई और खनन अनुमति न देने की सिफारिश की। परन्तु आईसीएफआरई ने कहा कि राजस्थान-अडानी वाले कोल ब्लॉकों में खनन कर सकते है।
जंगलों के बाहर के कोल ब्लॉक में खनन कराने की मांग 23 मई को एनजीटी की भोपाल बेंच में हुई सुनवाई में अधिवक्ता सौरभ शर्मा और राहुल चौधरी ने खण्डपीठ को बताया कि इस इलाके में खनन किया जाना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं हैं और देश में कई कोयला ब्लॉक जंगलों के बाहर उपलब्ध है। संक्षिप्त सुनवाई के बाद जस्टिस शिव कुमार सेन और डॉ. अरूण कुमार वर्मा (विशेषज्ञ सदस्य) ने सभी प्रतिवादियों केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत मण्डल और अडानी कम्पनी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को रखी गई हैं। इस दिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी अंतिम वन अनुमति पर रोक लगाने वाली याचिका पर बहस होगी।