scriptबिना कमीशन के एसईसीएल में ऑर्डर ना पेमेंट, दबंगई ऐसी कि ओईएम कंपनी तक को नहीं बख्शते | Order no payment in SECL without commission | Patrika News

बिना कमीशन के एसईसीएल में ऑर्डर ना पेमेंट, दबंगई ऐसी कि ओईएम कंपनी तक को नहीं बख्शते

locationबिलासपुरPublished: Aug 04, 2018 08:44:00 pm

Submitted by:

Amil Shrivas

एरिया के अफसर अपनी इस ताकत को जानते और खुलकर इस्तेमाल भी करते हैं।

SECL

बिना कमीशन के एसईसीएल में ऑर्डर ना पेमेंट, दबंगई ऐसी कि ओईएम कंपनी तक को नहीं बख्शते

बिलासपुर. देश की सबसे बड़ी कोयला उत्खनन कंपनियों में शुमार एसईसीएल में अफसरों की दबंगई ऐसी कि बिना कमीशन के ना ही आर्डर जारी करते, और ना ही पेमेंट। बिना चढ़ावे के तो पत्ता भी नहीं हिलता। उस पर नियम ऐसे बनाए कि माल रिसीव करने वाले डिपो इंचार्ज से लेकर, फिजिकल इंस्पैक्शन व फाइनेंस विभाग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। एरिया के अफसर अपनी इस ताकत को जानते और खुलकर इस्तेमाल भी करते हैं। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी समेत मल्टीनेशनल कंपनियों को भी डिपो एजेंट रख उनकी सेवा करनी पड़ती है।
आइए, जरा रेट कांट्रैक्ट के नियमों को देखें : आइए, जरा कोल इंडिया के रेट कांट्रैक्ट के नियमों को समझें और पता लगाएं कि आखिर ये नियम किसलिए बनाए गए। कोल उत्खनन करने वाली कंपनियों को इससे क्या फायदा होगा। रेट कांट्रैक्ट के नियम मैटेरियल की आपूर्ति सुुगम करने और कोयला उत््रखनन में लगी सभी सब्सिडियरी एमसीएल, ईसीएल, महानदी कोलफील्ड्स, वेस्टर्न कोलफील्ड्स समेत तमाम कंपनियों को उनके क्षेत्र में मल्टीनेशनल या नेशनल कंपनियों के प्रोडक्ट दरवाजे पर मिले। इसके लिए कोल इंडिया ने अपनी अनुषंगी सब्सिडियरी को रेट कांट्रैक्ट के अधिकार दिए हैं। टेंडर जारी करें और कम रेट कोट करने वाली कंपनियों से साल भर की सप्लाई का अनुबंध करें। इसमें दुनिया की कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी भाग लेती है, चूंकि उन कंपनियों ने करोड़ों की मशीनें सप्लाई की हैं। लिहाजा मेटनेंस की जिम्मेदारी तो बनती ही है। लेकिन शर्त लगा दी गई कि सभी कंपनी अपना डिपो या एजेंट स्थानीय तौर पर नियुक्त करें। यानी अब बाहर की कंपनियों को डिपो खोलना होगा। कुछ अरसा पहले तक तो कोरबा के अलावा मनेंद्रगढ़ या हसदेव क्षेत्र में भी डिपो खोलने कहा गया। डिपो खुले भी, सारी गड़बड़ी यही से हो गई।

अधिकारियों ने इसे बनाया कमाई का जरिया : एसईसीएल के अधिकारियों के लिए ये तो जैकपाट लगने जैसी बात हो गई। जिस मल्टनेशनल कंपनी के अधिकारियों के दर्शन संभव नहीं थे। अब वे अपने सीएंडएफ एजेंट के माध्यम से उनकी चौखट पर आकर माल सप्लाई करने लगे। सीधी डील हो गई, सभी काम के प्रतिशत तय हो गए। कालरी में माल रिसीव करने वाले बाबू को भी प्रति डिलीवरी .10 प्रतिशत मिलने लगा। माल का फिजिकल इंस्पैक्शन रिपोर्ट देने वाले इंजीनियर को चौथाई .25 प्रतिशत, बिल प्रैसेस औैर पास करने वाले बाबू को .25 प्रतिशत, चेक जारी करने वाले फायनेंस मैनेजर को 1 प्रतिशत (2 से 3 प्रतिशत भी) मिलने लगा। इतना ही नहीं चेक जारी करने वाला भी प्रति चेक हजार से 10 हजार रुपए पाने लगा। ये चेक की राशि पर तय होता है।
अब ऑर्डर की जद्दोजहद देखें : अब जरा आर्डर पाने की स्थिति देखें। आरसी वाली कंपनियों को तो सीधे ऑर्डर जारी होते हैं। लेकिन रेट कांट्रैक्ट के बाद भी बिना कमीशन वर्क ऑर्डर जारी नहीं होते। पहले तो रेट कांट्रैक्ट के लिए हेडक्वार्टर के शीर्षस्थ अधिकारियों तक को चंदा दिया जाता है। इसके लिए मैटेरियल मैनेजमेंट, एक्सवेशन विभाग, वित्त विभाग, ईएंडएम, सेफ्टी समेत तमाम विभाग के अधिरकारियों की आवभगत करनी पड़ती है। रेट कांट्रेक्ट होने के बाद एरिया में आर्डर जेनरेट और सप्लाई का खेल शुुरु होता है। इसमें एरिया सीजीएम से लेकर जीएम, एसओ एमएम, प्रोजेक्ट इंजीनियर, कंंसर्न इंजीनियर का हिस्सा बंधा है। इन अधिकारियों को रेट कांट्रैक्ट वाली कंपनियों से 4 प्रतिशत तक मिलता है। प्रतिशत अधिकारियों की रैंकिंग पर निर्भर है।

नॉन आरसी वालों से तो मनचाहा वसूलते : जिन कंपनियों के आरसी (रेट कांट्रैक्ट) नहीं हुआ हो, इन कंपनियों से तो अधिकारी मनचाहा वसूलते हैं। इसका प्रतिशत 50 से लेकर 100 प्रतिशत कुछ भी हो सकता है। 10 हजार के माल को 20 हजार में खरीदते और फिफ्टी-फिफ्टी का अनुपात चलता है, कुछ मामलों में तो प्रतिशत 3 से 4 सौ प्रतिशत भी होता है। ये सामान की क्वालिटी और कीमत पर निर्भर है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो