अधिकारियों ने इसे बनाया कमाई का जरिया : एसईसीएल के अधिकारियों के लिए ये तो जैकपाट लगने जैसी बात हो गई। जिस मल्टनेशनल कंपनी के अधिकारियों के दर्शन संभव नहीं थे। अब वे अपने सीएंडएफ एजेंट के माध्यम से उनकी चौखट पर आकर माल सप्लाई करने लगे। सीधी डील हो गई, सभी काम के प्रतिशत तय हो गए। कालरी में माल रिसीव करने वाले बाबू को भी प्रति डिलीवरी .10 प्रतिशत मिलने लगा। माल का फिजिकल इंस्पैक्शन रिपोर्ट देने वाले इंजीनियर को चौथाई .25 प्रतिशत, बिल प्रैसेस औैर पास करने वाले बाबू को .25 प्रतिशत, चेक जारी करने वाले फायनेंस मैनेजर को 1 प्रतिशत (2 से 3 प्रतिशत भी) मिलने लगा। इतना ही नहीं चेक जारी करने वाला भी प्रति चेक हजार से 10 हजार रुपए पाने लगा। ये चेक की राशि पर तय होता है।
अब ऑर्डर की जद्दोजहद देखें : अब जरा आर्डर पाने की स्थिति देखें। आरसी वाली कंपनियों को तो सीधे ऑर्डर जारी होते हैं। लेकिन रेट कांट्रैक्ट के बाद भी बिना कमीशन वर्क ऑर्डर जारी नहीं होते। पहले तो रेट कांट्रैक्ट के लिए हेडक्वार्टर के शीर्षस्थ अधिकारियों तक को चंदा दिया जाता है। इसके लिए मैटेरियल मैनेजमेंट, एक्सवेशन विभाग, वित्त विभाग, ईएंडएम, सेफ्टी समेत तमाम विभाग के अधिरकारियों की आवभगत करनी पड़ती है। रेट कांट्रेक्ट होने के बाद एरिया में आर्डर जेनरेट और सप्लाई का खेल शुुरु होता है। इसमें एरिया सीजीएम से लेकर जीएम, एसओ एमएम, प्रोजेक्ट इंजीनियर, कंंसर्न इंजीनियर का हिस्सा बंधा है। इन अधिकारियों को रेट कांट्रैक्ट वाली कंपनियों से 4 प्रतिशत तक मिलता है। प्रतिशत अधिकारियों की रैंकिंग पर निर्भर है।
नॉन आरसी वालों से तो मनचाहा वसूलते : जिन कंपनियों के आरसी (रेट कांट्रैक्ट) नहीं हुआ हो, इन कंपनियों से तो अधिकारी मनचाहा वसूलते हैं। इसका प्रतिशत 50 से लेकर 100 प्रतिशत कुछ भी हो सकता है। 10 हजार के माल को 20 हजार में खरीदते और फिफ्टी-फिफ्टी का अनुपात चलता है, कुछ मामलों में तो प्रतिशत 3 से 4 सौ प्रतिशत भी होता है। ये सामान की क्वालिटी और कीमत पर निर्भर है।