हेपेटाइटिस के दर्दनाक इंजेक्शन से मिलेगा छुटकारा, शोध में आया सामने नाक से ली जा सकती है दवा
शोधार्थी ने ऐसे वैक्सीन का फार्मुलेशन किया, जिसे नाक से दिया जा सकता है। यह उतना ही प्रभावकारी है जितना हेपेटाइटिस के इलाज में इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाने वाला वैक्सीन होता है।

बिलासपुर। गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) की प्राकृतिक संसाधन विद्यापीठ के अंतर्गत फार्मेसी विभाग में वायरस के कारण होने वाली बीमारी हेपेटाइटिस के वैक्सीन पर शोध किया गया है। इस विषय का अध्ययन डॉ. सुनीता मिंज ने किया है। उनके शोध निर्देशक डॉ. रविशंकर पांडे, सहायक प्राध्यापक, फार्मेसी विभाग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय है।
उक्त शोध का विषय ''फार्मास्यूटिकल इवेलुएशन ऑफ टीएलआर-4 एडजवेंट बेस्ड बायोमेट्रिक लिपिड नैनोकंस्ट्रक्शन फॉर पल्मनरी इम्युनाइजेशन'' है। शोध के दौरान वायरस से होने वाली बीमारी हेपेटाइटिस के वैक्सीन का विकास किया गया। वर्तमान में वैक्सीन इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। शोधार्थी ने ऐसे वैक्सीन का फार्मुलेशन किया, जिसे नाक से दिया जा सकता है। यह उतना ही प्रभावकारी है जितना हेपेटाइटिस के इलाज में इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाने वाला वैक्सीन होता है। शोध अध्ययन के अनुसार टीएलआर-4 विशिष्ट यौगिक है जो वैक्सीन की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इस यौगिक का किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं है और यह वैक्सीन के प्रभाव को बढ़ाता है।
शोध अध्ययन के अनुसार लिपिड के छोटे नैनो पार्टिकल्स से तैयार की गई वैक्सीन प्रभावकारी तो है ही, नाक के माध्यम से देने पर इसमें स्टराइजेशन की जरूरत नहीं है। इससे इंजेक्शन लगने से होने वाले दर्द से बचा जा सकता है। शोधार्थी डॉ. सुनीता मिंज का पीएचडी हेतु पंजीयन वर्ष 2012 में किया गया। सन 2017 में उन्होंने अपना शोध प्रबंध कमा किया। उन्हें 26 अप्रैल, 2019 को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। वर्तमान में वे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (म.प्र.) में सहायक प्राध्यापक, फार्मेसी हैं।
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