scriptइस व्यक्ति ने पं नेहरू को आगर नदी के पुल पर पैदल चलने को किया था मजबूर, बापू ने भी इन्हें कहा- एक तो मैं पागल, आप मुझ से भी बड़े… | Pandit Jawaharlal Nehru and Mahatma Gandhi interesting story | Patrika News

इस व्यक्ति ने पं नेहरू को आगर नदी के पुल पर पैदल चलने को किया था मजबूर, बापू ने भी इन्हें कहा- एक तो मैं पागल, आप मुझ से भी बड़े…

locationबिलासपुरPublished: Aug 16, 2019 11:39:00 am

Submitted by:

Saurabh Tiwari

FREEDOM STORY: बावजूद इसके भारत की स्वतंत्रता के संग्राम मेंं जान की परवाह न करके बढ़-चढकर हिस्सा लेने वाले मुंगेलीवासियों का योगदान गर्व करने योग्य है

Pandit Jawaharlal Nehru and Mahatma Gandhi interesting story

इस व्यक्ति ने पं नेहरू को आगर नदी के पुल पर पैदल चलने को किया था मजबूर, बापू ने भी इन्हें कहा- एक तो मैं पागल, आप मुझ से भी बड़े…

मुंगेली. भारत के मानचित्र में मुंगेली क्षेत्र की स्थिति सुई के एक नोक के बराबर ही होगी। बावजूद इसके भारत की स्वतंत्रता के संग्राम मेंं जान की परवाह न करके बढ़-चढकर हिस्सा लेने वाले मुंगेलीवासियों का योगदान गर्व करने योग्य है।
साव को छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहा था सरदार पटेल ने
मुंगेली क्षेत्र के महान सपूतों में एक थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गजाधर साव।?मुंगेली के पास के छोटे से ग्राम देवरी के मालगुजार, साव 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन से आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। 1917 में होमरूल आंदोलन के समय वे बिलासपुर शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि थे। 1921 में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई।?25 मार्च 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में गांव के सतनामी साथियों के साथ पहुंचे।?अधिवेशन के दौरान तत्कालीन अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल, साव क ी कार्यशैली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मंच से इन्हें ‘छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहकर संबोधित किया। जनवरी 1932 में मुंगेली में विदेशी सामान बेचने वाले एक दुकान में ‘पिकेटिंग करने पर अंंग्रेज सरकार ने इन्हें 3 माह का कारावास तथा 125 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया था।?सामाजिक सुधार के प्रति भी साव जी बेहद जागरूक थे। 1917 में मुंगेली में एक बड़ी सभा हुई, जिसमें पं. सुंदरलाल शर्मा ने हाथों से क्षेत्र के सतनामियों और तत्कालीन समाज में अस्पृश्य समझे जाने वालों को ‘जनेऊ धारण करवाया था। एक बार महात्मा गांधी ने आजादी दीवानगी पर कहा कि ‘साव जी, एक तो मैं पागल और आप मुझसे भी बड़े पागल हैं। ऐसे में देश आजाद होकर रहेगा। बड़े नेताओं के तामझाम के कारण आम जनता से उनकी दूरी को साव नापसंद करते थे। 16 दिसबर 1936 को कांग्रेस के प्रमुख पं. जवाहरलाल नेहरू मुंगेली आए तो साव का आग्रह था कि वे आगर नदी पुल से पैदल ही नगर में प्रवेश करें। मगर उनकी बात नहीं मानी गई, जिससे वे नाराज हो गए और पुल पर धरना देकर लेट गए। मनाने की कोशिश की गई?पर वे नहीं माने।?इसपर झल्लाकर पं.नेहरू ने कहा कि अगर साव नहीं उठते हैं तो इसके ऊपर से ही कार को चला दो। पं.नेहरू के इस उग्र रूप से भी साव ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अंतत: कुछ दूर तक पं. नेहरू को कार से उतरकर जाना ही पड़ा।
मुगेली के गांधी थे पं.कालीचरण
अपनी सादगी, सरलता के लिए पूरे क्षेत्र में मुंगेली के गांधी के रूप में माने जाने वाले पं. कालीचरण शुक्ल ने अपने साप्ताहिक अखबार के माध्यम से अंग्रेजों के विरूद्ध हमेशा आवाज उठाते रहते थे।?इस कारण सदैव उन्हें जुर्माना भरना पड़ता था और कई बार तो उनका प्रेस ही जब्त हो जाता था।?मगर अपने धुन के दीवाने पं.शुक्ला पैसे का इंतजाम कर जुर्माना भरते और फि र अंग्रेज शासन के विरूद्ध आवाज बुलंद करना शुरू कर देते थे।
विदेशी कपड़ों की खिलाफत में आगे रहे थे बाबूलाल
बाबूलाल केशरवानी भी ऐसे ही धुन के पक्के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 1932 में 20 वर्ष की आयु में ही साथियों के साथ गोल बाजार मुंगेली में घेवरचंद सूरजमल की कपड़ा दुकान के सामने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए आंदोलन करते हुए पकड़े गए। 1942 में पिकेटिंग के समय पं.शुक्ल, सिद्धगोपाल त्रिवेदी, हीरालाल दुबे, कन्हैयालाल सोनी तथा अनेक लोगों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर पहले बिलासपुर फि र अमरावती जेल भेज दिया गया।
देश को 22 स्वतंत्रता सेनानी देने वाला गांव देवरी उपेक्षा का शिकार
आज देश आजादी की 73 वां वर्षगांठ मना रहा है।?आजादी की बात हो और मुंगेली के देवरी गांव का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं।? जी हां, देवरी गांव में एक-दो नहीं बल्कि 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।?इन सेनानियों ने भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा, विदेशी वस्तु बहिष्कार, असहयोग आंदोलन, जंगल सत्याग्रह आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गए। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले का छोटा सा गांव देवरी की सूरजबाई आजादी के आंदोलन में भाग ले चुकी हैं।? वे बताती हैं कि उस दौर में उन्होंने कितनी यातनाएं सहीं।? युवा पीढ़ी से उनकी अपील है कि वह आजादी की कद्र करे। इसके साथ ही शासन द्वारा गांव की उपेक्षा से ग्रामीणों में खासा रोश भी देखने को मिला, क्योंकि गांव में इतने फ्रीडम फाइटर्स होने के बाद भी एक अदना सा स्मारक या उनके नाम की पट्टिका तक देखने को नहीं मिलती है।?
शिलालेख में दर्ज है सेनानियों के नाम
देश की स्वतंत्रता के 25 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 1972-73 में क्षेत्र के शहीदों एवं सेनानियों की याद को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए पुराना बस स्टैंड के पास एक शिलालेख स्थापित किया गया, जिसमें इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम दर्ज हैं। बान्दु उर्फ बन्दर, सदाशिव सतनामी, कालीचरण शुक्ल, रामदयाल ब्राम्हण, नारायण राव, रघुपतराव ब्राम्हण, हीरालाल दुबे, सदानंद लाल ब्राम्हण, अवधराम, ददना सोनार, कन्हैयालाल, मथुरा प्रसाद सोनार, गंगा प्रसाद, हरीराम, उदयाशंकर, रामबुझास ब्राम्हण, नारायण राव, भीखा जी ब्राम्हण, बलदेव सिंह अदली, बिसाहू, रामचरण, बाबूलाल केशरवानी, द्वारिका प्रसाद केशरवानी, छोटेलाल, सरजू प्रसाद, देवदत्त भट्ट, विदेशी, शिवलाल, कन्हैया, भाईराम सेंगवा, भवानी शंकर, रघुबरप्रसाद, श्यामलाल, घनाराम, श्री सिद्धगोपाल, अयोध्या प्रसाद, झाडऱाम, मुल्लूराम तमेर, रामगोपाल, बंशीधर तिवारी, गनपतलाल, भागवत प्रसाद क्षत्री, गजानंद, रामचंद्र साव।

कुछ नाम छूट गए हैं, जिनके बारे में बताने वाले ही अब नहीं हैं
इस शिलालेख में अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम शामिल नही हैं। क्यों नहीं है्? इस बात को बताने के लिए आज हमारे बीच कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जीवित नहीं है। इस शिला में उत्कीर्ण सूची संभवत: शासकीय दस्तावेजों में शामिल नाम के अनुसार है। हालांकि जिनका नाम इसमें नहीं है, स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में उनका योगदान इस बात से कम नहीं होता।

कुछ वर्ष पूर्व तक इसी परिसर के आसपास जनपद पंचायत, भारतीय स्टेट बैंक, विद्युत कार्यालय तथा व्यवहार न्यायालय संचालित होते थे। यहां पर जनपद पंचायत के द्वारा ध्वजारोहण किया जाता था। कार्यालय अन्यत्र चले जाने के कारण शिलालेख स्थल पूरी तरह उपेक्षित हो गया है।
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