मिली जानकारी के अनुसार कलेक्टर डॉ. संजय अलंग सोमवार को जेल पहुंचे । बच्ची को अपनी कार में लेकर उसलापुर रोड स्थित निजी स्कूल ले गए । गाड़ी से उतरते ही बच्ची ने कलेक्टर की उंगली पकड़ी । फिर प्राचार्य के कक्ष तक गई । प्रवेश की औपचारिकता निभाई गई। अब खुशी जैन इंटरनेशनल स्कूल के हॉस्टल में रहकर पढेग़ी । स्कूल प्रबंधन 12 वीं तक उसके पढ़ाई का खर्च वहन करेगा।
बच्ची के लिए स्कूल में विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। स्कूल संचालक अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठाएगा । खुशी को स्कूल छोडऩे जेल अधीक्षक एसएस तिग्गा भी गए थे।
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बच्ची के पिता केंद्रीय जेल में एक अपराध में सजायफ्ता बंदी हैं। पांच साल की सजा काट ली है। सजा के पांच साल अभी बचे हुए हैं। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गई । पालन पोषण के लिए घर में कोई नहीं था। इसलिए उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला बंदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी। संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे।
बच्ची के पिता केंद्रीय जेल में एक अपराध में सजायफ्ता बंदी हैं। पांच साल की सजा काट ली है। सजा के पांच साल अभी बचे हुए हैं। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गई । पालन पोषण के लिए घर में कोई नहीं था। इसलिए उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला बंदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी। संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे।
उन्होंने महिला बैरक में देखा कि महिला बंदियो के साथ एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई थी । बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर आना चाहती है। किसी बड़े स्कूल में पढऩे का उसका मन है। इसके बाद कलेक्टर ने तुरंत शहर के स्कूल संचालकों से बात की और जैन इंटरनेशनल स्कूल के संचालक बच्ची को एडमिशन देने को तैयार हो गए (Prisoner’s daughter reached school with the collector)। कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।