बिलासपुर

बिना कोई जुर्म किए जेल में पिता की सजा काट रही थी मासूम, कलेक्टर ने सुनी कहानी तो छलक पड़े आंसू

कलेक्टर डॉक्टर संजय अलंग की उंगलियां पकड़ कर जेल से निकली बच्ची(Prisoner’s daughter), इंटरनेशनल स्कूल में कराया गया बच्ची का एडमिशन(Prisoner’s daughter reached school with the collector)

बिलासपुरJun 26, 2019 / 07:34 pm

Murari Soni

बिना कोई जुर्म किए जेल में पिता की सजा काट रही थी मासूम, कलेक्टर ने सुनी कहानी तो छलक पड़े आंसू

बिलासपुर . उम्र 6 वर्ष । पिता सेंट्रल जेल में सजायाफ्ता । बचपन में ही मां की मौत हो गई इसके कारण वो अपने पिता के साथ ही जेल में रह रही थी(Prisoner’s daughter)। जेल निरीक्षण(Jail inspection)के दौरान कुछ दिनों पहले कलेक्टर की नजर(Collector noticed)उसपर पड़ी थी। ऐसे में कलेक्टर ने जब पूछा कि वो स्कूल जाना चाहती है तो बच्ची ने कहा कि हां वो पढऩा चाहती है। इसके बाद कलेक्टर ने उसके एडमिशन(Prisoner’s daughter reached school with the collector)की तैयारी के निर्देश दिए थे। वहीं जब सोमवार को स्कूल खुले तो खुद कलेक्टर केंद्रीय जेल पहुंचे और बच्ची को अपनी गाड़ी में बिठाया और शहर के एक निजी स्कूल में लेकर पहुंचे जहां उसे प्रवेश दिलवाया गया।
मिली जानकारी के अनुसार कलेक्टर डॉ. संजय अलंग सोमवार को जेल पहुंचे । बच्ची को अपनी कार में लेकर उसलापुर रोड स्थित निजी स्कूल ले गए । गाड़ी से उतरते ही बच्ची ने कलेक्टर की उंगली पकड़ी । फिर प्राचार्य के कक्ष तक गई । प्रवेश की औपचारिकता निभाई गई। अब खुशी जैन इंटरनेशनल स्कूल के हॉस्टल में रहकर पढेग़ी । स्कूल प्रबंधन 12 वीं तक उसके पढ़ाई का खर्च वहन करेगा।
बच्ची के लिए स्कूल में विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। स्कूल संचालक अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठाएगा । खुशी को स्कूल छोडऩे जेल अधीक्षक एसएस तिग्गा भी गए थे।
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क्या है कहानी
बच्ची के पिता केंद्रीय जेल में एक अपराध में सजायफ्ता बंदी हैं। पांच साल की सजा काट ली है। सजा के पांच साल अभी बचे हुए हैं। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गई । पालन पोषण के लिए घर में कोई नहीं था। इसलिए उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला बंदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी। संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे।
उन्होंने महिला बैरक में देखा कि महिला बंदियो के साथ एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई थी । बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर आना चाहती है। किसी बड़े स्कूल में पढऩे का उसका मन है। इसके बाद कलेक्टर ने तुरंत शहर के स्कूल संचालकों से बात की और जैन इंटरनेशनल स्कूल के संचालक बच्ची को एडमिशन देने को तैयार हो गए (Prisoner’s daughter reached school with the collector)। कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूल में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

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