कोरोना संक्रमितों को भर्ती करने वाले अस्पताल संचालक एडवांस राशि जमा करने के बाद मरीज की भर्ती कर रहे हैं। लगातार शिकायत मिलने के बाद भी सीएमएचओ निजी अस्पतालों पर लगाम नहीं कस पा रहे हैं। इधर, जिला प्रशासन भी निजी अस्पताल संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाही नहीं कर रहा है।
अस्पतालों की समस्याओं को लेकर नागरिकों की कई शिकायतें हैं।
1. जिला अस्पताल को संभागीय कोविड अस्पताल बना दिया गया है। इसके बदले मातृ शिशु अस्पताल में कोरोना को छोड़कर सभी तरह के मरीजों की भर्ती लेनी है। शाम होते यहां गेट से मरीजों को वापस यह कहकर भेज दिया जाता है कि यहां डॉक्टर नहीं है। दयालबंद में रहने वाले नंदू वर्मा ने बताया अस्पताल में परिजन को घुसने नहीं दिया गया।
2. सिम्स में गंभीर मरीज को भर्ती करने के पहले आधार कार्ड मांगा जा रहा है। बताया जाता है एेसा इसलिए किया जाता है ताकि लोग अपने मरीज को किसी दूसरे अस्पताल ले जाएं। सोमवार को पेंडारी के मनराखन यादव को आधार कार्ड नहीं होने पर दो घंटे तक बाहर खड़ा करा दिया गया।
3. जिले के सभी निजी अस्पताल में मरीज को सर्दी, खांसी व बुखार है क्या? पूछा जाता है। हां कहने के बाद अस्पताल का स्टाफ अन्दर जाता है इसके बाद बेड खाली नहीं है कहकर लौटा दिया जाता है। निजी अस्पताल में मरीज को भर्ती कराने के लिए अप्रोच लगाना पड़ता है।
4. जिन निजी अस्पताल में कोरोना के मरीजों का इलाज किया जा रहा है वे लोग 40 से 50 हजार रुपए एडवांस लेने के बाद ही मरीज की भर्ती ले रहे हैं। शासन ने कोरोना के इलाज के लिए 6200 रुपए प्रतिदिन फिक्स किया है लेकिन यहां एक मरीज का बिल दो से ढाई लाख तक बन रहा है।
किसी भी मरीज को बहाना बनाकर नहीं लौटाया जा सकता है। सभी का इलाज करना है। अगर कोई अस्पताल एेसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
-डॉक्टर प्रमोद महाजन, सीएमएचओ
कोई भी अस्पताल मरीज को वापस नहीं लौटा सकता है,अगर उसके पास बेड है। कुछ अस्पताल संचालकों की शिकायत मिली है ।
-डॉ. सारांश मित्तर, कलेक्टर