जनहित याचिका में कौशिक ने कहा है कि पूर्व में राज्य सरकार ने झीरम घाटी कांड की जांच के लिए हाईकोर्ट जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग ने आठ साल मामले की सुनवाई कर जांच पूरी कर ली थी। जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने चीफ जस्टिस बनने के पहले अपनी जांच रिपोर्ट राज्य शासन को सौंप दी थी। कानून के अनुसार किसी आयोग की जांच रिपोर्ट को छह माह के भीतर विधानसभा में प्रस्तुत कर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने ऐसा करने के बजाय लगभग पांच माह पहले दो सदस्यीय रिटायर्ड जस्टिस सुनील अग्निहोत्री और जस्टिस मिन्हाजुद्दीन का न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया है। याचिका पर सुनवाई शुक्रवार को जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस एनके चंद्रवंशी की डिवीजन बेंच में होनी थी। याचिकाकर्ता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी नहीं आ पाए। इसलिए मामले की सुनवाई 9 मई को होगी।
नए आयोग की वैधानिकता पर सवाल याचिका में कहा गया है कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की जांच रिपोर्ट को विधानसभा में रखा जाए और उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। नए आयोग की वैधानिकता पर सवाल उठाते याचिका में कहा गया है कि एक आयोग जिस मामले की जांच कर चुका है, उसकी दोबारा जांच के लिए नया आयोग नहीं बनाया जा सकता, इसलिए नए आयोग को निरस्त किया जाए।