आज मुख्यमंत्री जेड प्लस सुरक्षा के बीच रहते हैं इसलिए उन्हें कार्यकर्ताओं की पीड़ा का अभाष ही नहीं होता और यही पराजय का कारण बनता है। पंडित श्यामा चरण शुक्ल इतने सहज थे कि गरीब से गरीब कार्यकर्ता के घर जाते और यहां तक गुड की चाय तक पी लेते थे। वकालत पास करने के बाद सन् 1971 से चुनावी राजनीति में सक्रिय रहा, उस समय कार्यकर्ताओं में जोश था साधन की अपेक्षा नहीं थी, हर कार्यकर्ता को लगता था जैसे प्रत्याशी नहीं वे खुद चुनाव लड़ रहे हों, हर स्तर पर उन्हें जिताने के लिए पूरी ताकत और निष्ठा से प्रयास करते थे। आज ऐसा नहीं है कार्यकर्ताओं का पूरा जोर सुख सुविधाओं और साधन पर होता है। यही वजह है कि उस समय बेहद कम खर्च में अच्छे से चुनाव होते थे। आज करोड़ों खर्च के बाद भी कमी रह जाती है। प्रत्याशी भी शालीन थे कार्यकर्ताओं को महत्व देते थे, उनकी कद्र करते थे। एक आम कार्यकर्ता सीधे सीएम से मिलते थे और अपना काम कराते और उन्हें जमीनी हकीक त से अवगत भी कराते। आज के सीएम जेड प्लस सुरक्षा के बीच रहते हैं एक आम कार्यकर्ता उनसे मिल तक नहीं पाते, यही दूरी नाराजगी और पराजय का कारण बनती है। सन् 1972 का दौर था जब वे पंडित श्यामाचरण शुक्ल के साथ राजिम क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने के लिए गए वे छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं से आत्मीयता से मिलते। इस दौरान उन्होंने एक कार्यकर्ता के घर पर शक्कर नहीं था उसने संकोच किया तो पंडित शुक्ल ने कहा कोई बात नहीं गुड की चाय पी लेंगे और उन्होंने कार्यकर्ता के घर पर सभी कार्यकर्ताओं के साथ गुड की चाय पी।